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60 से 70 लाख टन कम पैदावार! चावल पर मच सकता है हाहाकार, कीमतों पर दिख रहे हैं कैसे आसार ? हर बात जानिए

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नई दिल्ली, 18 सितंबर: खाने-पीने की चीजों की बढ़ती कीमतों के चलते पहले से ही लोग त्रस्त हैं, अब चावल के दाम बढ़ने को लेकर तरह-तरह की आशंकाएं पैदा हो रही हैं। आशंकाएं बेवजह भी नहीं हैं। पहले से इसकी कीमतें बढ़ी भी हैं और इस बार कम पैदावार की आशंका ने इसकी चिंता और बढ़ा दी है। हाल में सरकार ने इसके निर्यात को लेकर कुछ सख्त कदम भी उठाए हैं। आइए जानते हैं कि कीमतों को लेकर आशंका किस स्तर तक सही लग रहे हैं और देश में मानसून की समाप्ति पर धान की बुवाई की स्थिति कैसी है।

60 से 70 लाख टन कम पैदावार होने का अनुमान

60 से 70 लाख टन कम पैदावार होने का अनुमान

इस साल जून से सितंबर तक खासकर देश के धान उत्पादक क्षेत्रों में असमान्य बारिश और दक्षिण-पश्चिम मानसून से मिले धोखे की वजह से धान उत्पादन को लेकर चिंता बढ़ा दी है। देश पहले से ही महंगाई के दबाव में है, ऊपर से धान की बुवाई में हुई कमी के चलते 60 से 70 लाख टन धान उत्पादन घटने की आशंका पैदा हो चुकी है। अनाज समेत खाद्य पदार्थों के ऊंचे दाम के कारण खुदरा महंगाई तीन महीने की गिरावट के ट्रेंड को उलट कर अगस्त में 7% तक पहुंच गई। इससे पहले हीटवेव की वजह से देश के कुछ हिस्सों में गेहूं के उत्पादन की कमी ने थोक मुद्रास्फीति पर पहले ही दबाव बना रखा था।

85% चावल उत्पादन खरीफ सीजन पर ही निर्भर

85% चावल उत्पादन खरीफ सीजन पर ही निर्भर

धान की पैदावार में गिरावट के आसार ने सरकार से लेकर विश्लेषकों तक की चिंता बढ़ाई है। एक्सपर्ट को लगता है कि इन सब वजहों से चावल के दाम बढ़ते रहे सकते हैं। 2021-22 में देश में चावल का उत्पादन 130.29 मिलियन टन रहा था, जो कि इसके एक साल पहले के 124.37 मिलियन टन के मुकाबले करीब 60 लाख टन ज्यादा था। लेकिन, खाद्य मंत्रालय का अनुमान है कि इस खरीफ सीजन में चावल का उत्पादन 60 से 70 लाख टन घट सकता है। गौरतलब है कि देश में जितना भी चावल उत्पादन होता है उसका 85% अकेले खरीफ के मौसम में होता है, जो कि मानसूनी बारिश पर ही मुख्य तौर पर निर्भर है।

सरकार ने दाम नियंत्रित रखने के लिए सख्त कदम उठाए

सरकार ने दाम नियंत्रित रखने के लिए सख्त कदम उठाए

हालांकि, कुछ लोगों का यह भी मानना है कि ज्यादा चिंता की बात नहीं है, क्योंकि भारत के पास चावल का पर्याप्त बफर स्टॉक मौजूद है, जिससे जन वितरण प्रणाली की मांग को पूरा किया जा सकता है। ऊपर से मोदी सरकार टूटे चावल के निर्यात पर पहले ही रोक लगा चुकी है और गैर-बासमती और बगैर-उबले चावल पर 20% निर्यात शुल्क लगाकर हालात को कंट्रोल करने की कोशिश की गई है। सरकार ने यह पाबंदियां पिछले एक साल में चावल और जानवरों के चारे की कीमतों में बढ़ोतरी को देखते हुए लगाई हैं।

थोक और खुदरा कीमतों में हुई बढ़ोतरी

थोक और खुदरा कीमतों में हुई बढ़ोतरी

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक थोक कीमत जो एक साल पहले 3,047.32 प्रति क्विंटल थी, वह 14 सितंबर को 10.7% बढ़कर 3,357.2 प्रति क्विंटल पहुंच चुकी है। वहीं खुदरा कीमतें 9.47% बढ़कर 34.85 रुपए प्रति किलो से बढ़कर 38.15 प्रति किलो हो गई है। आरबीआई ने भी अपने ताजा बुलेटिन में माना है कि खाद कीमतों में फिर से बढ़ोतरी मुख्य रूप से अनाज के दामों की वजह से है, जबकि ईंधन और बाकी चीजों ने थोड़ी राहत भी दिखाई है। इसके अलावा सितंबर में बारिश की असमानता ने विशेष रूप से टमाटर जैसी सब्जियों के दाम में भी उछाल दिखाए हैं।

तत्काल कोई बड़ी दिक्कत नहीं- नीति आयोग के सदस्य

तत्काल कोई बड़ी दिक्कत नहीं- नीति आयोग के सदस्य

हालांकि, सरकारी अधिकारियों का कहना है कि कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए जो उपाय किए गए हैं, वह हालात से निपटने के लिए काफी हैं। उधर नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने भी कहा है, 'मुझे चावल में घरेलू मुद्रास्फीति के लिए तत्काल कोई बड़ा खतरा नहीं दिख रहा है। दामों में कुछ वृद्धि वास्तव में एमएसपी में बढ़ोतरी और उर्वरकों और ईंधन जैसी अन्य लागतों की वजह से हुई है। थोड़ी कीमतें बढ़ेंगी, जब सभी चीजों की कीमतें बढ़ रही होंगी।' उन्होंने तो यहां तक उम्मीद जताई है कि अगर खरीफ मौसम में धान का उत्पादन 1 करोड़ से 1.2 करोड़ टन भी घट जाएगा, तब भी घरेलू उपलब्धता को लेकर कोई दिक्कत नहीं है।

'बहुत बड़ी चिंता की बात नहीं है'

'बहुत बड़ी चिंता की बात नहीं है'

नीति आयोग के सदस्य का यहां तक दावा है कि सरकार ने कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए निर्यात पर जो बैन लगाया है, वह सफल रहा तो चावल के दाम 5-6% से ज्यादा नहीं बढ़ेंगे, जो कि 'सामान्य' है। हालांकि, सीपीआई के ताजा आंकड़ों से पता चला है कि अगस्त में चावल में मुद्रास्फीति 6.94% थी, जो कि इसके ठीक एक साल पहले माइनस 1.2% थी। हालांकि, कृषि अर्थशास्त्री और नेशनल अकैडमी ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज पीके जोशी का कहना है कि वैश्विक महंगाई की तुलना में भारत इस मोर्चे पर बेहतर कर रहा है। उन्होंने कहा, चावल की कीमतें बढ़ना 'बहुत बड़ी चिंता की बात नहीं है' और पीडीएस की मांग को पूरा करने के लिए निर्यात पर रोक लगाई गई है।

80 करोड़ परिवारों की विशेष निर्भरता

80 करोड़ परिवारों की विशेष निर्भरता

बता दें कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत केंद्र सरकार देश के 80 करोड़ लोगों को 2 से 3 रुपए प्रति किलो के हिसाब से हर महीने 5 किलो अनाज उपलब्ध करवा रही है। वहीं अप्रैल, 2020 से प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत इन्हीं 80 करोड़ परिवारों को 5 किलो अनाज अलग से मुहैया करवाया जा रहा है, वह भी बिल्कुल मुफ्त। वैसे यह योजना सितंबर में खत्म हो रही है, लेकिन एक्सपर्ट इसे आगे बढ़ाए जाने के राजनीतिक फैसले की संभावना को लेकर चर्चा कर रहे हैं।

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चावल के लिए दुनिया भारत पर काफी निर्भर

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हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में धान की अच्छी पैदावार हुई थी और सरकारी स्तर पर पर्याप्त खरीद होने की वजह से बंपर बफर स्टॉक रहा है और इसी वजह से निर्यात भी खूब हुआ। इस साल 1 जुलाई को देश में कुल चावल का बफर स्टॉक 47 मिलियन टन था, जबकि प्रावधान 13.5 मिलियन टन बफर स्टॉक रखने का है। दुनिया भर में चावल के कारोबार में भारत की हिस्सेदारी 40% रही है। 2021-22 में देश से 21.23 मिलियन टन चावल का निर्यात हुआ था औऱ उससे पहले साल 17.78 मिलियन टन का। वित्त वर्ष 2019-20 में यह 9.51 मिलियन टन था। लेकिन, इसबार धान उत्पादक राज्यों में मानसून के दौरान हुई कम बारिश ने स्थिति को पूरी तरह से पलट कर रख दिया है।

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धान की बुवाई में किस राज्य में कितनी गिरावट ?

धान की बुवाई में किस राज्य में कितनी गिरावट ?

16 सितंबर तक के आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा खरीफ मौसम में धान की खेती में पिछले साल के 417.93 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 4.52% यानी 399.03 लाख हेक्टेयर की कमी आई है। सबसे बड़ी गिरावट झारखंड में 9.37 लाख हेक्टेयर की रही है और उसके बाद मध्य प्रदेश में 6.32 लाख हेक्टेयर, पश्चिम बंगाल में 3.65 लाख हेक्टेयर, उत्तर प्रदेश में 2.48 लाख हेक्टेयर और बिहार में 1.97 लाख हेक्टेयर की गिरावट दर्ज की गई है। (इनपुट-पीटीआई)

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English summary
Rice:In India, this kharif season, due to the decline in rice production, prices are expected to rise. Production expected to decrease by 60 to 70 lakh tonnes
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