यही है वो आखिरी रास्ता, जिससे बच सकती येदुरप्पा की कुर्सी, वरना देना पड़ेगा इस्तीफा
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नई दिल्ली। गया लाल, हरियाणा के इस विधायक ने 1967 में एक ही दिन में तीन बार पार्टी बदल डाली। श्रीमान गया लाल कांग्रेस से यूनाइटेड फ्रंट में चले गए। कुछ घंटे बाद पार्टी के मनाने पर उनकी घर वापसी हो गई, लेकिन उनका मन नहीं लगा और ठीक 9 घंटे के बाद मिस्टर गया लाल एक बार फिर से यूनाइटेड फ्रंट में आ गए। इस घटना के चलते भारतीय राजनीति को एक कहावत मिली, 'आया राम, गया राम'। यह बात न जाने कितनी बार, कितनी नेताओं के लिए प्रयोग में लाई गई। जोड़-तोड़, साम-दाम, दंड-भेद, हॉर्स ट्रेडिंग जैसे न कितने शब्द इस वाक्य में समा गए.... आया राम, गया राम। अब कर्नाटक चुनाव को ही ले लीजिए। यहां भी 'आया राम, गया राम' काफी डिमांड में हैं, लेकिन कर भी क्या सकते हैं, 'आया राम, गया राम' के पैरों में तो एंटी डिफेक्शन लॉ मतलब दल-बदल कानून की बेडि़यां पड़ी हैं।
इधर गुरुवार को बीएस येदुरप्पा की भविष्यवाणी भी सच हो गई। 17 मई की सुबह येदुरप्पा ने आखिरकार सीएम पद की शपथ ले ली। शपथ तो हो गई, येदुरप्पा सीएम भी बन गए, लेकिन बहुमत कैसे साबित करेंगे? सबसे बड़ा सवाल यही है। कर्नाटक चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो कुल सीटें हैं- 222। चूंकि कुमारस्वामी दो सीटें से जीते हैं तो कुल सीटें बचती हैं 221। ऐसे में बहुमत के लिए 111 सीटों की जरूरत है। बीजेपी के पास 104, कांग्रेस के पास 78, जेडी-एस के पास 38 और अन्य के पास दो सीटें हैं।
कांग्रेस पहले ही जेडी-एस को समर्थन का ऐलान कर चुकी है। ऐसे में 78-38 मतलब 116 बहुमत का आंकड़ा पार हो जाता है। लेकिन राज्यपाल वजुभाई वाला ने सरकार बनाने का पहला दिया है बीजेपी को। तो बीजेपी के पास हैं- 104 विधायक और अब बचते हैं 2 अन्य। इनमें से भी एक ही विधायक ने बीजेपी को सपोर्ट करने की बात कही है। तो नंबर बनता है 105। बहुमत के लिए चाहिए 111, मतलब बीजेपी को 7 औरर विधायक चाहिए। अब यहां से शुरू होता है येदुरप्पा और अमित शाह का पूरा कैल्कुलेशन।
- एंटी डिफेक्शन लॉ के चलते विधायक तो तोड़ नहीं सकते हैं। टूट-फूट होगी भी तो कानून के हिसाब से दो तिहाई विधायक होने चाहिए।
- विधायक पार्टी की सदस्यता भी नहीं त्याग सकते हैं।
- विधायक पार्टी के खिलाफ वोट देते हैं या अनुपस्थित रहते हैं तो यह भी एंटी डिफेक्शन लॉ के तहत आ जाएगा।
- हालांकि, कांग्रेस-जेडी-एस के विधायक येदुरप्पा के पक्ष में समर्थन पत्र भी दे सकते हैं, लेकिन यहां स्पीकर की भूमिका अहम हो जाती है।
- इसके अलावा एक फ्लोर टेस्ट में ऐसा भी कई बार देखने को आया है कि सत्ता पक्ष की मदद के लिए अन्य दलों के विधायक अनुपस्थित हो जाते हैं। कांग्रेस-जेडी-एस के विधायक ऐसा भी कर सकते हैं, लेकिन यह स्थिति भी एंटी डिफेक्शन लॉ के तहत आती है, ऐसे में विधायकों को इस परिस्थिति में भी एक्शन का सामना करना पड़ सकता है।
- कर्नाटक में जिस प्रकार के हालात अभी हैं, उनमें बीजेपी के सामने एक ही रास्ता बचता है, वह 2008 का फार्मूला। जानिए क्या है वह रास्ता
2008 में बीजेपी को 110 सीटें मिली थीं। तब उसके पास 3 सीटें बहुमत से कम रह गई थीं। उस वक्त जेडी-एस और कांग्रेस के 6 नेताओं ने विधायकी से ही इस्तीफा दे दिया था। इस प्रकार बीजेपी ने विधानसभा में बहुमत साबित कर दिया और इस्तीफा देने वाले विधायकों ने बाद में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा।
अगर येदुरप्पा के रणनीतिकार इस बार उसी रास्ते को चुनेंगे तो उन्हें कम से कम 15 विधायकों के इस्तीफ कराने पड़ेंगे। यही वो एकमात्र रास्ता जिसके जरिए येदुरप्पा की सरकार सदन में बहुमत साबित कर सकती है और अगर ऐसा न हो सका येदुरप्पा के लिए सरकार बचा पाना बेहद मुश्किल साबित हो सकता है।