राजस्थान: असल लड़ाई से पहले भाजपा के भीतर घमासान
जयपुर। राज्य से उम्मीदवारों की पहली सूची जारी होते ही भाजपा में बग़ावत के स्वर उभरने लगे हैं। कुछ जगह बाहरी उम्मीदवार के नाम पर विरोध हो रहा है, तो कुछ स्थानों पर प्रत्याशी का रिपीट होना स्थानीय नेतृत्व और कार्यकर्ताओं को अखर रहा है। हालांकि साफ़ बोलने का खतरा उठाने को कोई तैयार नहीं, लेकिन इस सबके लिए भाजपा की प्रदेश इकाई में दबे-छुपे आलाकमान की टिकट वितरण में जल्दबाज़ी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
लिस्ट जारी होने से भी पहले से घमासान
पार्टी के बीकानेर से सांसद और केन्द्रीय जल संसाधन, गंगा विकास तथा संसदीय कार्य मंत्री अर्जुनराम मेघवाल का तीव्र विरोध तो उम्मीदवारों की सूची जारी होने से पहले ही शुरू हो गया था। वरिष्ठ नेता देवी सिंह भाटी का आरोप था कि मेघवाल सिर्फ अपनी जाति का भला करते हैं। क्षेत्र के अन्य समुदायों के हितों से उनका कोई सरोकार नहीं होता, अतः वे केवल अपनी जाति के नेता हैं और इस बार उन्हें दोहराया गया, तो उनकी हार निश्चित है। मेघवाल का रिपीट होना तय होने की भनक लगते ही, सूची जारी होने का इंतज़ार किए बिना भाटी ने पार्टी से इस्तीफा भी दे दिया। लेकिन आलाकमान ने उनकी एक नहीं सुनी और टिकट मेघवाल को ही मिला। भाजपा की यह सीट अब भीतरघात और गुटबाज़ी में उलझ गई है।
टिकट को लेकर मारामारी
राजसमंद से मौजूदा सांसद हरिओम सिंह राठौड़ स्वास्थ्यगत कारणों से चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं बताए जा रहे हैं। गत विधानसभा चुनाव में सवाईमाधोपुर से विधायक पूर्व राजकुमारी दीया कुमारी का टिकट कटा, तभी से कयास लगाए जा रहे थे कि उन्हें अब संसद में भेजा जाएगा। उनके संभावित क्षेत्र टोंक-सवाईमाधोपुर और जयपुर माने जा रहे थे। बीच में खबरें आईं कि पार्टी उन्हें राजसमंद से सांसद बनाना चाहती है। माना जा रहा है कि जयपुर ग्रामीण सीट से राज्यवर्द्धन सिंह राठौड़ का नाम घोषित होते ही जयपुर से मज़बूत दावेदार दीया कुमारी को राजसमंद के चुनाव मैदान में उतारा जाएगा। अभी तक उनके नाम की घोषणा नहीं हुई है, इसके बावजूद क्षेत्र में बाहरी प्रत्याशी को स्वीकार नहीं करने के नारे बुलंद होना शुरू हो गए हैं।
कोटा सीट से मौजूदा सांसद ओम बिड़ला को रिपीट किया जाना भाजपा के प्रादेशिक नेतृत्व के गले की फांस बन गया है। बिड़ला के नाम की घोषणा होते ही चार क्षेत्रीय विधायक उनके विरोध में खुल कर सामने आ गए। 25 मार्च को भवानी सिंह राजावत, प्रह्लाद गुंजल, बृजराज मीणा और विद्याशंकर नंदवाना ने प्रदेश भाजपा कार्यालय पहुंच कर संगठन मंत्री चंद्रशेखर से भेंट की और चेतावनी दी कि अगर बिड़ला का टिकट नहीं कटा, तो बग़ावत तय है। चारों विधायकों का आरोप है कि बिड़ला के संदर्भ में उनसे कोई राय नहीं ली गई और प्रदेश इकाई ने राय-मशवरे का सिर्फ नाटक किया। इससे चुनाव में पार्टी को नुकसान होगा। उधर, बूंदी के जिलाध्यक्ष महिपत सिंह ने भी स्वास्थ्य का हवाला देते हुए चुनाव कार्य से हाथ खींच लेने की घोषणा कर दी थी। इसे भी बिड़ला के विरोध में उठाया गया कदम माना गया। भले ही प्रदेशाध्यक्ष मदनलाल सैनी ने देर रात बात कर उन्हें काम करते रहने के लिए मना लिया, लेकिन इस सीट पर चिनगारियां अब भी फूट रही हैं।
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ज्यादातर सीटों पर सिर फुटौव्वल की नौबत
इसी तरह सीकर संसदीय क्षेत्र से स्वामी सुमेधानंद सरस्वती का टिकट फिर पक्का होते ही विरोध शुरू हो गया है। यहां पार्टी कार्यकर्ता दो धड़ों में बंट गए हैं और दोनों में हाथापाई की नौबत तक आ चुकी है। इस संसदीय सीट में छह विधानसभा क्षेत्र हैं। इनमें से तीन क्षेत्रों के कार्यकर्ता मौजूदा सांसद का मुखर विरोध कर चुके हैं। गत मंगलवार को सीकर के जयपुर-बीकानेर बाइपास पर आयोजित धोद और सीकर मंडल के कार्यकर्ता सम्मेलन में समर्थक और विरोधी गुट एक-दूसरे से उलझ गए। जम कर नारेबाजी और हाथापाई हुई। उल्लेखनीय है कि यूटीआई के पूर्व चेयरमैन हरिराम रणवां और नीमकाथाना के पूर्व विधायक प्रेम सिंह बाजौर ने टिकट सूची घोषित होने से पहले ही सुमेधानंद को दोबारा टिकट देने के खिलाफ बयानबाज़ी शुरू कर दी थी। इसके बाद इन्हें जयपुर तलब कर पार्टी के निर्णय के साथ रहने और घोषित होने वाले प्रत्याशी के पक्ष में काम करने की हिदायत दी गई। इसके बाद दोनों नेता खामोश हैं, लेकिन उनकी सुलगाई चिनगारी नाम घोषित होते ही शोला बन गई है।
लगभग इसी तरह का नज़ारा कई अन्य सीटों पर भी दिख रहा है। इनमें नागौर, बांसवाड़ा, अलवर, दौसा, भरतपुर, चूरू तथा करौली-धौलपुर प्रमुख हैं। इन सभी जगह स्थानीय मुद्दे गरमाए हुए हैं। पार्टी की धड़ेबंदी चरम पर है, जिससे प्रत्याशी चुनने में दिक्कतें आ रही हैं या चुने जाने के बाद विरोध की आग सुलग रही है। प्रादेशिक नेतृत्व मान कर चल रहा था कि राज्य में मतदान अंतिम चरणों में है, अतः प्रत्याशियों के नामों की घोषणा खूब सोच-विचार के बाद और संभव हुआ, तो कांग्रेस की सूची जारी होने के बाद की जाएगी। लेकिन केंद्रीय आलाकमान ने जिस शीघ्रता से अधिकांश प्रत्याशियों की घोषणा कर दी, उससे प्रादेशिक नेतृत्व उलझ गया है। इसके बावजूद कुछ नेता प्रत्याशियों के नाम जल्दी घोषित होने के पक्ष में भी हैं। उनका कहना है कि इस तरह का छिटपुट विरोध हमेशा रहता है और यह परिदृश्य अगर चुनाव के नज़दीक आने पर बनता, तो बड़ी हानि कर सकता था। अब पार्टी इनसे समय रहते निबट लेगी और इससे कोई हानि नहीं होगी।
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