Jallikattu अब केवल पुरुषों तक ही सीमित नहीं, सामाजिक पूर्वाग्रहों को तोड़ रहीं Keerthana बनीं मिसाल
जल्लीकट्टू में बेकाबू सांड को काबू में करने के प्रयास करने वाले पुरुष कई बार चोटिल भी होते हैं। इस खेल को काफी खतरनाक माना जाता है। हालांकि, अब धारणाओं को बदलते हुए ट्रांसवुमन भी जल्लीकट्टू के सांड की देखभाल कर रही हैं।
Jallikattu तमिलनाडु में मजबूती और शारीरिक बल वाले खेल के रूप में लोकप्रिय है। हालांकि, कई वर्षों से बहस हो रही है कि सांडों को काबू करने के खेल "जल्लीकट्टू" और बैलगाड़ी दौड़ जैसे आयोजनों में पशुओं के साथ क्रूरता होती है। जल्लीकट्टू पर सुप्रीम कोर्ट दिसंबर, 2022 में तमिलनाडु और महाराष्ट्र सरकार के कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख चुकी है। तमिलनाडु सरकार ने पिछली सुनवाई में शीर्ष अदालत से कहा था कि खेल आयोजन सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हो सकते हैं। सरकार की दलील है कि "जल्लीकट्टू" में सांडों पर कोई क्रूरता नहीं होती। अब Jallikattu Bulls Transwoman के साथ जुड़ने लगे हैं। मदुरै की Keethana ने मिसाल कायम कर सामाजिक पूर्वाग्रहों को तोड़ने का बीड़ा उठाया है।
बैल मालिकों में पांच ट्रांसवुमेन
मदुरै में जल्लीकट्टू में भाग लेने वाले बैलों को ट्रांसवुमन कीर्तना कड़ी मेहनत से तैयार कर लोगों के सामने उदाहरण पेश कर रही हैं। सांड और बैल के मालिकों और वश में करने वालों को क्रमशः 15, 16 और 17 जनवरी को मदुरै जिले में आयोजित होने वाले अवनियापुरम, पलामेडु और अलंगनल्लूर के जल्लीकट्टू कार्यक्रमों के लिए गहन प्रशिक्षण में शामिल किया गया है। जिन बैल मालिकों ने अपना आवेदन जमा किया, उनमें मदुरै की पांच ट्रांसवुमेन शामिल हैं।
2019 में तोड़ा सामाजिक पूर्वाग्रह
जी कीर्तना, टी अक्षय, एन प्रियामणि, एस राजीव और एस अंजलि पिछले चार सालों से जल्लीकट्टू बैलों को पाल रही हैं। दी न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कीर्तना ने बताया, 'मैं पशुपालकों के परिवार से हूं, मुझे बचपन से ही जल्लीकट्टू बैलों के लिए स्वाभाविक प्यार था। लेकिन एक ट्रांसवुमन के रूप में मुझे काफी पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ा। ऐसे में पहला जल्लीकट्टू बैल 2019 में ही खरीदा गया।
बचत के पैसों से खरीदे सांड-बैल
पुरुषों का खेल कहे जाने वाले जल्लीकट्टू के बारे में कीर्तना कहती हैं कि अपनी बचत के पैसों से ट्रांसजेंडर समूह ने 2019 के बाद सात और बैल खरीदे। दो बछड़े और 12 गायें (ज्यादातर पुलीकुलम नस्ल) भी खरीदीं। कीर्तना घर से 10 किमी दूर स्थित वरिचियुर में अपने मवेशियों को पालती हैं। मवेशियों के लिए इन्होंने तीन सेंट की जमीन पर विस्तृत इंतजाम किया है। बता दें कि वरिचियुर जल्लीकट्टू बैल पालने के लिए प्रसिद्ध है।
नस्ल के चुनाव पर क्या कहा ?
जो ट्रांसवुमन जल्लीकट्टू में बैलों को भेजने की तैयारी कर रही हैं, इस पर मदुरै और शिवगंगा जिलों के मूल निवासी इन लोगों ने बताया कि पुलिकुलम नस्लों का चुनाव किया है। मवेशियों के रखरखाव पर प्रति सप्ताह 3,500 रुपये खर्च होते हैं। ज्यादातर पैसे अपनी गायों का दूध बेचकर कमाते हैं। कीर्तना ने बताया कि पुलिकुलम नस्ल के गाय के दूध की भारी मांग है।
'डिजिटल टोकन के साथ भागीदारी आसान'
अपने पहले जल्लीकट्टू के बारे में कीर्तना बताती हैं कि जब 'चिन्ना मुथैया' 'वादी वासल' दौड़े और जब बैठक में अपने बैल के नाम की घोषणा की तो उनकी आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने कहा, पिछले चार वर्षों में, हमने कई कार्यक्रमों में भाग लिया है और मेरे एक बैल ने 2022 में चिन्ना कट्टलाई गाँव में आयोजित जल्लीकट्टू में मोटरसाइकिल जीती थी।
जल्लीकट्टू का हिस्सा बनकर खुश और गौरवान्वित
उनकी टीम वरिचियुर में स्थानीय ग्रामीणों की मदद से सांडों को प्रशिक्षण देती थी। कीर्तना ने कहा कि उनके बैलों में नवीनतम जोड़ी डेढ़ साल की 'मयंडी' है। इसे एक बूचड़खाने में मारे जाने से बचाया गया और उनकी टीम ने खरीदा। कीर्तना बताती हैं कि अगले कुछ सालों में 'मयंडी' भी जल्लीकट्टू में भाग लेगी। कीर्तना के साथ एक अन्य ट्रांसवुमेन टी अक्षय ने बताया कि जल्लीकट्टू में भाग लेने के लिए टोकन प्राप्त करना हमेशा कठिन रहा है, लेकिन इस साल डिजिटल टोकन पेश किए गए हैं। मदुरै में तीन मुख्य कार्यक्रमों के लिए टोकन मिलने की पूरी उम्मीद है। उन्होंने कहा, "हम जल्लीकट्टू का हिस्सा बनकर खुश और गौरवान्वित हैं, जो हमारी तमिल संस्कृति का हिस्सा है। हमारे बैल हमें ख्याति दिलाएंगे। मैं बस उन्हें वादी वासल से बाहर देखने का इंतजार कर रही हूं।"
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