Karnataka Elecctions 2018: एक बार फिर से बेंगलुरू ने कुछ इस तरह से राजनीतिक पंडितों को चौंकाया
बेंगलुरू। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जिस तरह से त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति पैदा हुई है उसके बाद कांग्रेस और भाजपा में सरकार बनाने को लेकर नूराकुश्ती चल रही है। लेकिन इन सबके बीच जेडीएस सबसे निर्णायक भूमिका में सामने आई है। आईटी राजधानी के रूप में जाने जाने वाले शहर बेंगलुरू ने 2013 की ही तरह एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी में भरोसा जताया है। चुनाव आयोग की ओर से जारी आंकड़ों के लिहाज से बेंगलुरू की 28 सीटों में से भाजपा के खाते में 11 सीटें आई हैं, जबकि कांग्रेस के खाते में 16 और जेडीएस के खाते में 7 सीटें आई हैं।
शहरी क्षेत्र में बदला गणित
2013 में कांग्रेस ने बेंगलुरू 28 अर्बन सीटों में से 13 पर जीत दर्ज की थी जबकि भाजपा के खाते में 12 सीटें आई थी। बेंगलुरू में कांग्रेस की बढ़ी हुई सीटों से ज्यादा अहम बात यह है कि जेडीएस ने यहां काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। हर किसी को चौंकाते हुए जेडीएस ने यहां सात सीटों पर जीत दर्ज की है, जबकि 2013 में पार्टी ने सिर्फ 3 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस लिहाज से पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में जेडीएस ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है।
गलत साबित हुआ अनुमान
तमाम राजनीतिक पंडितों का अनुमान था कि इस बार भाजपा यहां अच्छा प्रदर्शन करेगी और बेंगलुरू में अधिक सीटों पर जीत दर्ज करेगी। लेकिन यहां पार्टी अपने ही सर्वाधिक रिकॉर्ड को तोड़ नहीं सकी। भाजपा को यहां 2008 में सर्वाधिक 17 सीटों पर जीत मिली थी। 2008 के चुनाव में भाजपा को 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी, इसकी बड़ी वजह यह थी कि जेडीएस ने भाजपा को सत्ता सौंपने से इनकार कर दिया था। दोनों ही पार्टियों के बीच गठबंधन की सरकार बनी थी और यह करार हुआ था की आधा-ःआधा समय तक दोनों सरकार में रहेंगे।
कांग्रेस ने दिखाया दम
इस बार भाजपा ने अपना मैनिफेस्टो जारी करते हुए बेंगलुरू को ही प्राथमिकता दी थी और चौबीस घंटे बिजली, पीने का पानी और हर नागरिक के लिए एक पेड़ का वायदा किया था। लेकिन अगर बेंगलुरू शहर में भाजपा को मिली सीटों पर नजर डालें तो लोगों ने भाजपा के वायदे पर कुछ खास भरोसा नहीं किया है और एक बार फिर से शहर के लोगों ने कांग्रेस में भोरसा जताया है।
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