झारखंड की हरियाली पर संकट, इस वजह से आधे से ज्यादा जंगल हो सकते हैं बंजर! रिपोर्ट से खलबली
झारखंड के 69% जंगलों की मिट्टी पौधों के विकास लायक नहीं रह गई है। नाइट्रोजन की भारी कमी के चलते यह संकट आया है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के निर्देश पर हुई जांच से पता चला है।
झारखंड के 69% वन भूमि पौधों के लिए बेकार हुईं- रिपोर्ट
झारखंड की हरियाली खतरे में है। एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के करीब 69 फीसदी वन क्षेत्र की मिट्टी अब पौधों के विकास के लिए बेकार पड़ चुकी है। वन और वनवासियों के लिए जाना जाने वाला इस हरियाले प्रदेश के लिए यह बहुत बड़े संकट की चेतावनी है। इसकी मिट्टी के बेकार पड़ने वाली इस जानकारी का खुलासा फॉरेस्ट सॉयल हेल्थ कार्ड की रिपोर्ट से हुआ है, जिसे रांची के इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट प्रोडक्टिविटी (आईएफपी) ने तैयार किया है। एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक मिट्टी की जांच वाली यह रिपोर्ट केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय के निर्देश पर तैयार की गई है।
झारखंड में कुल 29.61% जंगल
झारखंड सरकार की वेबसाइट मुताबिक प्रदेश का कुल क्षेत्रफल 79,714 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से 23,605 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र में आता है। यह क्षेत्र 29.61 % है। वैसे झारखंड में कुल वन और पेड़ों से कवर वाला इलाका 32.74 % है। ऐसे में यदि वहां की मिट्टी पौधों के लिए बेकार पड़ रही है तो इस राज्य के लिए यह बहुत ही गंभीर संकट की चेतावनी से कम नहीं है। सवाल है कि आखिर झारखंड में जंगलों की मिट्टी में ऐसी क्या कमी आ गई है कि वह अब पौधों के विकास के लिए बेकार हो चुकी हैं।
मिट्टी में नाइट्रोजन की भारी कमी के चलते संकट
इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट प्रोडक्टिविटी (आईएफपी) के मुताबिक झारखंड में वन भूमि के साथ यह सब नाइट्रोजन की कमी की वजह से हो रहा है। आईएफपी के चीफ टेक्निकल ऑफिसर शंभु नाथ मिश्रा के अनुसार, 'नाइट्रोजन की बहुत ही भारी कमी है, जो कि राज्य के जंगल की मिट्टी में पौधों के विकास के लिए बहुत ही आवश्यक है। नॉन-डिग्रेडेड वन में नाइट्रोजन की उपस्थिति प्रति हेक्टेयर करीब 258 किलो होनी चाहिए, लेकिन हमने झारखंड के जंगलों की मिट्टी में औसतन 140 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पाया है।' उन्होंने कहा, 'ज्यादातर फॉरेस्ट डिविजन में नाइट्रोजन की उपस्थिति 160 किलो से 180 किलो प्रति हेक्टेयर है। कुछ इलाकों में तो यह कमी करीब 100 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर भी है।' मिश्रा इस जांच प्रोजेक्ट के प्रिंसिपल इंवेस्टिगेटर भी हैं।
'यूरिया का इस्तेमाल विकल्प नहीं'
दरअसल, झारखंड में शुक्रवार को यह फॉरेस्ट सॉयल हेल्थ कार्ड (FSHC) रिपोर्ट जारी हुई है और मिश्रा के मुताबिक ऐसा करने वाला यह देश का 'पहला राज्य' है। मिट्टी की जांच के लिए राज्य के 31 रीजनल फॉरेस्ट डिविजनों के 1,311 जगहों से कम से कम 16,670 सॉयल सैंपल जुटाए गए थे। अधिकारी के मुताबिक मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी के चलते झारखंड में घने और मध्यम वनों का दायरा सिमटता जा रहा है। उन्होंने कहा कि प्रति हेक्टेयर 90 किलो नाइट्रोजन की कमी को करीब 225 किलो यूरिया से दूर किया जा सकता है, 'लेकिन, हम यूरिया जैसे इनॉर्गेनिक प्रोड्कट का इस्तेमाल नहीं करते हैं।'
'दुनिया में प्रति सेकंड एक एकड़ जमीन बेकार हो रही है'
इस संकट से उबरने के लिए विकल्प के तौर पर उन्होंने जानकारी दी कि प्रति हेक्टेयर 90 किलो नाइट्रोजन की कमी, 17 टन खेतों में तैयार खाद (farm yard manure (FYM)) या फिर प्रति हेक्टेयर 5.6 टन वर्मीकंपोस्ट से दूर की जा सकती है। फॉरेस्ट सॉयल हेल्थ कार्ड कार्ड जारी करने वाले झारखंड के प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट संजय श्रीवास्तव ने कहा कि पौधों के भोजन के लिए 95 फीसदी स्रोत मिट्टी ही है। उन्होंने कहा है, 'एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में प्रति सेकंड एक एकड़ जमीन बेकार हो रही है। यदि यही रफ्तार बनी रही तो, 60 वर्षों बाद हालात बदतर हो जाएंगे।' (इनपुट-पीटीआई)