क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

'मरे' लड़के को ज़िंदा करने वाला पुलिस इंस्पेक्टर

राजू को पोस्टमॉर्टम के लिए ले जाया रहा थे लेकिन तभी वहां इंस्पेक्टर संजय कुमार पहुंच गए.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
एसएचओ संजय कुमार
BBC
एसएचओ संजय कुमार

संजय कुमार वैसे तो पुलिस इंस्पेक्टर हैं लेकिन राजू के परिवार के लिए वो किसी फ़रिश्ते से कम नहीं हैं.

शनिवार की शाम संजय रोज की तरह बाड़ा हिंदू राव के पुलिस थाने में बैठे थे जब छह बजे के लगभग पीसीआर से एक फ़ोन आया. पता चला कि उनके इलाके में 20-21 साल के एक युवक ने आत्महत्या कर ली है.

संजय ने फ़ौरन वहां कुछ पुलिसकर्मियों और एंबुलेंस को भेजा. कुछ मिनट बाद फिर फ़ोन आया कि युवक मर चुका है और उसे पोस्टमॉर्टम के लिए मुर्दाघर ले जाया जा रहा है."

संजय ने कहा कि वह ख़ुद घटनास्थल पर पहुंच रहे हैं और उनके वहां पहुंचने तक वो कहीं न जाएं.

वो बताते हैं, "मैं जब पहुंचा तो 40-50 लोग वहां पहले से इकट्ठे हो चुके थे. मैंने देखा कि एक दुबला-पतला शख़्स बेडशीट को अपने गले से लपेटे पंखे से लटका हुआ है."

राजू
BBC
राजू

संजय ने बताया कि पंखे की तीनों ब्लेड झुक गए थे और लड़के के पांव ज़मीन पर झूल रहे थे. उन्होंने पूछा तो पता चला कि किसी ने ये चेक ही नहीं किया था युवक वाक़ई मर चुका है या नहीं. चूंकि उसने फ़ांसी लगाई थी इसलिए लोगों ने उसे मरा मान लिया.

उन्होंने कहा, "मैंने जब देखा कि लड़के के पैर ज़मीन छू रहे थे तभी मुझे लगा कि वो मरा नहीं है. हमें ट्रेनिंग में बताया जाता है कि अगर फ़ांसी के दौरान पैरों को कोई सपोर्ट न मिले तो मौत होनी तय है क्योंकि उससे गर्दन के पिछले हिस्से की हड्डी टूट जाती है.''

कोटा: ख़ुदकुशी के लिए लटके तो पंखा करेगा शोर

मैं महिला थाने क्यों नहीं जाऊंगी?

संजय ने आगे कहा, "लेकिन इस मामले में लड़के के पैरों को ज़मीन का सहारा मिल गया था इसलिए मुझे उसके मरने पर शक़ था. मैंने तुरंत उसे पंखे से उतरवाया और उसके गले से फंदा खोला.''

राजू ने गले के चारों तरफ चादर को तेजी से कस रखा था इसलिए उन्हें गांठ खोलने में एक-दो मिनट का वक़्त लग गया. संजय के मुताबिक, "गांठ खोलते ही मैंने उसकी नब्ज़ चेक की. नब्ज़ चल रही थी...बहुत धीरे-धीरे. लेकिन चल रही थी.''

कमरा
BBC
कमरा

उन्होंने युवक को तुंरत पास के अस्पताल में भेजा. सात बजे तक राजू डॉक्टरों की देखरेख में था. वो बताते हैं, "आठ बजे के लगभग मैंने अस्पताल में फ़ोन किया और पता चला कि वो ख़तरे से बाहर है. डॉक्टरों का कहना था कि अगर उसे जल्दी अस्पताल न लाया जाता तो वो निश्चित तौर पर मर जाता."

एक दिन तक अस्पताल में रहने के बाद राजू घर लौट आया. वो ज़िंदा है और बिल्कुल ठीक भी.

अगर संजय ने सही वक़्त पर सही फ़ैसला न किया होता तो? तो राजू को मुर्दाघर पोस्टमॉर्टम के लिए ले जाया जाता. वहां उसे कपड़े में लपेटकर रात भर फ़्रीजर में रखा जाता जहां उसका मरना तय था.

महिला थाना बेहतर या थाने में महिला डेस्क?

ड्रोन उड़ाने वाले अपराधियों को कैसे पकड़ती है पुलिस?

इंस्पेक्टर संजय कुमार के रौबदार चेहरे पर किसी की ज़िंदगी बचाने की संतोष साफ़ देखा जा सकता है. वो विनम्रता से मुस्कुराते हुए कहते हैं, "मैंने बस वही किया जो एक पुलिसवाले का काम है. मैंने कुछ भी अलग या एक्स्ट्रा नहीं किया. जान बचाने वाला तो भगवान है."

राजू के पिता का कहना है कि उसे नशे की लत है और इसलिए उसे कई बार डांट-डपट दिया जाता है. इसी से नाराज़ होकर उसने ऐसा कदम उठाया.

दिल्ली पुलिस
Getty Images
दिल्ली पुलिस

संजय इस बात से इत्तेफ़ाक रखते हैं कि लोगों के मन में आमतौर पर पुलिस की नकारात्मक छवि होती है. उन्होंने कहा, "मैं वर्दी में सब्जी खरीदने से भी कतराता हूं. लोगों को लगता है कि पुलिसवाला है तो मुफ़्त मे वसूली कर रहा होगा. मैं इस बात को महसूस करता हूं."

वो कहते हैं, "पुलिस की नौकरी में लोगों की मदद करने के कई मौके आते हैं. मुझे ख़ुशी है कि मुझे किसी की ज़िंदगी बचाने का मौका मिला."

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Police Inspector Reviving Dead Boy
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X