कैंसर की जंग हार गए शौर्य चक्र विजेता जाबांज कमांडो कर्नल नवजोत बल, माता-पिता लॉकडाउन की वजह से गुरुग्राम में फंसे
नई दिल्ली। भारतीय सेना के शौर्य चक्र सम्मानित कर्नल नवजोत सिंह बल का बेंगलुरु में निधन हो गया है। कर्नल बल एक असाधारण तरह के कैंसर से पीड़ित थे जिसमें उनके फेफड़े, हृदय और उनका लिवर बुरी तरह से संक्रमित हो गए थे। जो बात और भी ज्यादा तकलीफ देने वाली है वह है लॉकडाउन। कोरोना वायरस महामारी के चलते पूरे देश में तीन हफ्तों का लॉकडाउन जारी है और ऐसे में उनके माता-पिता गुरुग्राम में फंस गए हैं। वह अपने बेटे को आखिरी समय में नहीं देख पाए हैं। फिलहाल इस बात की कोई जानकारी नहीं मिल सकी है कि कर्नल बल के माता-पिता उनके अंतिम संस्कार में शामिल हो सकेंगे या नहीं।
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साल 2018 में पता चला खतरनाक कैंसर का
39 साल के कर्नल बल ने गुरुवार के बेंगलुरु स्थित मिलिट्री हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली। वह पिछले दो साल से कैंसर की जंग लड़ रहे थे और यह काफी आक्रामक प्रकार का कैंसर था। कर्नल बल की कीमोथैरिपी जारी थी। उनकी दायीं बांह में साल 2018 में एक गांठ पड़ गई थी और इसी समय उन्हें कैंसर का पता लगा था। उन्होंने डॉक्टर को दिखाया तो पता चला कि उनको एक दुर्लभ किस्म का कैंसर है। उनका इलाज मुंबई के टाटा कैंसर रिसर्च सेंटर और अमेरिका में भी हुआ। लेकिन इसके बाद कैंसर उनके शरीर में फैलता जा रहा था। इसी वजह से डॉक्टरों को जनवरी 2019 मे उनका हाथ काटना पड़ा। कर्नल बल के घर में उनकी पत्नी आरती और दो बेटे आठ साल का जोरावर और चार साल का सरबाज हैं।
कैंसर भी नहीं कमजोर कर सका हौंसले
उनकी कीमोथैरिपी जारी थी और इसके बाद भी वह लगातार अपनी ड्यूटी पर जा रहे थे। कैंसर के बाद भी कर्नल बल का रूटीन पहले की ही तरह था। उन्होंने बीमारी को कभी अपनी जिंदगी के आड़े नहीं आने दिया। वेबसाइट द प्रिंट ने कुछ ऑफिसर्स के हवाले से लिखा है कि अपनी एक बांह के बाद भी कर्नल बल 50 पुल अप्स करते थे और 21 किलोमीटर की हाफ मैराथन में भी हिस्सा ले चुके थे। उनका दायां हाथ काट दिया गया था लेकिन इसके बाद भी उन्होंने बाएं हाथ से फायरिंग करने में कुछ हद तक श्रेष्ठता हासिल कर ली थी। कर्नल बल 2पैरा के साथ तैनात थे और उनके साथी उन्हें एक जाबांज कमांडो मानते हैं।
शौर्य चक्र से सम्मानित
कर्नल बल साल 2016 में नॉर्दन कमांड के साथ जम्मू कश्मीर में तैनात थे और इसी समय सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया गया था। 20 मार्च 2018 को वह 2पैरा के कमांडिंग ऑफिसर बन पोस्टिंग पर बेंगलुरु पहुंचे थे। साल 1998 में वह नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) में शामिल हुए और साल 2002 में 2पैरा के साथ कमीशंड हुए। कश्मीर की लोलाब वैली में हुए एक एनकाउंटर में उन्होंने दूर तक आतंकियों का पीछा किया था। दो आतंकियों को उन्होंने एनकाउंटर में ढेर किया था। इस ऑपरेशन के लिए उन्हें सर्वोच्च सैन्य सम्मान शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था। कर्नल बल के पिता भी सेना से रिटायर हैं।
बेटे को देखने के लिए बेचैन माता-पिता
76 वर्षीय लेफ्टिनेंट कर्नल (रिटायर्ड) केएस बल गढ़वाल राइफल्स के साथ तैनात थे। वह पंजाब के अमृतसर के रहने वाले हैं मगर अब गुरुग्राम में रहते हैं। सेना ने अब यह फैसला उनके परिवार पर छोड़ दिया है कि वो अपने बेटे के अंतिम संस्कार में शामिल होना चाहते हैं या नहीं। माता-पिता को मिलिट्री प्लेन से बेंगलुरु जाने की मंजूरी दी जा चुकी है। साथ ही उनके अवशेषों को भी परिवार की चुनी हुई जगह पर लाने की बात को भी सेना की मंजूरी दे दी थी। लेकिन माता-पिता मिलिट्री प्लेन से बेंगलुरु जाकर अंतिम क्रिया में मौजूद रहना चाहते हैं।