उपयुक्त मामलों में आरोपी को जेल की जगह हाउस अरेस्ट में रखा जाए: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। सोशल एक्टिविस्ट गौतम नवलखा की जमानत अर्जी को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। कोर्ट ने भीमा कोरेगांव से संबंधित कथित एल्गार परिषद-माओवादी मामले में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कुछ चुनिंदा मामलों में आरोपितों को सीआरपीसी के तहत जेल की बजाए हाउस अरेस्ट में रखा जाए। जेलों में भीड़भाड़ और जेलों की देखभाल पर राज्यों को आने वाले खर्च का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नजरबंदी की अवधारणा को अपनाया जा सकता है।
आपको बता दें कि नवलखा ने कानून में तय 90 दिन की अवधि के भीतर आरोपपत्र दाखिल न होने के आधार पर जमानत दिए जाने की मांग की थी। नवलखा ने 34 दिन हाउस अरेस्ट में रखे जाने को भी हिरासत की अवधि में जोड़ते हुए 90 दिन की अवधि के भीतर आरोपपत्र दाखिल न होने को जमानत का आधार बनाया था।
26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में हुई थी सुनवाई
गौतम नवलखा ने विशेष अदालत के समक्ष भी जमानत की याचिका दायर की थी, जो कि स्वीकार नहीं की गई। इसके बाद 8 फरवरी को बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी जमानत याचिका खारिज कर दी। बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस दौरान कहा था कि उन्हें विशेष अदालत के फैसले में दखल देने कोई उचित कारण नहीं दिख रहा है। शीर्ष अदालत ने जमानत याचिका पर 26 मार्च को ही फैसला सुरक्षित रखा था। बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ नवलखा की याचिका पर न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की एक पीठ ने अपना फैसला सुनाया है।
नवलखा माओवादी संगठनों से संबंध का आरोप
पुलिस के अनुसार, 31 दिसंबर 2017 को पुणे में एल्गार परिषद की बैठक में नवलखा द्वारा कथित तौर पर भड़काऊ भाषण दिया गया था। इस भाषण के बाद भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़की थी। पुलिस ने यह भी आरोप लगाए हैं कि कार्यक्रम को कुछ माओवादी संगठनों का भी समर्थन मिला हुआ था। फिलहाल, NIA इस पूरे मामले की जांच कर रही है।
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