पीएम मोदी के ऑफर के बारे में क्या आधा सच छिपा रहे हैं शरद पवार ?
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नई दिल्ली- पिछले दो हफ्तों में भाजपा और एनसीपी के शीर्ष नेतृत्व के बीच जिस तरह की सियासी जुगलबंदी और राजनीतिक दूरी का हिसाब-किताब दिखाने की कोशिश हुई है, उससे लगता है कि अभी महाराष्ट्र की सियासी पटकथा का अंत लिखा जाना बाकी है। प्रधानमंत्री से मुलाकात को लेकर 15 दिनों के भीतर शरद पवार ने जिस तरह से बड़ा खुलासा किया है, उससे लगता है कि उनके पास और भी बहुत कुछ राज बचे हुए हैं, जिनको वह समय पर सार्वजनिक कर सकते हैं। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि पवार साहब ने प्रधानमंत्री से मुलाकात को लेकर जो दावा किया है क्या वही अंतिम सत्य है या वह अपने हिसाब से अभी कुछ ही सच को सामने रख रहे हैं ?
मोदी ने दिया था साथ काम करने का ऑफर-पवार
एक मराठी चैनल को दिए इंटरव्यू में एनसीपी सुप्रीमो ने दावा किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें साथ मिलकर काम करने का ऑफर दिया था। पवार ये भी दावा कर रहे हैं कि उन्होंने पीएम मोदी का ऑफर ठुकरा दिया था। पवार के मुताबिक उन्हें ये ऑफर तब मिला, जब पिछले 20 नवंबर को संसद भवन में पीएम के चैंबर में महाराष्ट्र के किसानों की समस्या को लेकर उनसे मिलने गए थे। एनसीपी चीफ के मुताबिक जब पीएम मोदी तक अपनी बात पहुंचाने का बाद वह विदा हो रहे थे, तब मोदी ने उनसे ये बातें कहीं, जिसका मतलब ये था कि महाराष्ट्र में साथ सरकार बनाएं और केंद्र में भी एनसीपी भाजपा के साथ आ जाए। लेकिन, पवार ने कहा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री से साफ कह दिया कि उनके साथ व्यक्तिगत संबंध बहुत ही अच्छे हैं और भविष्य में भी रहेंगे, लेकिन फिलहाल राजनीति में साथ मिलकर काम करना उनके लिए मुमकिन नहीं होगा। गौरतलब है कि पवार और मोदी की ये मुलाकात करीब 50 मिनट तक चली थी और जिस वक्त में ये मुलाकात रखी गई थी, उसको लेकर सियासी कयासबाजियां उस वक्त भी खूब लगाई गई थीं। क्योंकि, ठीक उन्हीं दिनों प्रधानमंत्री ने संसदीय मर्यादाओं का बखूबी पालन करने के लिए एनसीपी की राज्यसभा में जमकर तारीफ भी की थी।
मोदी से मुलाकात के बाद क्या बोले थे पवार
जिस दिन शरद पवार संसद भवन में प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात करके आए थे तो उन्होंने दावा किया था कि उन्होंने पीएम को महाराष्ट्र के किसानों की समस्याओं की जानकारी से संबंधित ज्ञापन दिया। उन्होंने कहा था कि बेमौसम की बारिश की वजह से राज्य में किसानों को हुए नुकसान और बढ़ रहे कृषि संकट के मद्देनजर तत्काल उनसे हस्तक्षेप करने की मांग की है। महाराष्ट्र में जारी सियासी खींचतान के बीच हुई इस मुलाकात को लेकर जवाब को पवार ने तब साफ टाल गए थे। हालांकि, तभी से यह अटकलबाजियां लग रही थीं कि पीएम को दो ज्ञापन सौंपने के लिए ज्यादा से ज्यादा 20 मिनट का वक्त लगने चाहिए थे, लेकिन 50 मिनट की मुलाकात में कोई न कोई सियासी खिचड़ी जरूर पकी होगी। हालांकि, तब पवार ने सभी कयासों को खारिज करने की कोशिश की थी। यही नहीं तथ्य ये भी है कि पीएम से मुलाकात होने तक पवार ने शिवसेना को समर्थन देने को लेकर कभी भी अपनी राय स्पष्ट तौर पर पब्लिक डोमेन में नहीं रखी थी।
पवार की ओर से दो शर्तें रखने की बात सामने आ चुकी है
पिछले 29 नवंबर को ही भाजपा सूत्रों से ऐसी खबरें आ चुकी हैं कि प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत के दौरान बीजेपी को समर्थन देने के लिए शरद पवार ने दो शर्तें रखी थीं। रिपोर्ट्स के मुताबिक पवार की पहली शर्त ये थी कि उनकी बेटी सुप्रिया सुले को केंद्र में कृषि मंत्री बनाया जाय और दूसरी शर्त थी कि भाजपा देवेंद्र फडणवीस की जगह किसी दूसरे नेता को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बना दे। लेकिन, तब पीएम मोदी को पवार की इन दोनों शर्तों को इसलिए ठुकराना पड़ गया, क्योंकि एनसीपी को भारी-भरकम मंत्रालय देने का मतलब था कि बाकी एनडीए सहयोगी मसलन नीतीश कुमार के लिए दबाव बनाने का रास्ता खोल देना। क्योंकि, मोदी सरकार में जेडीयू का अभी कोई मंत्री नहीं है और वह रेल मंत्रालय पर दावा ठोक सकती है, जो कि बिहार के लिए हमेशा सियासी मुद्दा रहा है। दूसरी तरफ पीएम देवेंद्र फडणवीस के नाम पर समझौता कैसे कर सकते थे, जिसके नाम पर वहां उनका गठबंधन चुनाव जीत कर आया और 24 अक्टूबर को नतीजों के बाद फिर से मोदी ने उनके सीएम बनाए जाने की घोषणा की हो। इसलिए प्रधानमंत्री ने एनसीपी सुप्रीमो का प्रस्ताव ठुकरा दिया।
पवार के बारे में संजय राउत का रुख
महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी ताजा-ताजा साथ आए हैं। अभी एनसीपी प्रमुख की तारीफ में जितने कसीदे शिवसेना नेता संजय राउत पढ़ रहे हैं, उतना शायद ही उन्होंने कभी किसी के लिए पढ़े हों। लेकिन, पवार की सियासत के अंदाज को लेकर उन्होंने हाल में एक बात जो बार-बार दोहराया है, वह यह है कि शरद पवार की शख्सियत को समझना इतना आसान नहीं है। वे कहते हैं, 'शरद पवार क्या कहते हैं, इसे समझने के लिए सौ बार जन्म लेना पड़ेगा।' यही वजह है कि पवार के ताजा खुलासे के बाद वह भी चकमा खा गए होंगे। क्योंकि, जब महाराष्ट्र में शिवसेना के सियासी तोप के गोले सिर्फ भाजपा और उसके नेतृत्व पर दा जा रहे थे, तब पवार-मोदी की मुलाकात के बारे में खुद राउत ने ही दावा किया था कि प्रधानमंत्री से उनकी मुलाकात का कोई राजनीतिक मतलब नहीं निकालना चाहिए, 'पवार साहब प्रधानमंत्री से मिलकर राज्य के किसानों के लिए ज्यादा-से-ज्यादा राहत की मांग करेंगे।'
क्या आधा सच छिपा रहे हैं शरद पवार
ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या पवार साहब ने मराठी चैनल को दिए इंटरव्यू में जो कुछ भी बोला है, वही सर्वमान्य सत्य है या उन्होंने अभी आधा-अधूरा ही सच बयां किया है। यही नहीं, महाराष्ट्र में अभी-अभी तो नए प्रयोग वाले गठबंधन की सरकार बनी है, ऐसे में पवार के इस खुलासे का मतलब क्या है। क्या वह कांग्रेस और शिवसेना को भविष्य में भाजपा के साथ जाने का संकेत देकर दबाव में रखना चाहते हैं या फिर बीजेपी से कोई और पुराना राजनीतिक हिसाब चुकता करना चाहते हैं?
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