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करतारपुर कॉरिडोर: जानिए क्‍या है इसकी अहमियत और क्‍यों बॉर्डर पर दूरबीन की मदद से श्रद्धालु करते हैं दर्शन

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नई दिल्‍ली। सरकार ने गुरुवार को इस बात का ऐलान कर दिया है कि वह पंजाब के गुरदासपुर में स्थित करतारपुर कॉरिडोर अंतरराष्‍ट्रीय बॉर्डर तक निर्माण करेगी। सरकार के इस फैसले के साथ ही अब गेंद पाकिस्‍तान के पाले में है और अब पाक को फैसला लेना है। करतारपुर साहिब, पाकिस्‍तान के नारोवाल जिले में है जो पंजाब मे आता है। यह जगह लाहौर से 120 किलोमीटर दूर है। जहां पर आज गुरुद्वारा है वहीं पर 22 सितंबर 1539 को गुरुनानक देवजी ने आखिरी सांस ली थी। जानिए आखिर क्‍या है सिख समुदाय के लिए करतारपुर साहिब की अहमियत और क्‍यों यह दोनों देशों के बीच हाल ही में राजनीति का मुद्दा बन गया है। यह भी पढ़ें-गुरुनानक देव की 550वीं जन्‍मतिथि पर करतारपुर कॉरिडोर को खोलेगा भारत

क्‍या है करतारपुर साहिब

क्‍या है करतारपुर साहिब

करतारपुर कॉरिडोर सिखों के लिए सबसे पवित्र जगह है। करतारपुर साहिब सिखों के प्रथम गुरु, गुरुनानक देव जी का निवास स्‍थान था और यहीं पर उनका निधन हुआ था। बाद में उनकी याद में यहां पर एक गुरुद्वारा भी बनाया गया। करतारपुर साहिब, पाकिस्‍तान के नारोवाल जिले में है जो पंजाब मे आता है। यह जगह लाहौर से 120 किलोमीटर दूर है। जहां पर आज गुरुद्वारा है वहीं पर 22 सितंबर 1539 को गुरुनानक देवजी ने आखिरी सांस ली थी।गुरुनानक देव ने इस जगह पर अपनी जिंदगी के 18 वर्ष बिताए थे।

दूरबीन से कर पाते हैं श्रद्धालु दर्शन

दूरबीन से कर पाते हैं श्रद्धालु दर्शन

सिर्फ तीन किलोमीटर की दूरी यह श्राइन रावी नदी के करीब स्थित है और डेरा साहिब रेलवे स्‍टेशन से इसकी दूरी चार किलोमीटर है। यह गुरुद्वारा भारत-पाकिस्‍तान सीमा से सिर्फ तीन किलोमीटर दूर है। श्राइन भारत की तरफ से साफ नजर आती है। पाकिस्‍तानी अथॉरिटीज इस बात का ध्‍यान रखती हैं कि श्राइन के आसपास घास न जमा हो पाए और वह समय-समय पर इसकी कटाई-छटाई करते रहते हैं ताकि इसे देखा जा सके। भारत की तरफ बसे श्रद्धालु सीमा पर खड़े होकर दूरबीन की मदद से ही इसका दर्शन कर पाते हैं। मई 2017 में अमेरिका स्थित एक एनजीओ इकोसिख ने श्राइन के आसपास 100 एकड़ की जमीन पर जंगल का प्रस्‍ताव भी दिया था।

पटियाला के महाराजा ने दी रकम

पटियाला के महाराजा ने दी रकम

गुरुद्वारा की वर्तमान बिल्डिंग करीब 1,35,600 रुपए की लागत से तैयार हुई थी। इस रकम को पटियाल के महाराज सरदार भूपिंदर सिंह की ओर से दान में दिया गया था। बाद में साल 1995 में पाकिस्‍तान की सरकार ने इसकी मरम्‍मत कराई थी और साल 2004 में यह काम पूरा हो सका। हालांकि इसके करीब स्थित रावी नदी इसकी देखभाल में कई मुश्किलें भी पैदा करती है। साल 2000 में पाकिस्‍तान ने भारत से आने वाले सिख श्रद्धालुओं को बॉर्डर पर एक पुल बनाकर वीजा फ्री एंट्री देने का फैसला किया था। साल 2017 में भारत की संसदीस समिति ने कहा कि आपसी संबंध इतने बिगड़ चुके हैं कि किसी भी तरह का कॉरीडोर संभव नहीं है।

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English summary
Kartarpur sahib corridor: Know why the holy shrine is so important for Sikh community.
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