भारत ने चीन को दिया संदेश, दलाई लामा और तिब्बत पर पुराने रुख पर हैं कायम
भारत ने एक बार फिर दलाई लामा और तिब्बत पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। भारत की ओर से चीन को साफ-साफ कहा गया है कि भारत-चीन बॉर्डर पर तनाव के बावजूद भी दलाई लामा पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं है।
नई दिल्ली। भारत ने एक बार फिर दलाई लामा और तिब्बत पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। भारत की ओर से चीन को साफ-साफ कहा गया है कि भारत-चीन बॉर्डर पर तनाव के बावजूद भी दलाई लामा पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं है। भारत की ओर से यह स्पष्टीकरण उस खबर के बाद आया है जिसमें सरकारी अधिकारियों और संस्थानों को तिब्बत की निर्वासित सरकार की ओर से एक साल तक चलने वाले कार्यक्रमों से दूर रहने को कहा गया था। तिब्बत की सरकार की ओर से यह आयोजन 'थैंक्यू इंडिया' कैंपेन के तहत किया जा रहा है। गुरुवार को एक मीडिया रिपोर्ट में ऐसी बातें थीं कि भारत सरकार ने सभी अधिकारियों को दलाई लामा के आयोजन वाले तिब्बत सरकार के इस कार्यक्रम से दूर रहने की हिदायतें दी हैं। दलाई लामा के भारत आने के 60 वर्ष पूरे होने पर इस कैंपेन के तहत कई तरह के आयोजन किए जाएंगे।
विदेश मंत्रालय ने दी सफाई
विदेश मंत्रालय की ओर से शुक्रवार को साफ कर दिया गया है कि भारत ने तिब्बत और तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के रुख में कोई परिवर्तन नहीं किया है। दलाई लामा आज भी पूरे देश में कहीं भी जाने और किसी भी कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए स्वतंत्र हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा, 'वह आज भी भारत के लोगों के पूजनीय और सम्मानित धार्मिक गुरु हैं। भारत की स्थिति में उन्हें लेकर कोई भी परिवर्तन नहीं हुआ है। वह आज भी भारत में अपनी धार्मिक गतिविधियों को संचालित करने के लिए स्वतंत्र हैं।' जो मीडिया रिपोर्ट्स इससे पहले आई थीं उनमें कहा गया था कि कैबिनेट सेक्रेटरी ने विदेश सचिव विजय गोखले की सलाह पर सभी मंत्रियों और अधिकारियों से तिब्बती कार्यक्रमों में न जाने को कहा है। नोट के हवाले से कहा गया था कि ऐसा करने से चीन के साथ तनाव बढ़ सकता है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो गोखले ने खासतौर पर, 'थैंक्यू इंडिया' कैंपेन का जिक्र अपने नोट में किया था। हालांकि रवीश कुमार ने इस नोट और सरकार की सलाह का कोई भी जिक्र अपने बयान में नहीं किया।
क्या सोचते हैं विशेषज्ञ
कई विशेषज्ञों ने हालांकि भारत के फैसले को दुर्भाग्यूपर्ण करार दिया था। दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में प्रोफेसर ब्रह्मा चेलानी ने इस पूरे मुद्दे पर ट्वीट किया। उन्होंने अपनी ट्वीट में लिखा था कि जब चीन ने ब्रह्मपुत्र से जुड़े आंकड़ें साझा किए और तिब्बत में स्थित दो पवित्र जगहों पर जाने से भारतीय तीर्थयात्रियो को रोक दिया तो उसने दो द्विपक्षीय एमओयू का उल्लंघन किया था। लेकिन विदेश मंत्रालय खामोश था। अब भारत को इसका उलटा करना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। गुरुवार को रक्षा राज्य मंत्री सुभाष भामरे ने चीन से सटी सीमा पर तनाव बढ़ने की आशंका जताई थी। उन्होंने कहा था कि लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर हालात काफी संवेदनशील हैं क्योंकि पेट्रोलिंग, अतिक्रमण और स्टैंडऑफ की वजह से इसकी संभावनाएं बढ़ गई हैं।
सरकार की सलाह का क्या मतलब है
माना जा रहा है कि गोखले ने इसलिए सरकारी अधिकारियों को सलाह दी थी क्योंकि वह इस तरह के किसी भी तनाव से बचना चाहते थे। उन्होंने चीन के विदेश मंत्री कॉन्ग झुआनयू से बातचीत के लिए बीजिंग जाने से पहले पिछले माह यह सलाह सरकारी अधिकारियों को दी थी। गोखले ने उसी समय चीन का दौरा किया था जब तिब्बत की ओर से एक वर्ष तक चलने वाले कैंपेन का ऐलान किया गया था। इस कार्यक्रम को आयोजित करने वाले डॉक्टर लॉबसांग सांगे ने कहा था, 'भारत की ओर से मेहमाननवाजी और उदारता का जो हाथ बढ़ाया गया था उसकी वजह से दलाई लामा को निर्वासन से आजादी मिली। इसी आजादी की वजह से उन्होंने पूरी दुनिया में एक नेक, परोपकारी और उदारता के लिए एक संस्था की शुरुआत की और आज वह दुनिया भर के लोगों के लिए अपना जीवन समर्पित कर रहे हैं।' सांगे सेंट्रल तिब्बती एडमिनिस्ट्रेशन के प्रेसीडेंट हैं।
31 मार्च 1959 को भारत आए थे दलाई लामा
31 मार्च 1959 को अरुणाचल प्रदेश के रास्ते दलाई लामा ने भारत में प्रवेश किया था। इस मौके पर कम से कम 60 भारतीय 17 मार्च को एक शांति यात्रा निकालेंगे। यह यात्रा 31 मार्च को दिल्ली में खत्म होगी। तिब्बत की सरकार की ओर से बयान दिया गया है कि दलाई लामा के आर्शीवाद के साथ सेंट्रल तिब्बत प्रशासन और पूरे भारत में फैले तिब्बत के लोग साल 2018 में एक वर्ष तक कार्यक्रमों का आयोजन करेंगे और इसमें शिरकत करेंगे। दिल्ली में 31 मार्च से लेकर सात अप्रैल तक कार्यक्रम आयोजित होंगे तो वहीं बैंगलोर, शिमला और देश के 20 शहरों में भी कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।