ब्यूटी प्रोडक्ट में इस्तेमाल होने वाले माइका के खनन में बच्चों से कराई जाती है मजदूरी, बहुत बद्तर हैं हालात
नई दिल्ली, अगस्त 04। भारत में बाल मजदूरी कोई नई समस्या नहीं है। कई दशकों से देश में बाल मजदूरी की समस्या बनी हुई है। भले ही सरकार बाल मजदूरी को खत्म करने या फिर कम करने के लिए कई दावे करे, लेकिन वर्तमान में करीब सवा करोड़ बच्चे और नाबालिक देश में बाल मजदूरी कर रहे हैं। कुछ संस्थाओं के मुताबिक, भारत में बाल मजदूरों की संख्या साढ़े चार करोड़ तक हो सकती है। हालांकि कोई परिवार अपनी खुशी से अपने बच्चों से काम नहीं करवाता। मजबूरी और गरीबी की वजह से बाल मजदूरी करनी पड़ती है। इसका एक उदाहरण झारखंड के माइका मजदूर हैं, जो सालों से यहां की अवैध खदानों में माइका खोजते हैं।
ब्यूटी प्रोडक्ट में इस्तेमाल होने वाले माइका का बदसूरत सच
आपको बता दें कि माइका एक खनिज है, जिसका इस्तेमाल कॉस्टमेटिक प्रोडक्ट को बनाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा माइका का इस्तेमाल इलेक्ट्रोनिक आइटम, पेंट और निर्माण उद्योग में भी किया जाता है। शहरों में इस माइका खनिज के इस्तेमाल से बनने वाले ब्यूटी प्रोडक्ट से चेहरा चमकाने वाले लोगों को जरा माइका के बदसूरत सच के बारे में भी जरूर पता होना चाहिए। हैरानी वाली बात ये है कि झारखंड में, जहां माइका का खनन सबसे अधिक होता है, वहां बाल मजदूरी के जरिए खानों से माइका निकाला जाता है।
झारखंड के गिरिडीह की एक अवैध खान में कोमल देवी अपने 4 साल के बच्चे के साथ मिलकर माइका खोजती हैं। कोमल का कहना है कि हमारे छोटे-छोटे बच्चे हैं, उनको पालना भी होता है और हमारे पास कोई रोजगार नहीं है और ना ही कोई खेतीबाड़ी है, इसलिए हम यहां माइका निकालते हैं। कोमल कहती हैं कि बच्चों को पढ़ना भी उनके लिए मुमकिन नहीं है, इसलिए वो बच्चों को ढिबरा (माइका) चुनने के लिए ले आती हैं। कोमल का कहना है कि बच्चों की मदद से हम ज्यादा माइका चुन लेते हैं, जिसके बाद हमारा गुजारा हो पाता है।
आपको बता दें कि इस इलाके में सिर्फ कोमल ही माइका के खनन पर निर्भर नहीं हैं, बल्कि यहां अन्य उद्योगों की कमी के कारण सभी लोग माइका का खनन करने के लिए मजबूर हैं। संसाधनों की कमी और के कारण ही ये लोग माइका के खनन पर ही निर्भर हैं।
Video में देखें माइका का काला सच