असफल रहा 8वें नेवीगेशन सैटेलाइट IRNSS-1H का लॉन्च
इसरो आज लॉच करेगा IRNSS-1H सैटेलाइट, जानिए इसकी पल-पल की जानकारी
श्रीहरिकोटा। भारत का आठवां देसी सैटलाइट IRNSS-1H लॉन्च तो हुआ लेकिन असफल हो गया है। इसे PSLV-XL लॉन वीइकल से छोड़ा गया था। इसरो के चेयरमैन ए एस किरण कुमार ने बताया कि सैटलाइट IRNSS-1H असफल हो गया है। ऐसा पहली बार हुआ था जब प्राइवेट सेक्टर किसी सैटेलाइट को लॉन्च करने में सक्रिय रूप से शामिल थी, इससे पहले प्राइवेट सेक्टर का किसी भी अंतरिक्ष अभियान में बहुत ही नाम मात्र की भूमिका होती थी। अगर यह सैटेलाइट लॉन्च सफल हो जाता तो भारत अंतरिक्ष अभियान में एक नई उंचाई को छू लेता।
इसमें लगा था खास नेविगेशन
जिस सैटेलाइट PSLV-C39 से लॉच किया गया था उसमे IRNSS-1A नेविगेशन भी लगा हुआ था। यह उन सात सैटेलाइट का हिस्सा है जिसे इससे पहले लॉच किया जा चुका है। इसमें से तीन रबिडियम एटॉमिक क्लॉक ने काम करना बंद कर दिया है। इस एटॉमिक क्लॉक के काम बंद करने की वजह से ही इसरो को अलग से सैटेलाइट अभियान को शुरू करना पड़ा था।
पहली बार प्राइवेट कंपनी ने दिया था साथ
IRNSS-1H को इसरो ने पहली बार प्राइवेट कंपनी अल्फा डिजाइन की मदद से तैयार किया था, इसे तैयार करने में कुल 70 वैज्ञानिकों की टीम लगी थी। ऐसे में पहली बार प्राइवेट कंपनी ने सैटेलाइट के निर्माण में इसरो की इतनी सक्रिय मदद की हो। इस सैटेलाइट का नामकरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। इस सैटेलाइट की मदद से भारत को सैन्य मदद के साथ, सामान्य नागरिकों के जीवन में बेहतरी लाने में मदद मिलेगी। भारत के इस सैटेलाइट के सफलतापूर्वक लॉच होने के बाद विदेशी जीपीएस पर से भारत की निर्भरता भी कम हो जाती।
सेना और आम लोगों के लिए होती काफी मददगार
IRNSS-1H मुख्य रूप से दो तरह की सुविधा मुहैया कराएगा, पहली सुविधा यह एसपीएस यानि स्टैंडर्ड पोजीशनिंग सर्विस और दूसरी रिस्ट्रिक्टेड सर्विस की सुविधा मुहैया कराएगा। इस श्रंखला के सात सैटेलाइट को पहले ही लॉच किया जा चुका है, जिसमे से तीन सैटेलाइन जीईओ स्टेशनरी ऑर्बिट में जबकि चार सैटेलाइट को जीयो सिंक्रोनस ऑर्बिट में स्थापित किया गया है। इस सैटेलाइट के बाद भारत के पास अपना नेविगेशन सिस्टम होगा, जो सेना के साथ आम लोगों के लिए भी काफी मददगार साबित होगा।
10 वर्षों तक देगी अपनी सेवा
आठ देसी नेविगेशन सैटेलाइट की श्रंखला में यह सैटेलाइट काफी अहम है, इसका कुल वजह 1425 किलोग्राम है, माना जा रहा है कि यह 10 वर्षों तक अपनी सेवाएं देगा। यह सैटेलाइट IRNSS-1A की जगह लेगा। इस सैटेलाइट को 55 डिग्री पूर्व लॉगिट्यूड में स्थापित किया जाएगा। इस सैटेलाइट का डिजाइन पहले की ही इसरो की I-1K की तरह का है। इस सैटेलाइट का भी जीवनकाल पहले की सैटेलाइट की तरह 10 वर्ष है। इससैटेलाइट के जरिए सटीक समय की जानकारी मिलेगी। इसमें जो एटोमिक क्लॉक लगाया गया है उसे यूरोप से मंगाया गया है। इससे पहले इसरो कुल सात सैटेलाइट को लांच कर चुका है। IRNSS-1G 28 अप्रैल 2016, IRNSS-1F (10 मार्च 2016), IRNSS-1E (20 जनवरी 2016), IRNSS-1D (28 मार्च 2015), IRNSS-1C (16 अक्टूबर 2014), IRNSS-1B (4 अप्रैल 2014) और IRNSS-1A (1 जुलाई 2013) में लॉच किया जा चुका है।