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चमचमाते यतीमखानों वाले पंजाब का स्याह पहलू

मनप्रीत कौर बीए सेकेंड ईयर में है. आश्रम वालों ने ही नाभा के एक अच्छे परिवार में उसकी शादी की. वो गर्भवती हैं. आश्रम वालों ने उसके ससुराल वालों से कहा कि वो बीए कर रही है, चूंकि आश्रम से उसका कॉलेज नज़दीक है, इसलिए डिलीवरी तक वह यहीं रहेगी.

मनप्रीत के पति एक कंपनी में काम करते हैं. माता-पिता की मौत के बाद उसके दादा दादी दोनों भाई बहन को यहां छोड़ गए थे लेकिन बाद में वह इसके भाई को यहां से ले गए, लेकिन मनप्रीत को छोड़ गए.

By BBC News हिन्दी
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60 वर्षीय बीबी प्रकाश कौर मेरे किसी सवाल का जवाब नहीं देती हैं.

'यूनीक होम्स फ़ॉर गर्ल्स' की आलीशान इमारत के सामने घास के मैदान पर नंगे पांव टहलते हुए कमर पर हाथ रख कहती हैं, "मैंनूं छेड़ न, मैं बहुत पक्क गई हैं, पहलां मैनूं दस्स कि मुज़्ज़फरपुर वाले आदमी नू सज़ा होएगी या नहीं?"

फिर कहती हैं, "मन करदा ए किते दूर चली जांवां ते वाहेगुरु दा नाम जपां..."

मेरे सवालों पर वो कहती हैं, "मेरे पास तेरे हर सवाल का ये जवाब है कि यतीमख़ानों में छोटी लड़कियां बेची जा रही हैं और बड़ी लड़कियों का यौन शोषण हो रहा है, बस इससे आगे मुझसे बात न कर."

26 साल से प्रकाश कौर पंजाब के जालंधर में इस यूनीक होम के ज़रिए अनाथ और छोड़ दी गई बच्चियों को घर और मां का प्यार दे रही हैं. प्रकाश कौर की अपनी ज़िंदगी भी यतीमखाने में बीती है.

आगे की बातचीत के लिए वह एक शर्त पर राज़ी होती हैं, "इन्हें यतीम नहीं कहना, न इसे यतीमख़ाना, यह घर है मेरी बेटियों का."

बेरुख़ी के प्रतीक यतीमख़ाने

पंजाब के यतीमख़ाने यहां के समाज में दशकों से बेटियों के लिए अनिच्छा के गवाह रहे हैं. जालंधर के यूनीक होम्स फ़ॉर गर्ल्स में 60 लड़कियां हैं. बीबी प्रकाश कौर अपने पर्स से एक तस्वीर निकाल कर मेरे सामने रखती हैं और कहती हैं, "ऐ मेरी रूबा (बदला हुआ नाम), ऐ देख, ऐ अनाथ ऐ? कपड़े देख इसदे."

रूबा लंदन में पढ़ाई कर रही हैं. फिर वह मेरे सामने तस्वीरों के ढेर लगा देती हैं और कहती हैं मैंने तो अपने बच्चों की शॉपिंग भी कभी इंडिया से नहीं की.

बातचीत के दौरान दो महिलाएं आती हैं. प्रकाश कौर उन्हें आलू-प्याज़ छीलने का निर्देश देती हैं. मैंने पूछा कि आज आलू-प्याज़ की सब्ज़ी बनेगी? कहने लगीं- नहीं, बारिश का मौसम है, बच्चियां पकौड़े खाने के लिए बोल रही हैं.

नहीं बदली है मानसिकता

यूनीक होम समेत पंजाब के तमाम यतीमख़ानों की यह एकतरफ़ा तस्वीर है. पंजाब के मुख्य शहरों के यतीमखानों का दौरा करने पर देखा कि शानदार इमारतें, बच्चों के लिए अच्छा खाना, रहने की अच्छी व्यवस्था, करियर काउंसलर का आना, पीटीएम में जाना, नियम से हेल्थ चेकअप और उनकी पढ़ाई-लिखाई में ठीक है.

कुछ अपवाद ज़रूर हैं. फ़ंडिंग के ख़र्च में गड़बड़ी को लेकर कई यतीमख़ाने चर्चा में आते रहे हैं लेकिन यह चमचमाती तस्वीर एकतरफ़ा है.

तस्वीर का दूसरा पहलू स्याह है. वो यह है कि पंजाब में पैदा होने के बाद सुनसान जगहों पर, झाड़ियों में, कूड़ेदानों में रोज़ नवजात लड़कियों को फेंकें जाने की ख़बरें पढ़ने को मिलती हैं. ये लड़कियां पुलिस या हेल्प लाइन की ओर से इन यतीमख़ानों में भेजी जाती हैं तो कुछ लोग सीधे इनके बाहर लगे पालनों में बेटियों को सुला जाते हैं.

पंजाब में वर्ष 2001 में सीएसआर (चाइल्ड सेक्स रेशियो) 798 था जो वर्ष 2011 में बढ़कर 846 हो गया. आंकड़ें बेशक बदल गए हैं लेकिन बेटियों को फेंकने की मानसिकता में ख़ास फर्क़ नहीं आया है.

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'उन्हें नहीं चाहिए बीमार बेटे'

लुधियाना के तलवंडी खुर्द गांव में स्वामी गंगानंद जी भूरी वाले इंटरनेशनल फ़ाउंडेशन का यतीमख़ाना देश-विदेश में मशहूर है.

यहां के पालने में बेटियां तो हैं ही लेकिन ऐसे बेटे भी हैं जिन्हें बीमारी के चलते उनके 'मां-बाप ने फेंक दिया'. इसे चलाने वाले सरदार कुलदीप सिंह और बीबी जसबीर कौर छह महीने के सुमेल को पालने से उठा लेते हैं.

जसबीर कौर कहती हैं 'इसे फेंक दिया गया था क्योंकि इसके फेफड़ों में इंफेक्शन था. इलाज पर पांच लाख रुपये ख़र्च हुए, इसलिए हम सब इसे आश्रम का पंजलक्खा हार कहते हैं.'

यहां रहने वाले सुमेल और बलबीर लाइलाज बीमारी से पीड़ित हैं.

पालने में पड़ी तीन दिन की वंदना लुधियाना के पास डाबा में एक कूड़ेदान में पाई गई. उसकी आंखें नहीं हैं. सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक 12 साल की लड़की ने एक बेटी को जन्म दिया तो उसका परिवार बच्ची को यहां छोड़ गया.

कुछ करने की चाहत

दो दिन की प्रभसीरत को पडियाला में उसके परिवार ने एक कूड़ेदान के पास फेंक दिया. उसकी भी आंखें नहीं हैं.

अरमान के पालने के पास खड़े हो जाओ तो आप उसे गोद में लिए बिना रह ही नहीं सकते क्योंकि वो किसी को देखते ही पालने से बाहर निकलने की कोशिश करती है. गोद में आते ही उसकी बांछें खिल जाती हैं. इसके पिता उसे एक मोहल्ले के खाली प्लॉट में फेंक गए थे क्योंकि उनके पहले से दो बेटियां और एक बेटा था.

मनतेज नाम के लड़के को रेलवे स्टेशन पर एक बच्चा चोरी गैंग बेच रहा था तो पुलिस ने उन्हें धर लिया. वह तीन साल से यहां है.

खेतों में मक्के की लहलहाती फसल के बीचों बीच बने इस यतीमखाने में 47 बच्चे हैं. यहां बड़े लड़कों को नहीं लिया जाता है. इनमें तीन लड़के हैं और बाकी लड़कियां. ज़्यादातर बच्चों की आंखों में सपने और ऊर्जा देखकर लगता है कि कुछ करने के लिए ज़रूरी नहीं कि चांदी का चम्मच मुंह में लेकर पैदा हुआ जाए.

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हर बच्चे का है एक सपना

इस आश्रम में रह रही 12 वर्षीय ज्योति बाला पास के सेंट कबीर स्कूल में छठी क्लास में पढ़ती है. ज्योति के पास अपनी मां की कम यादें हैं. उसकी मां ने उसे गोद लिया था. कुछ साल पहले उसकी कैंसर से मौत हो गई. वो तीन साल से यहां पर है.

ज्योति कहती है 'मम्मी की याद कभी-कभी आती है लेकिन यहां फ्रेंड्स में अच्छा लगता है.' ज्योति को बड़े होकर जज बनना है.

वो उसकी वजह बताती हैं 'मेरे सामने जज आंटी ने मेरी मम्मी को बहुत रुलाया, उनकी बेइज्ज़ती की थी, घर आकर मम्मी बहुत रोती थी, मुझे बहुत गुस्सा आता था, मैंने तभी ठान लिया था कि मैं जज बनूंगी.'

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तेरह वर्षीय तनुजा को अपने बारे में खास जानकारी नहीं. वो नौ साल से यहां पर है. वो बताती है कि उसे गणित की पढ़ाई करनी है.

मनप्रीत कौर बीए सेकेंड ईयर में है. आश्रम वालों ने ही नाभा के एक अच्छे परिवार में उसकी शादी की. वो गर्भवती हैं. आश्रम वालों ने उसके ससुराल वालों से कहा कि वो बीए कर रही है, चूंकि आश्रम से उसका कॉलेज नज़दीक है, इसलिए डिलीवरी तक वह यहीं रहेगी.

मनप्रीत के पति एक कंपनी में काम करते हैं. माता-पिता की मौत के बाद उसके दादा दादी दोनों भाई बहन को यहां छोड़ गए थे लेकिन बाद में वह इसके भाई को यहां से ले गए, लेकिन मनप्रीत को छोड़ गए.

वर्ष 2003 में यह आश्रम शुरू किया गया था. तब से लेकर अब तक कुल चार लड़कियों की शादी की गई. जसबीर कौर और कुलदीप सिंह के मुताबिक़, समाज की एक सेट मानसिकता है कि बेटियां चाहिए ही नहीं और बेटा स्वस्थ चाहिए.

'बेटियों को फेंको मत, हमें दे दो'

वर्ष 1975 से चल रहे लुधियाना के निष्काम सेवा आश्रम में कुल 36 बच्चे हैं. इनमें चार लड़के हैं बाकी लड़कियां. सभी बच्चे स्कूल जाते हैं. यहां की इंचार्ज श्रुति बंसल का कहना है कि यहां की लड़कियां बाहरवीं की पढ़ाई के बाद फैशन डिज़ाइनिंग और इंजीनियरिंग जैसे कोर्स कर रही हैं.

वर्ष 1947 में जालंधर के माता पुष्पा गुजराल नारी निकेतन ट्रस्ट में रहने वाली 20 वर्षीय अमृत का सपना है कि वह या तो पुलिस ऑफ़िसर या आर्मी ऑफ़िसर बने.

माता-पिता की मौत के बाद उसके दादा दादी उसे यहां छोड़ गए थे. अमृत बताती हैं कि पढ़ाई के दौरान कई दफ़ा पता नहीं लगता है कि हम क्या करें, किस लाइन में जाएं लेकिन यहां करियर काउंसलर आते हैं.

ग्यारह साल की अर्शदीप को केवल अंग्रेज़ी बोलने का शौक है. वो बताती है कि इसे शानदार अंग्रेज़ी बोलना सीखना है. यहां कुल 41 लड़कियां हैं और 4 लड़के हैं. यहां की निदेशक नविता जोशी बताती हैं कि बेटियां आज भी भार हैं और ग़लत रिश्तों से आए बच्चों की समाज में कोई जगह नहीं.

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जालंधर में चाइल्ड हेल्पलाइन चलाने वाले सुरिंदर सैनी के अनुसार उनके पास पूरे पंजाब से हर दिन दो-तीन बच्चों को फेंके जाने की खबरें आती हैं.

कभी झाड़ियों में, कभी कुंए में, नालियों में, गलियों में, कूड़ेदान में, प्लास्टिक बैग में अधमरी हालत में लड़कियां मिलती हैं. जिन्हें कुत्तों ने नोचा होता है और चीटियां खा रही होती हैं. वो कहते हैं कि ग़रीबी, दहेज प्रथा, आलीशान शादियों के मंहगे रिवाज़ और असुरक्षा के चलते एक तबक़ा बेटियां नहीं चाहता है.

बेटे की चाहत पंजाब समेत पूरे देश में है, जिस वजह से कुछ घरों की बेटियां यतीमख़ानों के पालने में पलती हैं.

यूनीक होम की अलका दीदी कहती है 'बेटियों को बेरहमी से ना फेंके, हमें दे दो.'

वह कहती हैं पंजाब के समाज से जब तक 'हाय मुंडा', 'हाय मुंडा' ख़त्म नहीं होगा तब तक बेटियां कूड़ेदानों में फेंकी जाती रहेंगी.

पंजाब में जालंधर, अमृतसर, बठिंडा, पटियाला, लुधियाना समेत कई ज़िलों में ज़िला प्रशासन ने भंगूड़ा (पालना) भी लगाया है ताकि बच्चों को फेंकने की बजाय उसमें रख दिया जाए.

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English summary
Panorama of Punjab with shining orphanages
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