केरल: ननों का ये विरोध महिलाओं, पुरुषों के संघर्ष का प्रतीक कैसे बना
केरल के इस कैथोलिक चर्च से जुड़ी महिलाओं ने रविवार को होने वाले सामूहिक उपदेश का विरोध और बायकॉट किया है, जो इससे पहले कभी नहीं देखा गया. ये बिशप के बयान का विरोध कर रही थीं. पढ़ें आखिर क्या है पूरा मामला?
केरल के एक ताक़तवर ईसाई संगठन के बिशप की सांप्रदायिक टिप्पणी के ख़िलाफ़ कुछ ननों के विरोध को आलोचना से ज़्यादा समर्थन मिल रहा है. अब यह प्रदर्शन उस चर्च से जुड़ी महिलाओं और पुरुषों के बीच के संघर्ष का प्रतीक बन गया है.
इतिहास में पहले कभी इस चर्च में धार्मिक महिलाओं को रविवार को होने वाले सामूहिक उपदेश का विरोध और बायकॉट करते नहीं देखा गया. ये बायकॉट बिशप की एक सलाह पर हुई बहस के बाद हुआ. बिशप ने सलाह दी थी कि ईसाइयों को दूसरे धर्म के लोगों के साथ व्यापार नहीं करना चाहिए.
पिछले सप्ताह कैथोलिक ईसाइयों की संस्था 'साइरो-मालाबार कैथोलिक चर्च' की पलाई इकाई के बिशप मार जोसेफ़ कल्लारांगट ने अपने एक धार्मिक उपदेश में "लव जिहाद" की तरह "नारकोटिक्स जिहाद" शब्द का इस्तेमाल किया था. लेकिन, सेंट फ्रांसिस कॉन्वेंट में ननों की मण्डली को दी अपनी सलाह में ये बिशप एक कदम और आगे बढ़ गए.
सिस्टर अनुपमा ने बीबीसी हिंदी को बताया, "हमने उनसे कुछ लोगों के अपराध के लिए पूरी मुसलमान बिरादरी को दोष देना बंद करने को कहा. ऐसे लोग हर धर्म में मौजूद हैं. उपदेश के दौरान, उन्होंने कहा कि आपको मुस्लिम होटलों से बिरयानी नहीं खानी चाहिए या मुसलमानों की दुकानों पर नहीं जाना चाहिए या मुसलमानों के ऑटोरिक्शा से यात्रा नहीं करनी चाहिए."
सिस्टर अनुपमा ने कहा, "हमने उनसे कहा कि हम विद्यार्थी हैं और हमें मुसलमानों के ऑटोरिक्शा से चलने पर कोई समस्या नहीं हुई या या हमारी सुरक्षा के लिए तैनात पुलिसवालों से भी कोई दिक्कत नहीं हुई. लेकिन, बिशप अपने नारकोटिक्स जिहाद और दूसरे बयानों पर अड़े रहे. उनका ये बयान पोप की राय के भी ख़िलाफ़ है."
सिस्टर अनुपमा, सिस्टर एल्फी, सिस्टर एंकिट्टा और सिस्टर जोसेफिन ने ही सितंबर 2018 में एक ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन की अगुवाई की थी. उन्होंने बिशप रैंक के एक ऐसे पादरी को चर्च में बहाल रखने के ख़िलाफ़ विरोध किया था जिन पर एक नन के बलात्कार के आरोप था.
- ये भी पढ़ें- 'वो पादरी दशकों तक मेरा यौन शोषण करता रहा'
- ये भी पढ़ें- केरल यौन उत्पीड़न मामलाः चर्च में कन्फेशन सवालों के घेरे में
ब्रेकिंग पॉइंट
ये दोनों विरोध अपनी जगह पर हैं, पर इससे पता चलता है कि चर्च के भीतर कैसे बदलाव हो रहे हैं. धर्म से जुड़ी ये महिलाएं कई तरीक़े से पुजारियों के दबदबे का विरोध कर रही हैं. एक नन ने बताया कि चाहे यौन उत्पीड़न का मामला हो, या छलावे और ननों के साथ 'दूसरे दर्जे के नागरिक' की तरह व्यवहार का, ये महिलाएं विरोध करने से पीछे नहीं हट रहीं.
सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका मेमन जॉन ने बीबीसी हिंदी को बताया, "सभी संरचनात्मक धार्मिक संस्थाएं और धर्म पालन के तरीके, अनिवार्य रूप से पितृसत्तात्मक और दमन करने वाले हैं. महिलाएं व्यवस्था के अंतिम छोर पर ही होती हैं. उन्होंने आदेश की शक्ल में हो रहे यौन उत्पीड़न की शिकायत की है, कभी-कभी यौन उत्पीड़न से भी ज़्यादा. बिशप मुलक्कल इसके प्रमाण हैं."
एक वकील और नारीवादी के रूप में रेबेका जॉन ने कहा, "ये तथ्य है कि कॉन्वेंट उन्हें अपनी शिकायतों को कहने की अनुमति नहीं देता, और जब वे ऐसा करती हैं तो उन्हें चर्च से निकाल दिया जाता है. मुझे लगता है कि ऐसे हर संस्थानों में एक ब्रेकिंग पॉइंट आता है. और आप जो देख रहे हैं ये उसी ब्रेकिंग पॉइंट की झलक है."
हालांकि रेबेका जॉन कहती हैं कि उन्हें 'गर्व' है कि चर्च की इन सिस्टर ने इस मुद्दे पर बात को उठाया. वे कहती हैं कि इन सिस्टर ने कहा कि, "चर्च को बिशप और मुसलमानों से कहने की ज़रूरत है कि ये ईसाइयों के प्रतिनिधि नहीं हैं और जो उन्होंने कहा वो कट्टरवाद था और उन्हें निकालने की ज़रूरत है."
ईसाई धर्म की जानकार और पहले सिस्टर रह चुकीं कोचुरानी अब्राहम ने बीबीसी हिंदी को बताया, "अकेले केरल में 45,000 नन होने के बावजूद अधिकांश नन किसी का विरोध नहीं करतीं. मुद्दा ये है कि चर्च में महिलाओं की आवाज़ सुनी जानी चाहिए."
- ये भी पढ़ें- चर्चों में बच्चों के शोषण पर पोप ने जताई शर्मिंदगी
- ये भी पढ़ें- सिस्टर अभया हत्या मामले में फ़ादर-नन को उम्रक़ैद, पर फ़ैसले के लिए 28 साल क्यों
चर्च में ननों के साथ होने वाला व्यवहार
कोचुरानी अब्राहम का कहना है कि एक अध्ययन से ये जाहिर हुआ कि चर्च में धार्मिक महिलाओं की आवाज़ नहीं सुनी जाती. इसे कॉन्फ्रेन्स ऑफ़ रिलीजियस ऑफ़ इंडिया (सीआरआई) के महिला धड़े ने किया था. यह स्टडी इसलिए की गई कि दो प्रकाशनों, 'वेटिकन' और 'मैटर्स इंडिया' ने शिकायत की थी कि चर्च में महिलाओं के साथ 'नौकरों जैसा व्यवहार किया जाता है'.
मिशनरीज ऑफ क्राइस्ट जीसस की सिस्टर नोएला डिसूजा ने मुंबई से बीबीसी हिंदी को बताया, "हमने पाया कि भले ही शिक्षण संस्थान चर्च से अनुदान पाने वाला संस्थान था, लेकिन उससे जुड़ी धार्मिक महिलाओं को बहुत कम वेतन मिलता था. उन्हें अपने काम के लिए सम्मान नहीं मिलता था. उन्हें कभी सेमिनरी में कोई सम्मान नहीं मिला. पादरी हमेशा उन्हें आदेश देते हैं. उनके साथ दूसरे दर्जे के नागरिक सा व्यवहार करते हैं."
उन्होंने कहा कि इस अध्ययन में बताया गया कि "ननों को गालियां दी जाती हैं और उन्हें अपमानित किया जाता है. पादरी उन्हें लगातार नीचा दिखाते हैं. शिक्षा का क्षेत्र हो या किसी गांव का विकास, सबसे आगे नन ही होती हैं. लेकिन, पादरियों को चर्च के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा ननों की सराहना करना पसंद नहीं है."
- ये भी पढ़ें - टीवी चैनलों के निशाने पर क्यों थे दिल्ली के आर्च बिशप
- ये भी पढ़ें- मुसलमान ज़्यादा पिछड़े या ईसाई, क्या केरल खोज पाएगा इस सवाल का जवाब?
बड़ी समस्याएं
लेकिन, ननों के सामने अभी सबसे बड़ी समस्या ये है कि पादरी उस जमीन को उनसे छीन रहे हैं, जो उन्हें मूल रूप से शिक्षा या विकास के काम करने के लिए दी गई थी.
इस बारे में सिस्टर नोएला डिसूजा कहती हैं, "ज़मीन एक समझौते के रूप में दी गई थी. लेकिन अब हम देख रहे हैं कि सिस्टर चर्च की दया पर निर्भर हैं."
ननों और पादरियों के बीच भूमि का एक विवाद सुप्रीम कोर्ट तक गया. वहीं इस विवाद से जुड़े हिस्से आज भी केरल की अदालतों में लड़े जा रहे हैं.
एर्नाकुलम में न्याराकाल के लिटिल फ्लावर स्कूल की सिस्टर एनी जैस ने बीबीसी हिंदी को बताया, "ज़मीन चर्च की कमज़ोरी है. हमारे दो स्कूल लिटिल फ्लावर स्कूल (केरल बोर्ड) और सेंट जोसेफ़ पब्लिक स्कूल (सीबीएसई) जिस तीन एकड़ 69 सेंट ज़मीन पर चल रहे हैं, उस पर अभी कब्ज़ा करने का प्रयास हो रहा है. तमाम विवादों के बाद, हमारे वरिष्ठ अधिकारी बिशप को जमीन का एक हिस्सा दे देना चाहते हैं."
'मैटर्स इंडिया' के संपादक जॉन कवि ने कहा, "यदि नन आर्क डिओसेज को ज़मीन दे देती हैं, तो यह एक बुरी मिसाल होगी. राष्ट्रीय स्तर पर इसका असर होना तय है. देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसे मामले हो रहे हैं. बिशप उन सभी ज़मीनों पर कब्जा कर लेंगे. ननों को आज्ञाकारी और विनम्र होने के लिए तैयार किया जाता है और पितृसत्तात्मक चर्च उनका लाभ आसानी से उठा सकते हैं."
भूमि संबंधी मामलों को लेकर केरल के चर्च और राजनीतिक हलकों में एक आम धारणा है कि चर्च के कुछ धार्मिक नेता भाजपा के साथ गलबहियां करने को तैयार हैं.
'नारकोटिक्स जिहाद' के बारे में पाला बिशप जोसेफ कल्लारंगट की टिप्पणी केरल में एक बड़ा विवाद बन गई, क्योंकि इसकी आबादी में मुसलमान 26 और ईसाई 18 प्रतिशत हैं. बिशप के बयानों ने भाजपा को खुश कर दिया, क्योंकि यह कांग्रेस के वोट बैंक के बंटने की शुरुआत है. सीपीएम के नेतृत्व वाला वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) इस विवाद को कांग्रेस का वोट बैंक हड़पने के मौके के रूप में देखता है.
चर्च के भीतर के इन विचारों को देखते हुए, यह समझना ग़लत होगा कि हर नन सेंट फ्रांसिस कॉन्वेंट की सिस्टर की तरह ही सोचेगी.
इस पर रेबेका मेमन जॉन ने कहा, "लेकिन ये एक शुरुआत है. और हमें उस साहसी शुरुआत का सम्मान करने की ज़रूरत है. उनके पास सिस्टर लुसी कलाप्पुरा (जिन्हें बिशप मुलक्कल का विरोध करने के कारण बर्खास्त कर दिया गया था) की तुलना में बहुत कुछ है. इसलिए, उन्होंने जोख़िम उठाते हुए पादरी के ख़िलाफ़ बोलने का फ़ैसला लिया कि वे हमारे या हमारे विश्वास का प्रतिनिधित्व नहीं करते. उन्होंने जो किया वाकई में बहुत बड़ी बात है."
हालांकि हमारे काफी प्रयासों के बावजूद, कोट्टायम की ननों के इस विरोध पर केरल कैथोलिक बिशप काउंसिल (केसीबीसी) की ओर से हमें कोई जवाब नहीं मिल सका.
- ये भी पढ़ें- क्या चर्च में बंद हो जाएगी कन्फ़ेशन प्रक्रिया?
- ये भी पढ़ें- क्या पादरियों से लोगों का भरोसा उठ रहा है?
बिशप का यह बयान केरल में एक बड़ा विवाद बन गया है क्योंकि केरल में 26 फ़ीसद मुसलमान और 18 फ़ीसद ईसाई हैं.
बिशप के बयान से बीजेपी काफ़ी ख़ुश है क्योंकि बीजेपी को लगता है कि यह कांग्रेस के मतदाताओं में फूट पड़ने की शुरुआत है. सीपीएम के नेतृत्व वाली सत्ताधारी एलडीएफ़ को भी लगता है कि यह कांग्रेस के मतदाताओं को अलग करने का एक मौक़ा है.
वहीं केरल के मुख्यमंत्री विजयन ने साफ़ कर दिया है कि बिशप के उस बयान के ख़िलाफ़ कोई केस नहीं दर्ज किया जाएगा.
मुख्यमंत्री के अनुसार बिशप ने कहा है कि मुसलमानों और ईसाईयों के बीच मतभेद पैदा करने का उनका कोई इरादा नहीं था और उनका मक़सद सिर्फ़ ईसाई धर्म के मानने वालों को कुछ लोगों के ज़रिए अपनाए जाने वाले तरीक़े से आगाह कराना था.
बिशप का बचाव करते हुए विजयन ने कहा, "नारकोटिक्स जिहाद का शब्द दरअसल ड्रग्स और उससे जुड़े आपराधिक गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किया गया था. हालांकि ड्रग्स के कारोबार को किसी एक धर्म से जोड़कर देखना ग़लत है."
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि धार्मिक नेताओं को इस बात का ख़ास ध्यान रखना चाहिए कि जो लोग अपने राजनीतिक फ़ायदे के लिए समाज को बांटना चाहते हैं, उन्हें धार्मिक नेताओं के शब्दों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का मौक़ा न मिले.
मुख्यमंत्री का बिशप के पक्ष में दिया गया बयान बहुत अहम है क्योंकि राज्य की पुलिस ने बिशप के ख़िलाफ़ शिकायत पर कार्रवाई करने के लिए क़ानूनी सलाह माँगी है.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)