लोकसभा चुनाव 2019: मालवा-निमाड़ में फिर बागियों से परेशान भाजपा और कांग्रेस
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव की घोषणा होते ही मध्यप्रदेश में 29 सीटों के लिए प्रत्याशियों की खोज शुरू हो गई है। मालवा और निमाड़ की कई महत्वपूर्ण सीटों पर कश्मकश जारी है। विधायक बनने के कारण कांग्रेस ने नीति बनाई है कि जो नेता विधानसभा का चुनाव जीते है, उन्हें लोकसभा चुनाव का टिकट नहीं दिया जाए। इससे कई विधायक अपने आप दौड़ से बाहर हो गए। भारतीय जनता पार्टी भी अपने अंदरूनी विरोधाभासों के कारण दुविधा में है। दोनों ही पार्टियों के लिए उम्मीदवार का चयन चुनौतीपूर्ण है।
सुषमा स्वराज और सुमित्रा महाजन की सीट बनी भाजपा के लिए परेशानी का सबब
कांग्रेस और भाजपा दोनों ही प्रत्याशियों के चयन में बेहद सावधानी बरत रही हैं। विधानसभा चुनाव के साथ ही लोकसभा चुनाव के संभावित उम्मीदवारों के नामों की अटकलें शुरू हो गई थी। भाजपा की वरिष्ठ नेता और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पहले ही घोषणा कर चुकी थीं कि वे लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगी, इसलिए भारतीय जनता पार्टी चाहती है कि उनकी अनुपस्थिति में जो भी उम्मीदवार खड़ा हो, उसका कद सुषमा स्वराज जैसा हो। यह भाजपा की पक्की सीट मानी जाती है, इसलिए इस सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले नेता कई हैं।
इंदौर से सुमित्रा महाजन लगातार 8 बार लोकसभा चुनाव जीत चुकी हैं। उन्होंने अब भी इच्छा जाहिर की है कि वे लोकसभा चुनाव लड़ें और भारतीय जनता पार्टी के ही वरिष्ठ नेता सत्यनारायण सत्तन ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल लिया है। सत्तन यहां तक घोषणा कर चुके है कि अगर पार्टी ने इस बार सुमित्रा महाजन को टिकट दिया, तो वे निर्दलीय रूप से नामांकन पत्र भरेंगे और पार्टी के फैसले का विरोध करेंगे। कांग्रेस में अभी ऐसा कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं है, जो सुमित्रा महाजन को टक्कर दे सकें। उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी इंदौर से कांग्रेस के प्रमुख उम्मीदवार माने जा रहे थे, लेकिन पार्टी घोषणा कर चुकी है कि वह विधायकों को लोकसभा चुनाव के मैदान में नहीं उतारेगी। सत्यनारायण पटेल, पंकज संघवी और शोभा ओझा जैसे कई कांग्रेसी नेता इंदौर में चुनाव हार चुके हैं। अब कांग्रेस जिस भी व्यक्ति के नाम की चर्चा करती है, उसका कद सुमित्रा महाजन के सामने छोटा ही बैठता है।
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कांग्रेस की भी हालत अच्छी नहीं
लक्ष्मीनारायण पाण्डे जैसे वरिष्ठ नेता की सीट मंदसौर जावरा पर कांग्रेस की हालात अच्छी नहीं है। कांग्रेस की मीनाक्षी नटराजन में 2009 ने भाजपा के लक्ष्मीनारायण पाण्डे को चुनाव में मात दी थी। पिछले चुनाव में मीनाक्षी नटराजन हार चुकी थी। अब वे फिर टिकट की आस लगाए हुए हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में जो उम्मीदवार हारे थे, वे मीनाक्षी के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे हैं। ऐसे में मीनाक्षी को टिकट मिलना आसान हीं है और अगर मिल भी जाए, तो जीतना चुनौतियों से भरा होगा, क्योंकि मंदसौर-जावरा संसदीय क्षेत्र की 8 में से 7 विधानसभा भारतीय जनता पार्टी के कब्जे में है।
मनोहर ऊंटवाल देवास शाजापुर क्षेत्र में सांसद थे। अब वे लोकसभा से इस्तीफा देकर आकर से विधानसभा चुनाव जीत चुके है। विधानसभा चुनाव में ही उनका काफी विरोध हो रहा था। अब यहां से फिर केन्द्रीय मंत्री थावरचंद गेहलोत का नाम आगे लाया जा रहा है। सज्जन सिंह वर्मा इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, लेकिन पार्टी उनको भी टिकट नहीं दे रही है, क्योंकि वे मंत्री है। सज्जन सिंह वर्मा ने अपने बेटे पवन वर्मा का नाम पार्टी में काफी आगे बढ़ा रखा है, लेकिन उन्हें टिकट मिलेगा, उसमें संदेह है।
यह लगभग तय है कि धार-महू विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस गजेन्द्र सिंह कालूखेड़ी को फिर मैदान में लाएगी। वे यहां से दो बार सांसद रह चुके हैं। यहां से पूर्व उप मुख्यमंत्री शिवभानु सोलंकी के पुत्र सूरज भानु सोलंकी भी कांग्रेस का टिकट पाने के लिए कोशिश कर रहे है। पिछले चुनाव में यहां से भाजपा की सावित्री ठाकुर जीती थी। उनके बारे में कार्यकर्ता भी अच्छी राय नहीं रखते। पूर्व कैबिनेट मंत्री रंजना बघेल और सरदारपुर से विधायक मुकाम सिंह यहां से भाजपा की उम्मीदवारी चाहते है।
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निवाड़ में भाजपा और कांग्रेस
निमाड़ क्षेत्र की महत्वपूर्ण सीट खंडवा में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही उम्मीदवार की तलाश में है। वर्तमान में यहां से भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान प्रतिनिधि हैं, लेकिन उनका तगड़ा विरोध हो रहा है। शिवराज सिंह चौहान के विरोधी खेमे की कमान पूर्व मंत्री अर्चना चिटनिस के हाथों में है। जिन्हें भाजपा के ही कार्यकर्ताओं ने विधानसभा चुनाव में हरवा दिया था। भाजपा कार्यकर्ता सम्मेलन में भी नंदकुमार सिंह चौहान का विरोध खुलकर सामने आया, ऐसे में भाजपा नंदकुमार सिंह चौहान को टिकट देने के बजाय नए नामों की तलाश कर रही है। कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव के खिलाफ भी कार्यकर्ताओं का एक वर्ग सक्रिय है। कांग्रेस का ही एक वर्ग यहां से परमजीत सिंह नारंग का नाम आगे कर रहा है। अरूण यादव इस प्रयास में है कि वे मंदसौर या कोई ऐसी जगह से टिकट पा जाए, जहां उन्हें जातिगत वोटों का लाभ मिले।
पूर्व केन्द्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया की सीट मानी जाने वाली झाबुआ में भी कांग्रेस को विरोधों का सामना करना पड़ रहा है। झाबुआ सीट से उनके बेटे विक्रांत भूरिया को विधानसभा टिकट दिया गया था, जिसका कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने विरोध किया था। यही से कांग्रेस के बागी उम्मीदवार जेवियर मीणा खड़े हुए और इस चक्कर में भाजपा यहां से जीत गई। अब कांतिलाल भूरिया यहां से उम्मीदवारी चाहते हैं, तो जेवियर मीणा ने भी फिर बागी उम्मीदवार के रूप में लड़ने का फैसला कर लिया है। पूर्व आईएएस के पति गुमान सिंह डामोर सरकारी नौकरी छोड़कर झाबुआ से चुनाव में खड़े हुए थे, वे विधानसभा चुनाव जीत गए। उनके नाम पर भी चर्चा है कि शायद वे लोकसभा चुनाव लड़ें, लेकिन फिर विधायक को टिकट नहीं देने का फार्मूला आड़े आ रहा है।
बहुत कम सीटें हैं जहां उम्मीदवार का चयन आसान है। अधिकांश सीटों पर कश्मकश जारी है। कुछ सीटें ऐसी भी हैं, जहां उम्मीदवार ही खोजना मुश्किल है। यह हालत भाजपा और कांग्रेस दोनों की है।
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