आज सच्चाई ये है कि मार्क्सशीट, मानसिक प्रैशरशीट बन गई है: पीएम मोदी
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 (NEP-2020) के तहत '21 वीं सदी में स्कूली शिक्षा' पर एक सम्मेलन को संबोधित किया। कार्यक्रम में केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल भी उपस्थित थे। बता दें केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की ओर से नई शिक्षा नीति को देशभर के स्कूलों तक पहुंचाने के लिए एक सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के जरिए देशभर के स्कूलों के शिक्षकों और प्रधानाचार्यों को वर्चुअल जोड़ा गया।
इस दौरान प्रधानंमत्री ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति नए भारत की, नई उम्मीदों की, नई आवश्यकताओं की पूर्ति का माध्यम है। इसके पीछे पिछले चार-पांच वर्षों की कड़ी मेहनत है, हर क्षेत्र, हर विधा, हर भाषा के लोगों ने इस पर दिन रात काम किया है। लेकिन ये काम अभी पूरा नहीं हुआ है। कुछ दिन पहले शिक्षा मंत्रालय ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के बारे में देशभर के शिक्षकों से #MyGov पर उनके सुझाव मांगे थे। एक सप्ताह के भीतर ही 15 लाख से ज्यादा सुझाव मिले हैं। ये सुझाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति को और ज्यादा प्रभावी तरीके से लागू करने में मदद करेंगे।
शिक्षा व्यवस्था को बदलना आवश्यक था
उन्होंने आगे कहा, आज हम सभी एक ऐसे क्षण का हिस्सा बन रहे हैं जो हमारे देश के भविष्य निर्माण की नींव डाल रहा है। एक ऐसा क्षण हैं जिसमें नए युग के निर्माण के बीज पड़े हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 21वीं सदी के भारत को नई दिशा देने वाली है। पिछले तीन दशकों में दुनिया का हर क्षेत्र बदल गया, हर व्यवस्था बदल गई। इन तीन दशकों में हमारे जीवन का शायद ही कोई पक्ष हो जो पहले जैसा हो। लेकिन वो मार्ग, जिस पर चलते हुए समाज भविष्य की तरफ बढ़ता है, हमारी शिक्षा व्यवस्था, वो अब भी पुराने ढर्रे पर ही चल रही थी। पुरानी शिक्षा व्यवस्था को बदलना उतना ही आवश्यक था जितना किसी खराब हुए ब्लैक बोर्ड को बदलना आवश्यक होता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, इस शिक्षा निति में शिक्षक और छात्र के लिए क्या है? और सबसे अहम इसे सफलतापूर्वक लागू करने के लिए क्या करना है, कैसे करना है? ये सवाल जायज भी हैं और जरूरी भी हैं। इसीलिए हम सभी इस कार्यक्रम में इकट्ठा हुए हैं ताकि चर्चा कर सकें और आगे का रास्ता बना सकें। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के ऐलान होने के बाद बहुत से लोगों के मन में कई सवाल आ रहे हैं। ये शिक्षा नीति क्या है? ये कैसे अलग है। इससे स्कूल और कॉलेजों की व्यवस्थाओं में क्या बदलाव आएगा।
शिक्षा में आसान नए-नए तौर-तरीकों को बढ़ाना होगा
प्रधानमंत्री मोदी ने आगे कहा, कोरोना से बने हालात हमेशा ऐसे ही नहीं रहने वाले हैं। बच्चे जैसे-जैसे आगे बढ़ें, उनमें ज्यादा सीखने की भावना का विकास हो। बच्चों में मैथामैटिकल थिंकिंग और साइंटिफिक टेंमपरमैंट विकसित हो, ये बहुत आवश्यक है। आज हम देखें तो प्री स्कूल की प्लेफुल एजुकेशन शहरों में में प्राइवेट स्कूलों तक ही सीमित है। ये शिक्षा व्यवस्था अब गांवों में भी पहुंचेगी, गरीब के घर तक पहुंचेगी। मूलभूत शिक्षा पर ध्यान इस नीति का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत फाउंडेशन लिटरेसी एंड न्यूमेरेसी के विकास को एक राष्ट्रीय मिशन के रूप में लिया जाएगा।
प्रधानमंत्री ने कहा, हमें शिक्षा में आसान और नए-नए तौर-तरीकों को बढ़ाना होगा। हमारे ये प्रयोग, न्यू एज लर्निंग का मूलमंत्र होना चाहिए- इंगेज, एक्सप्लोर, एक्सपीरियंस, एक्सप्रेस और एकेसल। हमारे देशभर में हर क्षेत्र की अपनी कुछ न कुछ खूबी है, कोई न कोई पारंपरिक कला, कारीगरी, प्रोडक्ट हर जगह के मशहूर हैं। छात्रों को उन करघों, हथकरघों में ले जाकर, दिखाएं आखिर ये कपड़े बनते कैसे हैं? स्कूल में भी ऐसे स्किल्ड लोगों को बुलाया जा सकता है। कितने ही प्रोफेशन हैं जिनके लिए डीप स्किल्स की जरूरत होती है, लेकिन हम उन्हें महत्व ही नहीं देते। अगर छात्र इन्हें देखेंगे तो एक तरह का भावनात्मक जुड़ाव होगा, उनका सम्मान करेंगे। हो सकता है बड़े होकर इनमें से कई बच्चे ऐसे ही उद्योगों से जुड़ें, उन्हें आगे बढ़ाएं।
राष्ट्रीय करिकुलम फ्रेमवर्क विकसित होगा
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, राष्ट्रीय शिक्षा नीति को इस तरह तैयार किया गया है ताकि सिलेबस को कम किया जा सके और फंडामेंटल चीजों पर ध्यान केन्द्रित किया जा सके। लर्निंग को इंटीग्रेट एवं आनंद पर आधारिक और अनुभव से पूर्ण बनाने के लिए एक राष्ट्रीय करिकुलम फ्रेमवर्क विकसित किया जायेगा। हमें अपने छात्रों को 21वीं सदी की स्किल्स के साथ आगे बढ़ाना है। 21वीं सदी की स्किल्स होंगी- गहन सोच, रचनात्मकता, सहयोग, जिज्ञासा और संचार।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में छात्रों को कोई भी विषय चुनने की आजादी दी गई है। मैं समझता हूं कि सबसे बड़े सुझाव के तौर पर इसे देख सकते हैं। अब हमारे यहां युवा को विज्ञान, ह्यूमेनिटी या कॉमर्स में किसी एक ब्रैकेट में फिट होने की जरूरत नहीं है। एक टेस्ट, एक मार्क्सशीट क्या बच्चों के सीखने की, उनके मानसिक विकास का पैरामीटर हो सकती है? आज सच्चाई ये है कि मार्क्सशीट, मानसिक प्रैशरशीट बन गई है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें एक वैज्ञानिक बात समझने की जरूरत है कि भाषा शिक्षा का माध्यम है, भाषा ही सारी शिक्षा नहीं है। जिस भी भाषा में बच्चा आसानी से सीख सके, चीजें याद कर सके, वही भाषा पढ़ाई की भाषा होनी चाहिए। कहीं ऐसा तो नहीं कि विषय से ज्यादा बच्चे की ऊर्जा भाषा को समझने में खप रही है। पढ़ाई से मिल रहे इस तनाव से अपने बच्चों को बाहर निकालना राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य है। परीक्षा इस तरह होनी चाहिए कि छात्रों पर इसका बेवजह दबाव न पड़े। कोशिश ये होनी चाहिए कि केवल एक परीक्षा से विद्यार्थियों को मूल्यांकन न किया जाए।
देश के शिक्षक हैं पथ-प्रदर्शक
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति की इस यात्रा के पथ-प्रदर्शक देश के शिक्षक हैं। चाहे नए तरीके से लर्निंग हो, विद्यार्थी को इस नई यात्रा पर लेकर शिक्षक को ही जाना है। हवाई जहाज कितना ही एडवांस हो, उड़ाता पायलट ही है। इसलिए सभी शिक्षकों को भी कुछ नया सीखना है और कुछ पुराना भूलना भी है। 2022 में आजादी के 75 वर्ष पूरे होंगे तब भारत का हर छात्र राष्ट्रीय शिक्षा नीति द्वारा तय किए गए दिशा-निदेर्शों में पढ़े ये हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है। मैं सभी शिक्षकों, प्रशासकों, स्वयंसेवी संगठनों और अभिभावकों से आहृवान करता हूं कि वे इस राष्ट्रीय मिशन में अपना सहयोग दें।
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