'बच्चों के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती है मेड इन इंडिया नेजल वैक्सीन', WHO की प्रमुख वैज्ञानिक का भरोसा
नई दिल्ली, 23 मई: भारत में बन रही नेजल वैक्सीन को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक को काफी उम्मीदें हैं। उन्होंने भरोसा जताया है कि यह वैक्सीन बच्चों के लिए रामबाण की तरह काम कर सकती है। लेकिन, इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि जबतक यह वैक्सीन आ नहीं जाती है, तबतक बच्चों की सुरक्षा बहुत अहम है और स्कूल तबतक नहीं खोले जाने चाहिए जबतक कि कम्यूनिटी ट्रांसमिशन की आशंका बहुत कम न हो जाए। डब्ल्यूएचओ की वैज्ञानिक का कहना है कि नेजल वैक्सीन कोरोना वायरस को सांस की नली में ही खत्म कर देगी।
'मेड इन इंडिया नेजल वैक्सीन गेमचेंजर साबित होगी'
विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामिनाथन ने उम्मीद जताई है कि भारत में बनाई जा रही नेजल वैक्सीन बच्चों के लिए गम चेंजर साबित हो सकती है। उन्होंने ऐसे समय में यह भरोसा जताया है जब देश कोरोना की संभावित तीसरी लहर को लेकर बहुत ही ज्यादा आशंकित है। क्योंकि, तीसरी लहर में सबसे ज्यादा बच्चे ही असुरक्षित माने जा रहे हैं। डॉक्टर स्वामिनाथन पीडियाट्रिशियन भी हैं और उन्होंने सीएनएन-न्यूज18 से कहा है, 'कुछ नेजल वैक्सीन जो भारत में बनने जा रही हैं, वह बच्चों के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती हैं- इसे देना आसान है और इससे आपको रेसपिरेटरी ट्रैक्ट में लोकल इम्यूनिटी मिल जाएगी।' हालांकि, उन्होंने यह भी कहा है कि वैसे इस साल इस वैक्सीन के आने की संभावना कम है।
हमारे पास बच्चों की वैक्सीन होने की उम्मीद- सौम्या स्वामिनाथन
डॉक्टर सौम्या का कहना है कि जबतक नेजल वैक्सीन नहीं आती, ज्यादा से ज्यादा व्यस्कों को और उनमें भी शिक्षकों को वैक्सीन लगाने की जरूरत है। उन्होंने कहा है कि स्कूल तभी खोले जाएं, जब कम्यूनिटी ट्रांसमिशन का खतरा कम हो। उन्होंने कहा, 'मैं पूरी तरह से आशांवित हूं कि आखिरकर हमारे पास बच्चों के लिए वैक्सीन होगी। लेकिन, यह इस साल नहीं होने जा रहा है....और हमें तभी स्कूल खोलने चाहिए जब कम्यूनिटी ट्रांसमिशन कम हो। दूसरे देशों ने भी बाकी सावधानियों के साथ यही किया है। और अगर टीचरों का टीकाकरण हो जाता है तो यह बहुत बड़ा कदम होगा।' बता दें कि भारत में कोवैक्सिन बनाने वाली भारत बायोटेक भी नेजल वैक्सीन पर काम कर रही है, जिसे दोनों नाकों में दो-दो बूंद डालनी होगी। वैसे हाल ही में भारत बायोटेक की कोवैक्सिन को 2 साल से 18 साल के बच्चों और किशोरों में भी इंजेक्शन वाली वैक्सीन की ट्रायल की मंजूरी दी गई है। जबकि, अमेरिका में फाइजर की वैक्सीन को 12 से 17 के उम्र के किशारों को इसे लगाने की इमरजेंसी इजाजत दी भी जा चुकी है।
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पीएम मोदी ने भी बच्चों में ट्रांसमिशन पर आंकड़े जुटाने को कहा है
शनिवार को ही केंद्र सरकार ने कहा है कि बच्चे इंफेक्शन से इम्यून नहीं हैं, लेकिन इस बात जोर भी दिया है कि उनपर इसका बहुत कम असर पड़ता है। नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) वीके पॉल ने कहा, 'अगर बच्चे कोविड से संक्रमित होते हैं, या तो उनमें कोई लक्षण नहीं होते या बहुत ही हल्के लक्षण होते हैं। आमतौर पर उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाने की जरूरत नहीं होती।' वैसे उन्होंने बच्चों के लिए हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को पूरी तरह से तैयार करने पर जोर दिया है,लेकिन साथ ही यह बात दोहराई है कि सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि बच्चों को ट्रांसमिशन की चेन का हिस्सा ही नहीं बनने दिया जाए। पॉल ने बताया कि भारत और बाकी दुनिया में भी अस्पताल में दाखिल होने वाले मरीजों में बच्चों की तादाद करीब 3 से 4 फीसदी है। लेकिन, उन्होंने विशेष तौर पर 10 से 12 साल के बच्चों पर ज्यादा ध्यान देने की बात कही, जो बहुत ही ज्यादा गतिशील होते हैं। हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राज्यों और जिला अधिकारियों की बैठक में बच्चों और युवाओं में ट्रांसमिशन और गंभीरता के आंकड़े जुटाने को कहा है।