गुजरात में वाइब्रेंट समिट से विदेशी निवेश के दावे कितने सच्चे?
शाह बताते हैं, "महाराष्ट्र बिना किसी ऐसे सम्मेलन के निवेश में हमेशा नंबर वन रहा है. वाइब्रेंट गुजरात एक तरह का राजनीतिक पाखंड है जो कि राजनीति चमकाने के लिए किया जाता है. 1970 से गुजरात में बड़े पैमाने पर निवेश होता आया है. और तभी से गुजरात वाइब्रेंट रहा है. गुजरात में उद्योगों के विकास का श्रेय बिजली की उपलब्धता और अच्छी सड़कों को देना चाहिए.
"वाइब्रेंट गुजरात एक विभ्रम है. इस शब्द का मतलब ये है कि अगर रस्सी हो और सांप दिखे तो वो भ्रम है. लेकिन जहां रस्सी ही न हो और सांप दिखे तो वह विभ्रम है. वाइब्रेंट गुजरात एक ऐसा ही एक विभ्रम है."
ये शब्द थे अर्थशास्त्र के प्रोफे़सर हेमंत कुमार शाह के.
वाइब्रेंट समिट आयोजन से जुड़ी वेबसाइट का दावा है कि वो देश का सबसे बड़ा बिज़नेस समिट है. ये इस सम्मेलन की नौंवी कड़ी है जिसकी थीम है 'शेपिंग अ न्यू इंडिया'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सम्मेलन में कहा है कि भारत एक ऐसा देश है जहां डेमोक्रेसी, डेमोग्राफ़ी और डिमांड का बेहतरीन समन्वय दिखाई देता है.
वहीं, गुजरात के सीएम विजय रुपाणी ने कहा है कि गुजरात देश का बिजनेस हब है और देश के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए उनका राज्य प्रतिबद्ध है.
साल 2005 से गुजरात सरकार हर दो साल में इस सम्मेलन का आयोजन करती है.
निवेश के दावे कितने सच्चे
अक्सर ये दावा किया जाता है कि इस सम्मेलन की वजह से गुजरात में निवेश आ रहा है. लेकिन गुजरात के अर्थशास्त्री इस मुद्दे पर अलग-अलग विचार रखते हैं.
अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर हेमंत कुमार शाह ने बीबीसी गुजराती सेवा से बताया कि इस तरह के वाइब्रेंट समिट से कभी भी निवेश नहीं होता है.
वो कहते हैं, "कोई भी उद्योगपति निवेश तब करता है जब उसे फ़ायदा दिखाई दे. जब ऐसे उत्सव नहीं होते थे तब भी गुजरात विकसित था और निवेश हुआ करता था. जब बिना किसी समिट के निवेश मिल रहा था तो ऐसे समारोह की ज़रूरत ही क्या है? इस तरह के समारोह करने का मक़सद लोगों में विभ्रम पैदा करना है."
86.53 करोड़ निवेश का वादा?
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सूची में गुजरात पहले, दूसरे और तीसरे नंबर पर रह चुका है.
लेकिन अब ये राज्य पांचवे नंबर पर है.
प्रोफे़सर शाह बताते हैं, "2016-17 की सामाजिक-आर्थिक समीक्षा में सरकार ने कहा था कि जनवरी 1983 से अगस्त 2016 तक यानी 33 सालों में कुल 13 लाख 85 हज़ार 700 करोड़ रुपये के निवेश के वादे हुए थे जिसमें से 30 सितंबर 2016 तक सिर्फ़ 2 लाख 75 हज़ार 880 करोड़ रुपये का निवेश हुआ है. इसका मतलब ये हुआ कि वादों के मुक़ाबले सिर्फ़ 19.9 फीसदी निवेश गुजरात तक पहुंच पाया."
साल 2013 से 2017 के बीच हुए वाइब्रेंट गुजरात समिट में कुल 86.53 लाख करोड़ रुपये के निवेश का दावा किया गया था.
अगर 33 सालों में 13 लाख 85 हज़ार 700 करोड़ रुपये के निवेश का दावा था तो तीन सालों में इतना निवेश कैसे हो सकता है.
वाइब्रेंट समिट कितना सफल?
अर्थशास्त्र की प्रोफ़ेसर नेहा शाह इस मुद्दे पर अपनी राय देती हैं, "वाइब्रेंट समिट से गुजरात को एक प्लेटफॉर्म बिलकुल मिलता है. लेकिन इसी की वजह से निवेश आता है. ये नहीं कह सकते. जिन उद्योगपतियों को निवेश करना है. वे बिना वाइब्रेंट समिट के भी निवेश करेंगे. इससे नए अवसर खड़े होने का दावा ग़लत है. इस दौरान जितने समझौते होते हैं वे सभी निवेश में परिवर्तित नहीं होते हैं. और जो निवेश में बदलते भी हैं वो एक लंबे समय तक टिक नहीं पाते हैं."
"ऐसे में ये नहीं कहा जा सकता है कि इसकी वजह से राज्य में सुख समृद्धि बढ़ी है. ऐसे किसी प्लेटफॉर्म के बिना भी बंगाल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्य अच्छे निवेश ला पा रहे हैं."
अर्थशास्त्र विशेषज्ञ जयंद्र तन्ना कहते हैं, "2003 में शुरू हुए इस कार्यक्रम की वजह से गुजरात को बहुत फ़ायदा हुआ है. ऑटो मोबाइल के मामले में पीछे रहने वाला गुजरात अब एक हब बन चुका है. ये वाइब्रेंट गुजरात की वजह से हुआ है. फार्मास्युटिकल क्षेत्र में विदेशी कंपनियां निवेश कर रही हैं. टेक्सटाइल के क्षेत्र में भी विदेशी निवेश हुआ है. पेट्रो-कैमिकल के क्षेत्र में भी प्रगति हुई है. इन सबका श्रेय वाइब्रेंट गुजरात को दिया जा सकता है."
लेकिन इतनी अनुकूलताओं के बावजूद गुजरात के अलावा कई ऐसे राज्य हैं, जो ऐसे किसी कार्यक्रम के बिना गुजरात से ज़्यादा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हासिल करने में सफल हुए हैं.
जब ये सवाल जयंद्र तन्ना से किया गया तो इसके जवाब में वे कहते हैं, "दरअसल, भौगोलिक अनुकूलताएं भी बड़ी भूमिकाएं अदा करती हैं. वाइब्रेंट समिट की वजह से राज्य की छवि व्यापार के लिए अनुकूल राज्य के रूप में बनी है."
सरकार ने किया सफ़लता का दावा
वाइब्रेंट समिट को लेकर प्रदेश सरकार का दावा हमेशा सफलता का ही रहा है.
वाइब्रेंट में होते समझौते के ठीक-ठीक आंकड़े मिलना मुश्किल है.
सरकार की तरफ़ से भी सही आंकड़ों की बजाय लगभग के टैग के साथ आंकड़े जारी होते हैं.
2017 की वाइब्रेंट गुजरात समिट से पहले हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में राज्य के मुख्य सचिव जे एन सिंह ने कहा था कि अभी तक जो सात सम्मेलन हुए हैं उसके समझौतों की सफलता 66 फीसदी से भी ज़्यादा है. सिर्फ़ 2014-16 यानी तीन साल में 13.45 लाख नौकरियां पैदा हुईं और गुजरात पूरे देश में सबसे आगे था.
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नौकरियों के बिना तरक़्क़ी
नई नौकरियां पैदा होने वाले इस सरकारी दावे पर प्रोफे़सर शाह कहते हैं, "सरकार के सामाजिक-आर्थिक समीक्षा 2017-2018 में बताया गया है कि 2003 से लेकर अब तक राज्य में 17 लाख नौकरियां पैदा हुई हैं.
"अगर 14 साल का औसत निकाला जाए तो हर साल 1 लाख 22 हज़ार नौकरियां पैदा होनी चाहिए. गुजरात की आबादी में हर साल 11 लाख लोग बढ़ जाते हैं और रोज़गार मिलता है मात्र एक लाख 22 हज़ार लोगों को. तो कहने का मतलब ये है कि गुजरात की आबादी के लिए वाइब्रेंट समिट से नौकरियों के अवसर बहुत कम हैं."
आर्थिक कम और राजकीय ज़्यादा
प्रोफे़सर रमेश शाह कहते हैं, "ये एक बिना नौकरियों वाला विकास है. हमारे यहां छोटे किसानों की संख्या बहुत ज़्यादा है.''
वो कहते हैं, ''80 फ़ीसदी किसान ऐसे हैं जिनके पास दो हेक्टेयर से कम ज़मीन है. इतनी ज़मीन में परिवार का गुज़ारा नहीं हो सकता. ऐसे में उन्हें और उनकी नई पीढ़ी को रोज़गार मिलना बहुत ज़रूरी है. ऐसे में उद्योगों का बढ़ना भी ज़रूरी है. गुजरात ने जो नए उद्योग आ रहे हैं. वो ये रोज़गार नहीं दे पा रहे हैं. इसीलिए ये जॉबलेस ग्रोथ है."
प्रोफ़ेसर रमेश शाह इस समिट को अनावश्यक बताते हैं.
शाह बताते हैं, "महाराष्ट्र बिना किसी ऐसे सम्मेलन के निवेश में हमेशा नंबर वन रहा है. वाइब्रेंट गुजरात एक तरह का राजनीतिक पाखंड है जो कि राजनीति चमकाने के लिए किया जाता है. 1970 से गुजरात में बड़े पैमाने पर निवेश होता आया है. और तभी से गुजरात वाइब्रेंट रहा है. गुजरात में उद्योगों के विकास का श्रेय बिजली की उपलब्धता और अच्छी सड़कों को देना चाहिए.
वहीं, नेहा शाह कहती हैं, "वाइब्रेंट गुजरात आर्थिक कम और राजनीतिक दिखावे के लिए आयोजित किया जाता है जो गुजरात के महत्वाकांक्षी मध्यवर्ग को पसंद आता है. इसके पीछे का राजनीतिक समीकरण गुजरात के मध्यवर्ग के मतदाताओं को रिझाना है और ये होता हुआ दिख भी रहा है."