मध्य प्रदेश: क्या अब 22 पूर्व कांग्रेसी विधायक भाजपा के लिए बनेंगे मुसीबत ?
नई दिल्ली- मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को अगली एक और पारी मिलती नजर आ रही है। लेकिन, अगर प्रदेश के सियासी समीकरणों का ठीक से विश्लेषण करें तो राज्य की राजनीति के 'मामा' कहलाने वाले पूर्व सीएम चौहान ज्यादा से ज्यादा 6 महीने तक खैरियत से सरकार चला सकते हैं। अगर वे अपना कार्यकाल पूरा करना चाहेंगे तो उन्हें राज्य की उन 25 सीटों में से कम से कम 10 पर भाजपा को चुनाव जिताने होंगे, जहां आने वाले 6 महीनों में उपचुनाव कराए जाएंगे। इन 25 सीटों पर 22 सीटें वो हैं, जहां के विधायकों ने कांग्रेस के 'कमल' को मुरझाने का काम किया है। इन 25 सीटों पर भाजपा का प्रदर्शन शिवराज सिंह के लिए क्यों चुनौती भरा रहने वाला है, इसके लिए इस आलेख को पूरा पढ़िए।
मध्य प्रदेश विधानसभा का मौजूद गणित
230 सीटों वाले मध्य प्रदेश विधानसभा में आज की तारीख में सिर्फ 205 विधायक हैं। क्योंकि, 2 सीटें पहले से ही खाली थीं। मौजूदा स्पीकर एनपी प्रजापति ने पहले 6 कांग्रेसी मंत्रियों का इस्तीफा लिया। सुप्रीम कोर्ट से फ्लोर टेस्ट का आदेश मिलने पर बाकी 16 बागी (सभी 22 बागी कांग्रेस विधायक सिंधिया समर्थक) विधायकों का भी इस्तीफा ले लिया। पिछले सोमवार को जब शिवराज सिंह चौहान राजभवन में भाजपा के 107 विधायकों में से सिर्फ 106 विधायकों का ही परेड करा पाए थे, तभी लग रहा था कि बीजेपी भी गच्चा खाने वाली है। शुक्रवार सुबह स्पीकर एनपी प्रजापति ने उसपर से भी पर्दा उठा दिया। वे बोले- 'भाजपा विधायक शरद कोल ने भी इस्तीफा दिया था, जिसे मंजूर किया जा चुका है।' यानि मध्य प्रदेश विधानसभा में बहुमत के लिए जादुई आंकड़ा अभी सिर्फ 103 का ही रह गया है।
शिवराज की सत्ता में वापसी के पूरे आसार
आज की तारीख में शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश में नई सरकार बनाने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। साधारण बहुमत के लिए उन्हें महज 103 विधायक चाहिए और बीजेपी के पास अपने 106 विधायक हैं। जबकि, कांग्रेस के पास सिर्फ 92 विधायक रह गए हैं। कमलनाथ सरकार को 4 निर्दलीय, एक सपा और 2 बसपा विधायकों का भी समर्थन था। लेकिन, निर्दलीय विधायकों की ओर से माहौल बदलने के साथ ही पलटी मारने की शुरुआत कर दी गई है। निर्दलीय एमएलए प्रदीप जायसवाल ने कमलनाथ के इस्तीफे के फौरन बाद कह दिया कि उनके पास जनता की सेवा के लिए भाजपा के साथ जाने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं है। उधर, होली के दिन से जब मध्य प्रदेश में सियासी संकट शुरू हुआ था, तभी शिवराज सिंह को शुभकामनाएं देने वालों में सपा के विधायक भी थे, हमें बदलते हुए राजनीतिक घटनाक्रम में उसे भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। मतलब साफ है कि अभी बीजेपी को वहां चौथी बार सरकार बनाने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
6 महीने में 25 सीटों पर उपचुनाव
राज्य में आने वाले 6 महीनों के अंदर सभी खाली पड़ी 25 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। जिनमें से दो सीटें तो पहले से ही खाली पड़ी हैं। यानि, अगर शपथग्रहण के बाद भी शिवराज सिंह चौहान ने बाकी तीनों निर्दलीय विधायकों को भी अपने पाले में कर लिया, तब भी उनके पास बहुमत का आंकड़ा 110 तक ही पहुंचेगा। जबकि, 230 विधायकों की क्षमता वाले सदन में स्थिर सरकार के लिए उन्हें 116 विधायकों की दरकार होगी। इसके लिए उन्हें बीजेपी के दम पर स्थिर सरकार के लिए 25 में से कम से कम 10 सीटों पर पक्की जीत चाहिए। क्योंकि, निर्दलीय तो निर्दलीय ही रहेंगे। पार्टी को अपने दम पर पूर्ण बहुमत की जरूरत पड़ेगी। नहीं तो उसका भी कार्यकाल पूरा कर पाना मुश्किल ही होगा। भाजपा की असली चुनौती यहीं से शुरू होगी।
22 सीटों पर उप चुनाव रहेंगे अहम
मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक जिन 22 बागियों ने कमलनाथ की सरकार गिराई है, उनमें से 15-16 चंबल इलाके से आते हैं। ये सिंधिया के प्रभाव वाला इलाका माना जा सकता है। बाकी विधायक दूसरे इलाकों के भी हैं और सब जगह सिंधिया का उतना प्रभाव नहीं है। ऊपर से ये इलाका भाजपा के दिग्गजों नरेंद्र सिंह तोमर और प्रभात झा का भी गढ़ है। केंद्रीय मंत्री तोमर ग्वालियर से सांसद भी हैं और सिंधिया को लाने में उनकी बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है। जबकि, एक अहम किरदार वरिष्ठ भाजपा ने नरोत्तम मिश्रा भी हैं जो 22 विधायकों के साथ कमलनाथ सरकार के खिलाफ खेमेबाजी करने में बहुत बड़ा रोल निभा चुके हैं। यानि उन सभी विधायकों की जीत सुनिश्चित करना और अपने निजी हितों के साथ भी तालमेल बिठाना कुछ नेताओं के लिए परेशानी का सबब बन सकता और खींचतान ऐसे ही शुरू होती है।
वही 22 बागी कांग्रेसी बनेंगे भाजपा की मुसीबत ?
अब विवाद तब शुरू होगा जब इन 22 सीटों पर उपचुनाव होंगे। इस सीटों पर कांग्रेस से आने की वजह से सभी बागियों की स्वाभाविक दावेदारी रहेगी। जबकि, पिछले विधानसभा चुनाव में 22 में से कम से कम 6 सीटों पर बीजेपी प्रत्याशी साढ़े तीन सौ लेकर 97 सौ वोटों तक से ही हारे थे। बाकी कई सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशियों ने भाजपा के कई दिग्गजों को भी हराया था, जिसमें जयभान सिंह पवैया जैसे नेता भी शामिल हैं। अब सवाल उठता है कि क्या भाजपा के नेता टिकट के लिए अपनी दावेदारी इतनी आसानी से छोड़ देंगे। यही नहीं क्या सिर्फ सिंधिया समर्थकों के लिए तोमर, झा और मिश्रा जैसे दिग्गज अपने समर्थकों को मायूस होने देने के लिए तैयार हो जाएंगे। इन सारी चुनौतियों से भाजपा नेतृत्व और भावी मुख्यमंत्री को दो-चार होना ही पड़ेगा। ऐसे में जो विधायक बड़ी उम्मीदों से विधायकी गंवा कर भाजपा के पाले में आए हैं, वो जरा भी समझौता करने के लिए तैयार होंगे यह बड़ा सवाल है?
इसे भी पढ़ें- कमलनाथ ने बताया उनके कौन-कौन से अच्छे काम भाजपा को रास नहीं आए