राज्यों में प्रदूषण को रोकने के लिए बने कार्य योजना तब हल होगी समस्या
दिल्ली ही नहीं बल्कि भारत के तमाम शहरों पर वायु प्रदूषण का संकट मंडरा रहा है और महत्वपूर्ण क्षेत्रीय प्रदूषण स्रोतों से निपटने में विफलता के चलते हर दिन लाखों लोगों के लिए सांस लेना दूभर हो गया है। दिल्ली की वायु प्रदूषण कार्य योजना- "ग्रैप" कभी भी तब तक पूरी तरह लागू नहीं हो सकती है जब तक पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्यों में प्रदूषण को रोकने के लिए अपनी कोई योजना नहीं बनायी जाती। नवंबर 2017 के दूसरे सप्ताह से नासा मानचित्रों से साफ ज़ाहिर है की भारतीय गंगा मैदानी इलाकों जिसमें उत्तर प्रदेश , बिहार आदी उत्तर भारत का सम्पूर्ण इलाका शामिल है, में लगातार धुंध छाया हुआ है। प्रधान मंत्री के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी सहित उत्तरी भारत के सभी शहरों के लिए वायु गुणवत्ता सूचकांक गंभीरता का संकेत दे रहा है। कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के लिए उत्सर्जन नियंत्रण मानकों को लागू करने में भारत की विफलता के चलते वायु प्रदूषण लगातार एक हल न हो सकने वाली समस्या बन चुकी है।
9 नवंबर 2017 को मैरीलैंड और नासा विश्वविद्यालय द्वारा निर्मित रिसर्च के अनुसार -"चीन और भारत में गंभीर धुंध एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता है। दोनों देश ऊर्जा के लिए कोयले पर भारी निर्भर करते हैं, और कोयला आधारित ऊर्जा संयंत्रों और उद्योगों से उत्सर्जित सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) एक प्रमुख प्रदूषक है जो उनकी हवा की गुणवत्ता की समस्याओं में योगदान करता है।" सर्दियों में होने वाले करीब 40%वायु प्रदुषण और स्माग के लिए वैज्ञानिक फसल कटने के बाद जलाये जाने वाले चारे, कोयला आधारित बिजली संयंत्रों और उद्योगों को जिम्मेदार मानते हैं। दिल्ली में 13 बिजली संयंत्र हैं, जो कि 300 किमी की परिधि में हटे हैं, जिनमें सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड को नियमित करने के लिए कोई उत्सर्जन नियंत्रण नहीं होता है। यह प्रदुषण कारी सुक्षम कणों के स्तरों में वृद्धि में योगदान करते हैं।
भारत का वायु प्रदूषण संकट चीन की तरह एक क्षेत्रीय समस्या है, लेकिन इस मुद्दे को हल करने के लिए भारत में कोई क्षेत्रीय स्तर की कोई योजना नहीं है। में सर्दियों में छायी धुंध के लिए दिल्ली सहित उत्तरी भारत के राज्यों में फैली धुंध के लिए प्रमुख क्षेत्रीय प्रदूषण स्रोतों में कोयले बिजली संयंत्रॊं और फसलों के अवशेष जलाने से निकला धुआं एक प्रमुख कारक है। दिल्ली से इतर , अधिकांश शहरों में एयर क्वालिटी इंडेक्स मात्र एक या दो मॉनिटर्स पर निर्भर है, जो कि डेटा की विश्वसनीयता को अत्यधिक संदिग्ध बनाता है। दिल्ली की वायु की गुणवत्ता लगातार सात दिनों से अधिक के लिए खतरनाक रही है, साथ ही वायु गुणवत्ता सूचकांक 460 से ऊपर रहा है, भारतीय मेडिकल एसोसिएशन ने इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर दिया है और राष्ट्रीय राजधानी के विभिन्न मेडिकल बिरादरी ने शहर को जीने योग्य नहीं घोषित किया है।
दिल्ली की ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान,साफ तौर पर प्रदूषण के स्तरों में फर्क लेन के लिए सक्षम नहीं है जैसा की वहां के नागरिकों द्वारा स्वम परख चुके हैं। 2 जनवरी 2017 की अधिसूचना जारी होने के बाद से ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान की कार्रवाई के अनुरूप, दिल्ली में इसकी बाबत सतर्कता सूचना जारी होनी चाहिए थी। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान की प्रत्येक श्रेणी में उचित करवाई और नियंत्रण के लिए आस पास की राज्य की सरकारों के साथ सीमा पार की कार्रवाई की आवश्यकता होती है, जहां उनके प्रदूषण नियंत्रण योजनाएं होती हैं। ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान में फ़िलहाल ऐसा कोई प्रबन्धन ही नहीं है।
सरकार के पास ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान को लागू करने और अंतरराज्यीय समन्वय सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त समय था। हालांकि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि स्रोत पर प्रदूषण को रोकने और प्रदूषण को संबोधित करना पारस्परिक रूप से एक्सक्लूसिव नहीं है। यदि क्षेत्रीय प्रदूषण स्रोतों को संबोधित करने के लिए दीर्घकालिक हल नहीं निकाले जाते हैं तो समस्या को कम करने के लिए प्रासंगिक कार्रवाई में मदद नहीं मिलेगी क्योंकि अधिकांश एजेंसियां इस क्षेत्र में कार्य योजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए कोई जवाबदेही तय नहीं होती और जवाबदेही के आभाव में वे समय रहते सही कदम नहीं उठाती हैं। दिसंबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने देश की राजधानी पर छाये वायु प्रदूषण संकट को रोकने और नियंत्रित करने के लिए श्रेणीबद्ध प्रतिक्रिया कार्य योजना "ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान" प्रस्तुत की। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, ने 12 जनवरी 2017 को इसके लागू होने की अधिसूचना जारी की। एक्शन प्लान को नोडल एजेंसी ईपीसीए (पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण) द्वारा लागू किये लगभग दस माह बीत चुके हैं पर किन्ही अज्ञात कारणों के लिए अधिसूचना 18 अक्टूबर 2017 से ही लागू हुई है।
तथ्य:
1) ग्रैडड रिस्पांस एक्शन प्लान को एनसीआर राज्यों में फैली विभिन्न एजेंसियों से पार सीमा समन्वय की आवश्यकता है। हालांकि, एनसीआर राज्यों के पास अपने स्रोतों पर प्रदूषण को कम करने के लिए कोई भी योजना नहीं है।
2) चीन के विपरीत, जो भी एक गंभीर वायु प्रदूषण संकट से ग्रस्त है, भारत में समय-सीमा लक्ष्य के साथ क्षेत्रीय क्रियाओं की योजना नहीं है चीन के विपरीत, जो भी एक गंभीर वायु प्रदूषण संकट से ग्रस्त है, भारत में समय-सीमा लक्ष्य के साथ क्षेत्रीय क्रियाओं की योजना नहीं है.
3) चीन में, बीजिंग के वायु गुणवत्ता संकट को ख़त्म करने के लिए उच्च स्तर के प्रदुषण उत्सर्जन स्रोतों जैसे कि कोयला आधारित बिजली संयंत्र, इस्पात उद्योग और निर्माण उद्योग से प्रदूषण को कम करने के लिए पांच साल के समयबद्ध लक्ष्य के साथ एक क्षेत्रीय स्तर पर संबोधित किया जा रहा है। उदाहरण के लिए, बीजिंग / टियांजिन / हेइबिन प्रांत को पीएम 2.5 स्तरों में 25% की कमी सुनिश्चित करना है, जो पूरे क्षेत्र में कम प्रदूषण के स्तर का परिणाम देगा।
4) दुनिया भर के शहरों में हवा की गुणवत्ता संकटसे निपटने के लिए मिसाल के तौर पर लंदन, पेरिस अदि शहरों के हवाई अड्डों में पूरे वर्ष के लिए हवा की गुणवत्ता वाली योजनाएं हैं, ताकि आपातकालीन स्थितियों से बचने में मदद मिल सके।
5) इस सर्दी, दिल्ली की हवा की गुणवत्ता अक्तूबर के पहले हफ्ते में मध्यम से गरीब श्रेणियों में तेजी से गिरावट आई और आपातकालीन स्थिति तक पहुंचने से पहले गरीब, बहुत गरीब और गंभीर श्रेणियों में उतर गई। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजीज, दिल्ली और कानपुर द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट ने एनसीआर राज्यों में कोयले आधारित संयत्रों के धुएं, वाहनों के उत्सर्जन, फसलके अवशेष जलाने को स्पष्ट रूप से इस बात के लिए जिमेदार बताया है।
6) भारत में 60% से अधिक बिजली का उत्पादन कोयला दहनद्वारा थर्मल पॉवर प्लांट्स से होता है जो बिना किसी सुल्फर डाई ऑक्साइड और नाइट्रोजन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन नियंत्रण मानकों के चल रहे हैं।
नोट:
ज्ञात हो की 2016 में घोषित होने वाले उत्सर्जन नियंत्रण नियमों के अनुसार सभी कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को प्रदूषण के स्तर को रोकने के लिए पुनर्संरचना की आवश्यकता है और यह अनिवार्य है कि 2017 जनवरी से सभी विद्युत संयंत्रों को नए उत्सर्जन मानकों का अनुपालन करना अनिवार्य करार किया गया है पर फिर भी भारत में 16 ऐसे नए कोयला आधारित बिजली संयंत्रों बने है जो इन मानकों का अनुपालन नहें कर रहे हैं ऐसे में पुराने संयत्रों के तो बात ही दूर है। नासा की मदद से मैरीलैंड विश्वविद्यालय के अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला कि 'चीन और भारत में गंभीर धुंध एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता है यह दोनों देश ऊर्जा के लिए कोयले दहन पर भारी रूप से निर्भर करते हैं, और कोयला आधारित ऊर्जा संयंत्रों से उत्सर्जित सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ 2) उनकी हवा की गुणवत्ता की समस्याओं के लिए योगदान देने वाला एक प्रमुख प्रदूषक है।
वर्ष 2007 के बाद से, चीन में उत्सर्जन में 75% की कमी आई है जबकि भारत में 50% की वृद्धि हुई है। इन परिवर्तनों के साथ, भारत अब चीन से बढ़कर दुनिया का सबसे बड़ा सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जक है। फसलों के अवशेष जलने के बारे में ग्रैडड रिस्पांस एक्शन प्लान में कोई करवाई का ज़िक्र नहीं है ऐसे में यह ग्रैडड रिस्पांस एक्शन प्लान न होकर एक बुरा सपना लग रहा है। इसके लिए विभिन्न एनसीआर राज्यों में 13 अलग-अलग एजेंसियों से कार्रवाई की आवश्यकता है। योजना से चेतावनी के पहले स्तर का एक अंश साझा किए गए सामग्रियों में जुड़ा हुआ है। यह पिछले 10 महीनों में 95 बार लागू किया जाना चाहिए था।