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स्‍मृति शेष- डॉ लालजी, जिनके चलते हो सकी थी राजीव गांधी के शव की शिनाख्‍त

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नई दिल्‍ली। फादर ऑफ डीएनए फिंगरप्रिंट टेक्नोलॉजी इन इंडिया और जाने-माने वैज्ञानिक डॉ. लाल जी सिंह नहीं रहे। रविवार (10 दिसंबर 2017) की देर रात हार्ट अटैक आने से उनका निधन हो गया। वो BHU के वाइस चासंलर भी रह चुके थे। उन्‍हें 2004 में पद्मश्री सम्‍मान से सम्‍मानित किया जा चुका था। डॉक्‍टर लाल जी को सबसे ज्‍यादा याद इसलिए भी किया जाता है क्‍योंकि 1991 में जब तत्‍कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की बम धमाके में मौत हुई थी तो शव की शिनाख्‍त भी मुश्‍किल थी। लगभग सभी उपाय फेल हो चुके थे। उस वक्‍त डॉ. लाल जी ने डीएनए फिंगरप्रिंट टेक्नोलॉजी इस्तेमाल करने की सलाह दी। उन्हीं के निर्देशों पर चलकर प्रियंका गांधी के नाखून का सैंपल लिया गया और इसके डीएनए को शव के डीएनए से मैच कराया गया। तब जाकर शव की पहचान हो पाई थी।

 भारत में डीएनए फिंगरप्रिंट टेक्नोलॉजी का जनक कहा जाने लगा

भारत में डीएनए फिंगरप्रिंट टेक्नोलॉजी का जनक कहा जाने लगा

इसी के बाद से डॉक्‍टर लाल जी को भारत में डीएनए फिंगरप्रिंट टैक्‍नोलॉजी का जनक कहा जाने लगा। उन्‍होंने डीएनए से जुड़े कई बड़े रिसर्च किए। 1998 तक भारत में डीएनए डायग्नोसिस की कोई व्यवस्था नहीं थी। यानी अगर किसी इंसान को कोई बीमारी जेनेटिक तौर पर (उसके मां-बाप से) मिली हो, तो उसका इलाज संभव नहीं था। लाल जी सिंह ने इस पर स्टडी की और डीएनए डायग्नोसिस का तरीका खोजा।

BHU के बने वीसी, सिर्फ 1 रुपए लेते थे सैलरी

BHU के बने वीसी, सिर्फ 1 रुपए लेते थे सैलरी

डॉ. सिंह ने 1987 में फेलोशिप हासिल कर यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग से रिसर्च पूरी की थी। इससे पहले उन्होंने बीएचयू से जेनेटिक्स की पढ़ाई की। अगस्त 2011 में वो इसी बीएचयू के वीसी बने। पूरे कार्यकाल में वे सैलरी के तौर पर महज एक रुपए लेते थे। जौनपुर में पैदा हुए लाल जी सिंह का पार्थिव शरीर बनारस लाया गया, जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया।

1988 में किया था डीएनए फिंगरप्रिंट टेक्नोलॉजी का ईजाद

1988 में किया था डीएनए फिंगरप्रिंट टेक्नोलॉजी का ईजाद

डॉक्‍टर लाल जी सिंह ने सन 1988 में डीएनए फिंगरप्रिंट टेक्नोलॉजी का ईजाद किया था। इस आविष्‍कार ने देश में अपराध के छानबीन की पूरी प्रक्रिया ही बदल दी। इस प्रक्रिया से हत्‍या के कई बड़े-बड़े मामले सुलझाए गए। इसमें राजीव गांधी केस से लेकर दिल्ली के नैना साहनी तंदूर मर्डर केस, उत्तर प्रदेश के चर्चित मधुमिता हत्याकांड और प्रियदर्शिनी मट्टू मर्डर केस शामिल हैं।

डॉ लालजी सिंह का छोटा सा परिचय

डॉ लालजी सिंह का छोटा सा परिचय

उत्तर प्रदेश में जौनपुर जिले के सदर तहसील एवं सिकरारा थाना क्षेत्र के कलवारी गांव के निवासी स्व. ठाकुर सूर्य नारायण सिंह के पुत्र थे। पांच जुलाई 1947 को डॉ. लालजी सिंह का जन्म हुआ था। वर्ष 1971 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त करने के बाद वे कोलकाता गये जहां पर साइंस में 1974 तक एक फे लोशिप के तहत रिसर्च किया। इसके बाद वे फेलोशिप पर यू.के. गए नौ माह बाद वापस भारत आए। जून 1987 में सीसीएमबी हैदराबाद में वैज्ञानिक पद पर कार्य करने लगे और 1998 से 2009 तक वहां के निदेशक रहे। डॉ लालजी सिंह हैदराबाद स्थित कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केन्द्र के भूतपूर्व निदेशक थे। वह भारत के नामी जीवविज्ञानी थे।

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English summary
Eminent scientist and ‘father of DNA fingerprinting in India’ Lalji Singh died following a heart attack on Sunday. He was 70.
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