व्यापम घोटाला-पत्रकार अक्षय की मौत पर सियासत बंद करें नेता
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) पत्रकार अक्षय की असमय मौत पर सबको दुःख है। लेकिन अक्षय की मौत के बाद जिस तरह का माहौल बनाया जा रहा है उससे सहमत नहीं हुआ जा सकता। अक्षय अपनी ड्यूटी पर मेघनगर-झाबुआ गए थे। उनके साथ आजतक की पूरी टीम थी।
अक्षय की मौत किन हालात में हुई ये उनके साथ मौजूद लोगों से बेहतर कौन बता सकता है? लेकिन दुखद मौत केबाद राजनैतिक दल जिस तरह से अपने गंदे कपडे अक्षय की पीठ पर धो रहे हैं वो बेहद निंदनीय है। इस बहस में एक सबसे बड़ा सवाल दब गया है।वो सवाल है कि इंडिया टुडे ग्रुप अब अक्षय के परिवार के लिये क्या कर रहा है?
सिर्फ श्रध्दांजलि
अब तक सिर्फ श्रध्दांजलि देने के अलावा क्या किया गया है। सरकारों को घेरना बहुत आसान है। अक्षय की अंतिम यात्रा में अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिये सभी दलों के नेता पहुँच गए।
व्यापमं घोटाले में शामिल शिवराज सिंह और उमा भारती?
इनमें राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, डी राजा वगैरह थे। लेकिन इन नेताओं ने मीडिया के अंदर जो हालात हैं उन पर कभी सवाल नहीं उठाया। क्या ये नेता देश के मीडिया मुग़लों से ये पूछने की हिम्मत करेंगे कि आज पत्रकार बंधुआ मजदूर से भी बदतर हालत में क्यों है?
शक की लकीर
व्यापम तो कुछ ज्यादा ही व्यापक होता जा रहा है। इस मामले से जुड़े इतने लोगों की मौत शंका उत्पन्न करती है। अब एक पत्रकार की मौत ने शक की लकीर गहरी कर दी है, भले ही उसकी मौत हार्ट अटैक से हुई बताई जा रही हो। इस मामले की निष्पक्ष और प्रमाणिक जाँच जरूरी है।
मौत पर राजनीति
मौत पर राजनीति के चलते ये सवाल बहुत मायने रखता है कि आजतक की ड्यूटी पर फ़र्ज़ के लिए जान देने वाले इस पत्रकार को इंडिया टुडे ग्रुप कितना मुआवज़ा देगा। चैनेल के स्टार रिपोर्टर में शुमार अक्षय के परिवार को नियमतः 60 वर्ष तक का वेतन मुआवज़े के तौर पर मिलना चाहिए ताकि उसके परिवार की जरूरतें पूरी हो सकें।
सेवायोजक पत्रकारों को अपना ग़ुलाम मानने लगे हैं और पत्रकारों को भी सेवायोजकों से लड़ने की बजाय सरकार से रहत और मुआवज़ा दिलाने का रास्ता आसान लगता है जिसमें बिना संघर्ष के काम बन जाता है।