
Kalka Shimla Heritage Train:आज से 4 नई ट्रेनों की शुरुआत, इस खूबसूरत रेलवे के बारे में सबकुछ जानिए
शिमला, 21 जून: वर्ल्ड हेरिटेज साइट कालका-शिमला रेलवे सेक्शन पर आज से 4 नई ट्रेनें चलाई जा रही हैं। इसकी घोषणा खुद रेल मंत्री पीयूष गोयल ने की है। इन ट्रेनों की शुरुआत से इलाके में पर्यटन के विकास को चार-चांद लगने की उम्मीद है तो स्थानीय लोगों के लिए भी इसे काफी फायदेमंद बताया जा रहा है। 124 साल पुरानी कालका-शिमला टॉय ट्रेन का इतिहास बहुत ही रोमांचक है और यह रेलवे इंजीनियरिंग की उतनी ही अद्भुत मिसाल पेश करता है। रेलवे के इस सेक्शन से आधुनिक भारत के इतिहास के कई अहम पड़ाव भी जुड़े हुए हैं। आइए इस गौरवशाली रेलवे के वर्तमान और अतीत के हर पहलुओं पर एक सरसरी नजर डालते हैं।

कालका-शिमला टॉय ट्रेन: आज से 4 नई ट्रेनों की शुरुआत
लॉकडाउन में मिल रही छूट के बाद घरों से बाहर निकलने के लिए बेताब लोगों को रेल मंत्री पीयूष गोयल ने आज बहुत बड़ी खुशखबरी दी है। उन्होंने ट्वीट कर बताया है कि "पहाड़ों की खूबसूरती देखने वाले पर्यटकों की सबसे प्रिय कालका - शिमला हेरिटेज सेक्शन पर आज से 4 नई ट्रेन शुरू की जा रही हैं। यह ट्रेनें पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ ही यहां आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाएंगी; और क्षेत्र के विकास में अहम भूमिका निभाएंगी।" इन नई ट्रेनों की शुरुआत से चार लक्ष्य पूरे होने के आसार हैं। पहला- हिमाचल प्रदेश की वादियों में पहाड़ों की सुंदरता देखना अब और भी सुविधाजनक हो जाएगा। दूसरा- यात्रियों और पर्यटकों के लिए यह रेल यात्रा ज्यादा सुविधाजनक होगी। तीसरा- राज्य में पर्यटन का विकास होगा और चौथा- स्थानीय नागरिकों को इसका काफी फायदा मिलेगा।

माउंटेन रेलवेज ऑफ इंडिया का इतिहास
कालका-शिमला रेलवे को 10 जुलाई, 2008 को यूनेस्को से वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा मिला था। यह सेक्शन भारतीय रेलवे के अंबाला डिविजन में आता है। 1864 में शिमला को अंग्रेजों ने भारत की गृष्मकालीन राजधानी बनाई थी और वहां पर ब्रिटिश आर्मी का हेडक्वार्टर भी था। इसी वजह से ब्रिटिश शासन के दौरान शिमला को भारतीय रेलवे सिस्टम से जोड़ा गया। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के मुताबिक यह रेलवे भारत की सबसे छोटी लाइन है। करीब 124 साल पुरानी इस रेलवे लाइन को आम जनता के लिए 9 नवंबर, 1903 को खोला गया था। महज तीन साल में इसपर करीब 5 मील लंबी 103 सुरेंगे (102 मौजूदा) और 800 से ज्यादा पुलों का निर्माण करना रेलवे इंजीनियरों के लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण रहा। यूनेस्को ने इस 'माउंटेन रेलवेज ऑफ इंडिया' का नाम दिया है।

कालका-शिमला टॉय ट्रेन से जुड़ी हैं अलौकिक कहानियां
भारतीय रेलवे के कालका-शिमला हेरिटेज लाइन से कुछ अलौकिक कहानियां भी जुड़ी हुई हैं। मसलन, बताया जाता है कि इस रेलवे के निर्माण में एक स्थानीय संत बाबा भलकू ने अपनी अलौकिक हुनर से ब्रिटिश इंजीनियरों की काफी सहायता की थी। उन्हीं के योगदान को देखते हुए शिमला स्थित रेल म्यूजियम का नाम बाबा भलखू रेल म्यूजियम रखा गया है। कालका से शिमला तक इस रेलवे लाइन की मूल लंबाई 95.68 किलोमीटर थी। 27 जून, 1909 को इसका विस्तार शिमला गुड्स तक कर दिया गया, जिससे यह 96.57 किलोमीटर लंबी हो गई। वैसे तो यह पूरी लाइन ही देखने लायक है, लेकिन इसक कुछ पुल और सुरंगें बेहद ही खूबसूरत हैं और उस जमाने की इंजीनियरिंग का लोहा मनवाती हैं और वही तमाम तस्वीरों में बार-बार अपनी जगह बनाती रही हैं। 1926 तक यह रेलवे उत्तर पश्चिम रेलवे के लाहौर ऑफिस के अधीन था। बाद में यह लाइन रेलवे के दिल्ली डिविजन के अधीन आ गया। लेकिन, 1987 के जुलाई से इसका प्रबंधन अंबाला कैंट से किया जाता है।

कालका-शिमला सेक्शन की चुनौतियां
इसमें कोई इसमें कोई शक नहीं कि यह मनमोहक रेलवे सेक्शन आश्चर्यजनक रूप से सुंदर है। लेकिन, कभी-कभी इसे प्रकृति की अनियमितताओं का भी सामना करना पड़ता है। इस लिहाज से अत्यधिक ठंड और बारिश का मौसम यहां काम करने वाले कर्मचारियों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण होता है। दिसंबर और जनवरी में बर्फबारी की समस्या आम है और इंजन को रास्ता देने के लिए स्नो कटर को उससे अटैच करना पड़ता है। रिकॉर्ड के मुताबिक इस रेलवे को पहली बार 26 दिसंबर,1903 को भारी बर्फबारी का सामना करना पड़ा और दो दिनों तक ट्रेन सेवाएं ठप रहीं। लेकिन, 1945 के जनवरी में इसी के चलते 11 दिनों तक रेल सेवाएं बाधित हो गईं। इसके अलावा फिसलन और भूस्खलन की समस्या भी कालका-रेलवे सेक्शन की आम समस्या है। यह समस्या सबसे ज्यादा 1978 और 2007 में सामने आई। 2007 के अगस्त में तो कोटी स्टेशन की इमारत का एक हिस्सा ही बह गया और कई दिनों तक रेल यातायात ठप हो गई।

कालका-शिमला रेलवे से जुड़ा है आजादी का इतिहास
कालका-शिमला रेलवे से आधुनिक भारत का कई इतिहास भी जुड़ा है। मसलन, 1930 में महात्मा गांधी इसी ट्रेन से लॉर्ड इर्विन से बातचीत के लिए गए थे। पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा भी शिमला जाने के लिए इसी से यात्रा करना पसंद करते थे। वैसे तो यह पूरा रेल मार्ग ही बेहद खूबसूरत है, लेकिन इसका बड़ोग स्टेशन बेहद ही खूबसूरत है। यहां के रेलवे रेस्टोरेंट सबसे पुराने रेस्टोरेंट में से एक है और आज भी उसी प्राचीनता के माहौल को प्रदर्शित करता है। इस स्टेशन का नाम एक ब्रिटिश इंजीनियर मिस्टर बड़ोग के नाम पर पड़ा है, जो इस रेलवे प्रोजेक्ट से जुड़े थे।