पाकिस्तान की साइबर सुरक्षा: पाकिस्तान की अहम हस्तियां और उनके दफ़्तर कितने सुरक्षित हैं
कुछ ऑडियो वायरल हुए हैं जिनमें कथित तौर पर प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़, मरियम नवाज़ और कुछ केंद्रीय मंत्री अलग-अलग मुद्दों पर बातचीत कर रहे हैं.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ और उनकी पार्टी मुस्लिम लीग (नवाज़) के संघीय मंत्रियों के बीच कथित बातचीत के ऑडियो डार्क वेब के बाद अब सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रहे हैं.
पाकिस्तान में राजनेताओं या सरकारी अधिकारियों के वीडियो और ऑडियो लीक होने का यह कोई पहला मामला नहीं है, हाल की घटना इसलिए अलग है क्योंकि इससे पहले पाकिस्तान के किसी प्रधानमंत्री या अहम शख्सियतों के कथित ऑडियो या वीडियो डार्क वेब पर लीक नहीं हुए थे और न ही बिक्री के लिए उनकी बोली लगाई गई थी.
इन ऑडियो के बारे में कहा जा रहा है कि ये ऑडियो प्रधानमंत्री आवास में हुई बातचीत के हैं, लेकिन सरकार मामले की पुष्टि करने से पहले जांच के नतीजों का इंतज़ार करती दिख रही है.
यह दावा ट्विटर पर @OSINT_Insider (ओपन सोर्स इंटेलिजेंस इनसाइडर) नामक एक अकाउंट से किया गया है जिनका कहना है कि सोशल मीडिया पर वायरल होने वाले ये ऑडियो 100 घंटे से भी ज़्यादा लंबे समय तक रिकॉर्ड किए गए डेटा का हिस्सा हैं.
ऑडियो ख़रीदने के लिए शुरूआती क़ीमत तीन लाख पैंतालीस हज़ार डॉलर तय की गई है.
ओपन सोर्स इंटेलिजेंस इनसाइडर का दावा है कि यह फ़ोन पर होने वाली बातचीत नहीं है, बल्कि पीएम ऑफ़िस में रिकॉर्ड की गई बातचीत है.
बीबीसी इन दावों की पुष्टि तो नहीं कर सकती, लेकिन इन ऑडियो के सामने आने के बाद पाकिस्तान की साइबर सुरक्षा एजेंसियों की कार्य शैली के साथ-साथ उन एजेंसियों की कार्य शैली पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं जो प्रधानमंत्री आवास समेत दूसरी महत्वपूर्ण सरकारी इमारतों की साइबर सुरक्षा की ज़िम्मेदारी संभालती हैं.
सरकार ने मामले की औपचारिक जांच शुरू कर दी है, लेकिन जांच में कौन से सवाल शामिल होंगे, इस बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है.
जांच शुरू हो गई है
संघीय गृह मंत्री राणा सनाउल्लाह का कहना है कि इस मामले की जांच शुरू हो चुकी है और अगर प्रधानमंत्री आवास में जासूसी के मक़सद से कोई उपकरण (डिवाइस) लगाया गया था तो यह एक 'संवेदनशील मामला' होगा.
जियो न्यूज़ के कार्यक्रम 'नया पाकिस्तान' में बात करते हुए राणा सनाउल्लाह का कहना था कि ''पीएम हाउस में कोई उपकरण लगा हुआ था या नहीं, इसके बारे में जांच के बाद ही पता चलेगा, नतीजे आने तक किसी भी बात को गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए.''
उन्होंने आगे कहा कि "जांच ऐसी टीम से करानी चाहिए जिसमें सभी एजेंसियों के उच्च-स्तरीय लोग शामिल हों."
हालांकि, गृह मंत्री ने यह भी कहा कि "इन ऑडियो से यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि प्रधानमंत्री आवास की सुरक्षा भंग हुई है. यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि ये बातचीत प्रधानमंत्री आवास में हुई है, हो सकता है कहीं और हुई हो."
गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बीबीसी को बताया है कि इस मामले की जांच के लिए एक जेआईटी बनाने का फ़ैसला किया गया है जिसमें ख़ुफ़िया एजेंसियों का भी एक प्रतिनिधि शामिल होगा.
किस-किस से होगी पूछताछ
गृह मंत्रालय के अधिकारी के मुताबिक़, इस टीम के पास प्रधानमंत्री आवास की सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार सिविल ख़ुफ़िया एजेंसी के निदेशालय को भी जांच में शामिल करने का अधिकार होगा. गृह मंत्रालय के अधिकारी का कहना था कि प्रधानमंत्री आवास और सचिवालय में पिछले छह महीनों के दौरान तैनात हुए स्पेशल ब्रांच के कर्मियों से भी पूछताछ होगी.
हालांकि, इस मामले में किसी भी इमारत से ज़्यादा महत्वपूर्ण वो लोग हैं जिनकी कथित बातचीत को गुप्त तरीक़े से रिकॉर्ड किया गया है और डार्क वेब पर बिक्री के लिए पेश गया है.
साइबर सुरक्षा के विशेषज्ञ शहज़ाद अहमद का कहना है कि यह मामला पैसे का नहीं लगता है और न ही किसी ख़ास पार्टी, संगठन या किसी एजेंसी तक सीमित है. यह एक देश के रूप में पाकिस्तान को शर्मिंदा करने का मामला है जिसके लिए सभी राजनीतिक दलों और ख़ुफ़िया एजेंसियों समेत हर पाकिस्तानी को चिंतित होना चाहिए.
डार्क वेब क्या है?
यह एक ऐसा गुमनाम वैश्विक इंटरनेट सिस्टम है जिसका पता लगाना लगभग नामुमकिन है और इसकी यही विशेषता इसे राजनीतिक कार्यकर्ताओं से लेकर आपराधिक गतिविधियों में शामिल सभी लोगों के बीच लोकप्रिय बनाती है.
इंटरनेट की इस 'ब्लैक मार्केट' में न सिर्फ़ सूचनाएं, बल्कि फर्ज़ी पासपोर्ट, हथियार, ड्रग्स और अश्लील सामग्री सब कुछ उपलब्ध है.
डार्क वेब असल में दुनिया भर में मौजूद ऐसे कंप्यूटर यूज़र्स का नेटवर्क है जिनका मानना है कि इंटरनेट को किसी क़ानून का पाबंद नहीं होना चाहिए और न ही क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों को इस पर नज़र रखनी चाहिए.
किसी भी यूज़र की डार्क वेब तक पहुंच उनके पास मौजूद पीयर-टू-पीयर फ़ाइल शेयरिंग टेक्नोलॉजी सॉफ़्टवेयर पर निर्भर करती है. इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल यूज़र्स और डार्क वेब वेबसाइटों की लोकेशन बदलने के लिए किया जाता है.
ख़ुफ़िया रिकॉर्डिंग कौन करता है?
ये वो महत्वपूर्ण प्रश्न है जो पहले भी पाकिस्तान के राजनेताओं और अन्य महत्वपूर्ण हस्तियों की तरफ़ से पूछा जाता रहा है और आज भी पूछा जा रहा है.
बीबीसी से बात करते हुए साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ शहज़ाद अहमद ने कहा कि अगर पाकिस्तान में राजनीतिक हस्तियों की बातचीत रिकॉर्ड करने की बात की जाए है तो फ़ोन कॉल रिकॉर्ड करने की सबसे पहली औपचारिक शिकायत पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो ने की थी.
हालांकि, लगभग सभी सरकारों के शासनकाल में यह सवाल उठाया जाता रहा है कि फोन कॉल की कथित टैपिंग या ऑडियो, वीडियो रिकॉर्डिंग कौन करता है और ये क्यों रिकॉर्ड की जाती हैं.
पूर्व सरकार में मंत्री और पीटीआई नेता शिरीन मज़ारी ने भी पिछले दिनों शौक़त तरैन के कथित ऑडियो लीक होने पर यही सवाल उठाया था.
पाकिस्तान की सिविलियन इंटेलिजेंस की एजेंसी इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के पूर्व प्रमुख मसूद शरीफ़ खटक ने पाकिस्तान में फोन टैप करने के सवाल और पिछली घटनाओं के बारे में बात करते हुए बीबीसी को बताया कि देश में काम करने वाली विभिन्न एजेंसियों के अपने लक्ष्य होते हैं और वो अपने अपने हिसाब से उनकी निगरानी करते हैं.
"क़ानूनी तौर पर आईबी के पास केवल 'सिविल एक्सचेंज' की निगरानी करने का अधिकार है और किसी अन्य एजेंसी के पास ऐसा करने का अधिकार नहीं है और यह भी केवल प्रधानमंत्री की अनुमति से ही संभव होता है और क़ानून भी यही है."
उनके मुताबिक़, कई बार चीज़ें बहुत तेज़ी से होती हैं और कभी कभी हालात ऐसे हो जाते हैं कि रोज़मर्रा की घटनाओं पर आईबी के महानिदेशक ख़ुद निर्णय ले लेते हैं, लेकिन इसकी मंज़ूरी प्रधानमंत्री द्वारा ही दी जाती है.
हालांकि, इस मामले में ज़ाहिरी तौर पर ख़ुद प्रधानमंत्री, उनके मंत्री और क़रीबी सहयोगी ही इस प्रक्रिया का निशाना बनते हैं.
शहज़ाद अहमद के मुताबिक़, इस स्थिति को सामने रखते हुए अगर संभावनाओं की बात करें तो यह भी संभव है कि किसी अहम व्यक्ति का फ़ोन हैक किया गया हो जिसमें लोकेशन की मदद से यूज़र की सहमति के बिना फ़ोन में मौजूद हॉट माइक का इस्तेमाल किया गया हो और कथित बातचीत का विवरण प्राप्त किया गया हो.
साइबर सुरक्षा की ज़िम्मेदारी किसकी होती है?
उनका कहना था कि "वैसे भी ज़्यादातर लोग स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं और अगर इसका सुरक्षित इस्तेमाल सुनिश्चित नहीं किया जाए, तो डेटा लीक होने की संभावना काफ़ी हद तक बढ़ जाती है."
उन्होंने कहा कि इसके अलावा, यह भी संभव है कि किसी ने इन बातों को रिकॉर्ड किया हो, लेकिन उसका इरादा इन रिकॉर्डिंग्स को डार्क वेब पर डालने का न हो और ये रिकॉर्डिंग हैकर्स के हाथों लग गई हों.
इंटेलिजेंस ब्यूरो के पूर्व संयुक्त महानिदेशक नवीद इलाही ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि "प्रधानमंत्री आवास या प्रेज़िडेंट हाउस या किसी भी संवेदनशील सरकारी इमारत की सुरक्षा में आमतौर पर तीन से चार सिविलियन और सुरक्षा एजेंसियां शामिल होती हैं. हालांकि, यह ज़िम्मेदारी मुख्य रूप से इंटेलिजेंस ब्यूरो की होती है.
उन्होंने कहा कि नियमों के अनुसार ख़ुफ़िया एजेंसियों के पास सुरक्षा के नाम पर बगिंग या जासूसी उपकरण लगाने का अधिकार नहीं होता है.
उन्होंने कहा कि "ऐसा करना बहुत ग़लत और ग़ैरक़ानूनी है, और अगर कोई ऐसा करता है, तो यह क़ानूनी तौर पर दंडनीय अपराध है."
क्या बग लगाया गया था?
नवीद इलाही के अनुसार, सामान्य तौर पर, राष्ट्रपति आवास या प्रधानमंत्री आवास में आयोजित होने वाली बैठकों में मोबाइल फ़ोन अंदर ले जाने की इजाज़त नहीं होती है.
"दूसरी बात यह, कि उस जगह (प्रधानमंत्री आवास) को डिबग करने की ज़िम्मेदारी आईबी की होती है और आईबी की टेक्निकल टीमें रोज़ाना चेकिंग करती हैं और कभी-कभी दिन में दो बार भी चेकिंग की जाती है."
उन्होंने कहा कि असल बात की जानकारी तो जांच के बाद ही सामने आ सकती है, लेकिन मुझे लगता है कि संभावित तौर पर यह हो सकता है कि कोई सुरक्षा को बाईपास करते हुए मोबाइल को अंदर ले जाने में कामयाब हुआ है और दूसरा संभावित मामला यह हो सकता है कि कोई रिकॉर्डिंग डिवाइस लेकर अंदर गया हो.
उन्होंने आगे कहा कि "ख़तरनाक बात यह है कि अगर किसी ने कथित तौर पर बग लगाया है तो वह समय पर पकड़ा नहीं गया या उसका पता नहीं लगाया जा सका."
उन्होंने कहा कि "इस मामले की जांच होना बेहद ज़रूरी है क्योंकि अगर ऐसा हुआ है तो बिना किसी आंतरिक मदद के यह संभव नहीं है जो हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरनाक बात है."
पाकिस्तान की साइबर सुरक्षा कितनी सुरक्षित है?
इस बारे में बात करते हुए शहज़ाद अहमद ने कहा कि "एक तरफ़ सरकार है और दूसरी तरफ देश है. मैं समझता हूं कि हमारे देश में साइबर सुरक्षा की देखभाल करने के लिए सभी तरह के उपकरण और टेक्नोलोजी मौजूद है, लेकिन सरकार जिसमें कैबिनेट और मंत्रालय भी आते हैं, उन्हें इस बात का एहसास नहीं है कि साइबर सुरक्षा कितनी अहम चीज़ है?"
उन्होंने आगे कहा कि "जब आपके पास सुरक्षित साइबरस्पेस ही मौजूद नहीं ह, तो कुछ भी हो सकता है."
इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, कि "अगर आप देखें तो हमारे ज़्यादातर सरकारी अधिकारियों और कर्मियों के ईमेल हॉटमेल, याहू या जीमेल पर बनाए जाते हैं. पाकिस्तान में, 'एनटीसी' नामक एक एजेंसी मौजूद है, उसकी यह भी ज़िम्मेदारी होती है कि वो सभी सरकारी लोगों के लिए सुरक्षित ई-मेल बनाए, ताकि इसके माध्यम से सरकारी मामलों और सूचनाओं को पहुंचाया जा सके."
"आमतौर पर सचिव के पद तक, आधिकारिक ईमेल बना दिए जाते हैं, लेकिन अधीनस्थ कर्मचारी और अन्य अधिकारी आमतौर पर सरकारी माध्यमों के अलावा निजी सर्वर पर काम कर रहे हैं, और इसका मतलब यह है कि आपका डेटा सुरक्षित नहीं है."
उन्होंने कहा कि "हमारे यहां साइबर सुरक्षा के मामले यूरोप या अन्य देशों की तरह अच्छे नहीं हैं, क्योंकि यहां ऐसा कोई औपचारिक क़ानून नहीं है जो इन मामलों में जवाब मांगना संभव बना सके. साइबर क्राइम के क़ानून का इस्तेमाल भी देश की मर्ज़ी के मुताबिक़ होता है, इसलिए पाकिस्तान के लिए उनका सिस्टम भी कमज़ोर है."
इस स्थिति में, यह देखना होगा कि क्या ऑडियो लीक का मुद्दा पाकिस्तान में एक मज़बूत साइबर सुरक्षा नीति की वजह बनता है या पिछले ऑडियो लीक की तरह कुछ हफ्तों के बाद इसे भी भुला दिया जाता है.
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