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एक कर्नल जिसकी यूनिट ने चूहे खाकर चीनी सेना को दी मात, आज उनके नाम अरुणाचल में एक पोस्‍ट

अरुणाचल प्रदेश में एक जगह है टेंगा घाटी और यहां पर एक पोस्‍ट है आशीष दास। पिछले दिनों इंडियन आर्मी की लेफ्टिनेंट रैंक की एक लेडी ऑफिसर जब इस पोस्‍ट पर पहुंची तो उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। उसे एक पल को यकीन ही नहीं हुआ कि पोस्‍ट और कोई नहीं बल्कि उसके पिता के नाम पर है।

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कोलकाता। अरुणाचल प्रदेश में एक जगह है टेंगा घाटी और यहां पर एक पोस्‍ट है आशीष दास। पिछले दिनों इंडियन आर्मी की लेफ्टिनेंट रैंक की एक लेडी ऑफिसर जब इस पोस्‍ट पर पहुंची तो उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। उसे एक पल को यकीन ही नहीं हुआ कि पोस्‍ट और कोई नहीं बल्कि उसके पिता के नाम पर है जिनकी बहादुरी के बारे में आज भी सेना में बातें होती हैं। टेंगा, तवांग सेक्‍टर में आता है और यह पोस्‍ट क्‍याफो में है। इस पोस्‍ट का नाम है आशीष टॉप और जब इस लेफ्टिनेंट ने पूछा कि आखिर इस नाम पर पोस्‍ट कैसे तो जो कुछ पता लगा, उसे सुनकर उसके आंसू बहने लगे। उसे पता चला कि आशीष टॉप उसके ही पिता कर्नल आशीष दास के नाम पर है जो असम रेजीमेंट में एक कर्नल थे और उस समय अपने घर पर थे।

ashish post in tenga

चीन से वापस हासिल की थी पोस्‍ट
इस लेफ्टिनेंट ने अपने घर कॉल किया और अपने पिता को इसके बारे में बताया। टाइम्‍स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्‍यू में कर्नल आशीष दास ने बताया,'आशीष टॉप के कमांडिंग ऑफिसर ने उन्‍हें फोन करके इस बात की जानकारी दी। उस ऑफिसर ने बताया कि उनकी बेटी को जब पोस्‍ट के बारे में पता लगा और यह पता लगा कि यह पोस्‍ट उनके पिता के नाम पर है तो वह अपने आंसू नहीं रोक पाईं।' आशीष दास ने जानकारी दी कि साल 1986 में उनकी यूनिट ने बहादुरी का परिचय देते हुए यहां पर चीन की पीपुल्‍स लिब्रेशन आर्मी को हराया था। चीन की सेना को खदेड़ने के बाद 14,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस पोस्‍ट पर फिर से इंडियन आर्मी ने अपना कब्‍जा किया था। कर्नल आशीष की बेटी का जन्‍म भी उस समय नहीं हुआ था। खुद कर्नल आशीष को इस बारे में 17 वर्ष बाद यानी साल 2003 में इस बात का पता चल सका था। दास ने उस समय को याद करते हुए बताया कि साल 1986 में उनकी पोस्टिंग अरुणाचल प्रदेश के सुमदोरोंग चू वैली में थी। उस वर्ष चीनी सैनिक एलएसी को पार करके काफी अंदर तक दाखिल हो गए थे। चीन की सेना ने हैलीपैड और बाकी स्थायी निर्माण करना शुरू कर दिया था। उस समय इंडियन आर्मी चीफ जनरल के सुंदरजी ने ऑपरेशन फॉल्कन लॉन्‍च किया। मीडिया इतना ज्‍यादा नहीं था और जो मीडिया देश में था उसने इस ऑपरेशन को ज्‍यादा अहमियत नहीं दी।

राशन नहीं पहुंचने पर चूहे खाकर जिंदा रही यूनिट
इस दौरान पूरी इंफ्रैंट्री ब्रिगेड को एयरलिफ्ट करके जिमिथांग पहुंचाया गया जो सुमदोरोंग चू वैली के पास है। दास ने बताया, 'हमें बूम ला से अपना रास्ता बनाना था और सांगेत्सर झील पहुंचना था। चीनी सैनिक झील के उस पार बैठे थे। हमें आदेश था कि वहां मोर्चा संभालें। हमने कुछ दिन बाद आगे बढ़ना शुरू कर दिया और क्‍याफो पहुंच गए जो उस समय बर्फ से ढका हुआ था। हमें यह नहीं पता था कि हमने न केवल चीनी शिविर को पार कर लिया है, अपनी स्थिति को भी मजबूत कर लिया है। आशीष दास और उनकी यूनिट ने जिस तरह से चीनी सेना का सामना किया था उसे जानकरी आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। उन्‍होंने बताया कि यूनिट को राशन पहुंचाने के लिए हवाई रास्‍ते से काफी कोशिशें की गईं लेकिन राशन चीनी सीमा के अंदर गिर गया। फिर सब लोगों को चूहें खाकर जिंदा रहना पड़ा था। पूरे ऑपरेशन के दौरान चीन और भारत के बीच काफी फायरिंग हुई और जवानों को तीन दिन बिना खाना के भी रहना पड़ा था।

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English summary
India Army young woman lieutenant scales peak, stumbles across outpost named after her dad in Tenga, Arunachal Pradesh.
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