'अगर प्रतिक्रिया नहीं देता तो...', सोनिया गांधी की न्यायपालिका पर की गई टिप्पणी पर उपराष्ट्रपति
जगदीप धनखड़ ने कहा कि, मैंने टिप्पणियां उसके संबंध में थीं जो मैंने आठ दिसंबर को इस आसन से की थीं। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को यह कहना अतिवाद की सीमा होगा
उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका को लेकर पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की टिप्पणी को अशोभनीय बताया है। वहीं कांग्रेस ने सोनिया गांधी की न्यायपालिका के संदर्भ में टिप्पणियों पर आसन द्वारा दी गई प्रतिक्रिया को सदन की कार्यवाही से हटाने की मांग की थी। इस पर जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को कहा कि अगर उन्होंने प्रतिक्रिया नहीं दी होती तो वह अपनी शपथ के साथ अन्याय करते और अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वाह करने में विफल रहते।
राज्यसभा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी ने यह मुद्दा उठाया और तथा विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने उनकी बात का समर्थन किया। मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा अगर लोकसभा सदस्य (सोनिया गांधी) बाहर कुछ कहती हैं तो उस पर राज्यसभा में चर्चा नहीं की जानी चाहिए। अगर आसन की ओर से उस पर प्रतिक्रिया आती है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसा कभी नहीं हुआ। यहां जो कुछ भी कहा गया है उसे हटा देना चाहिए और वापस लेना चाहिए। कृपया इसे हटा दें।
उन्होंने कहा कि अगर इसे नहीं हटाया गया तो यह एक बुरी मिसाल कायम करेगा। इस पर केंद्रीय मंत्री और सदन के नेता पीयूष गोयल ने कहा कि खड़गे को यह देखना चाहिए कि सदन पर, उच्च संवैधानिक प्राधिकारी पर आक्षेप लगाए गए हैं। जिन्हें संसद के दोनों सदनों द्वारा चुना गया है और जो भारत के उपराष्ट्रपति हैं। इस मुद्दे पर कुछ अन्य सदस्यों ने भी टिप्पणियां कीं।
इन टिप्पणियों का जवाब देते हुए जगदीप धनखड़ ने कहा कि, मैंने टिप्पणियां उसके संबंध में थीं जो मैंने आठ दिसंबर को इस आसन से की थीं। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को यह कहना अतिवाद की सीमा होगा कि न्यायपालिका को कमतर करने के मामले में सरकार ने राज्यसभा के सभापति और उप राष्ट्रपति को शामिल किया। यदि उन्होंने प्रतिक्रिया नहीं की होती, तो उसके काफी "अपमानजनक परिणाम" होते।
उन्होंने आगे कहा कि, इस तरह की धारणा बनाई जा रही थी कि न्यायपालिका को कमतर करने के लिए सरकार की शह पर आसन एक प्रतिकूल एवं दुरभिसंधि का पक्ष बन गया है। न्यायपालिका को कमतर करने का अर्थ लोकतंत्र का गला घोंटना है। उन्होंने कहा कि इस पक्षपातपूर्ण विवाद का खात्मा होना चाहिए।
धनखड़ ने कहा मैं सदस्यों को आश्वस्त कर सकता हूं कि इस विषय के जानकार लोगों के साथ मैंने व्यापक तैयारी की (टिप्पणी से पहले), पूर्व के महासचिवों के साथ बातचीत की और फिर इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि अगर मैं प्रतिक्रिया नहीं देता हूं तो मैं अपनी शपथ के साथ अन्याय करूंगा और अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वाह करने में विफल रहूंगा।
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बृहस्पतिवार को सदन में धनखड़ ने कहा था कि संप्रग अध्यक्ष का बयान उनके विचारों से पूरी तरह से भिन्न है और न्यायपालिका को कमतर करना उनकी सोच से परे है। उन्होंने कहा कि संप्रग अध्यक्ष का बयान पूरी तरह अनुचित है और लोकतंत्र में उनके विश्वास की कमी का संकेत देता है।