राइट टू प्राइवेसी: केंद्र ने SC में कहा, डिजिटल युग में कुछ भी प्राइवेट नहीं
चाहे कोर्ट राइट टू प्राइवेसी को मौलिक अधिकार बताए या नहीं लेकिन ऑनलाइन के जमाने में कुछ भी प्राइवेट नहीं रह गया है।
नई दिल्ली। राइट टू प्राइवेसी मामले की सुनवाई के दौरान UIDAI ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि आधार के जरिए नागरिक को ट्रैक नहीं किया जा सकता है। अगर कोर्ट इजाजत दे भी देता है तो भी सरकार इसे सर्विलांस के तौर पर इस्तेमाल नहीं कर सकती।
एडिशनल सॉलिस्टर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोर्ट का काम कानून की व्याख्या करना है ना की कानून बनाना। चाहे कोर्ट राइट टू प्राइवेसी को मौलिक अधिकार बताए या नहीं लेकिन ऑनलाइन के जमाने में कुछ भी प्राइवेट नहीं रह गया है। राइट टू प्राइवेसी मामले में नौ जजों की संविधान पीठ ने सुनवाई की। UIDAI ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि प्राइवेसी एक कीमती अधिकार है।
आपको बता दें कि पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या सरकार के पास आधार के डेटा को प्रोटेक्ट करने के लिए कोई तरीका है? क्या केंद्र सरकार के पास डेटा प्रोटेक्ट करने के लिए ठोस सिस्टम है? सरकार के पास डेटा को संरक्षित करने लिए ठोस मैकेनिज्म होना चाहिए। हम जानते हैं कि सरकार कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार डेटा इकट्ठा कर रही है लेकिन यह भी सुनिश्चित हो कि डेटा सुरक्षित रहे।
एएसजी तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि ये डेटा पूरी तरह प्रोटेक्टेड है ।गैर बीजेपी राज्यों के सुप्रीम कोर्ट आने के बाद महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार भी सुप्रीम कोर्ट पहुंची है और उसने केंद्र सरकार का समर्थन किया है।राज्य सरकार ने कोर्ट में कहा कि प्राइवेसी एक मौलिक अधिकार नहीं है बल्कि एक धारणा है।प्राइवेसी की व्याख्या नहीं की जा सकती। यह कोई अलग से अधिकार नहीं है।