गुजरात बॉर्डर पर भी चीन से बढ़ा खतरा, पाकिस्तान ने ड्रैगन से की बड़ी डील
कच्छ। भारत को किसी भी रूप में नुकसान पहुंचाने के लिए पाकिस्तान अपनी हर कोशिश में लगातार लगा रहता है। गुजरात के कच्छ से महज 10 किलोमीटर दूर रण ऑफ कच्छ में पाकिस्तान ने चीन को 95 स्क्वायर किलोमीटर की जमीन लीज पर दे रखी है। यह जमीन चीन को सरकारी कंपनी को कोयले की खुदाई के लिए दी गई है, लेकिन इस खान में खुदाई से पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचेगा, जिसका सीधा असर भारत पर होगा। थरपरकर कोयला खदान व पॉवर प्रोजेक्ट को चीन ने शुरू किया है, जोकि भारत की सीमा से 40 किलोमीटर दूर है, लेकिन इस प्रोजेक्ट के फेज 2 की दूरी सीमा से महज 10 किलोमीटर दूर है।
साबित हो सकता है बड़ी चुनौती (तस्वीर सौजन्य- द हिंदू)
चीन की ओर से चलाए जा रहे इस कोयला खदान प्रोजेक्ट को कभी भी चीन या पाकिस्तान सैन्य रूप में प्रयोग करने के काम ला सकते हैं। भारत के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उसे इस बात की जानकारी नहीं मिल पाएगी कि यहां कितनी गहराई और दूरी तक सुरंग खोदी गई है। 125 मीटर से नीचे की खुदाई किए जाने पर भारत को इसकी इसकी जानकारी हासिल करना आसान नहीं होगा। 28 अक्टूबर की सैटेलाइट तस्वीरों का विश्लेषण करें तो यह साफ हो जाता है कि थरपरकर प्रोजेक्ट का 70 फीसदी काम पूरा हो चुका है। जिस तरह से चीन और पाकिस्तान के बीच द चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर के बदलने से कई तरह के बदलाव आए हैं जिसमे राजनीतिक बदलाव भी शामिल है, ठीक उसी तरह से थरपरकर कोयला खदान प्रोजेक्ट दोनों देशों के बीच किसी बड़े बदलाव की वजह बन सकता है।
2015 में शुरू हो गया था काम (तस्वीर सौजन्य- द हिंदू)
हाल की बात करें तो खुले गड्ढे की खदान में खुदाई करने का पाकिस्तान के पास दक्षता नहीं है, चीन की सिनोकोल इंटरनेशनल इंजीनियरिंग रिसर्च एंड डिजाइन इंस्टूीट्यूट इस बाबत पाकिस्तान की मदद कर रहा है। जानकारी के अनुसार इस जगह की ग्राउंड रिसर्च 2015 में शुरू हो गई थी। यहां जो कोयला है वह इग्नाइट यानि भूरा कोयला है, जिसकी गुणवत्ता निम्न स्तर की है, इसे मुख्य रूप से बिजली उत्पादन में इस्तेमाल किया जाता है।
हर तरफ से घेरने की तैयारी
वहीं अगर फेज 1 प्रोजेक्ट की बात करें तो इस प्रोजेक्ट की मुख्य खदान सिंध जिले के थरपरकर के इस्लामगढ़ से 25 किलोमीटर दूर है, जबकि दूसरा फेज इस्लामगढ़ से तकरीबन 35 किलोमीटर दूर है। पहला फेज इस्लामगढ़ से पूर्वोत्तर में है तो दूसरा फेज पूर्व दक्षिण इलाके में है। यहां मुख्य खदान 1400*1100 मीटर की है, इसकी गहराई 80-90 मीटर है। जानकारी के अनुसार द चाइना मशीनरी इंजीनियरिंग कोर्प यहां संभवत: कोयले की खदान बना रही है जोकि मुख्य खदान से 1.5 किलोमीटर दूर है। सीएमईसी इस बात के लिए भी तैयार हो गया है कि वह दूसरे फेज से 330 मेगावाट बिजली का उत्पादन करेगा।
70 फीसदी काम पूरा (तस्वीर सौजन्य- द हिंदू)
सैटेलाइट इमेज के अनुसार 70 फीसदी पॉवर प्लांट तैयार हो गया है, जिसमे 3 क्रशर हैं, 2 ब्वॉयलर, 10 कूलिंग फैन हैं, साथ ही यहां एक बड़ी चिमनी भी लगी है। यहां की सभी 13 साइट्स पर सड़कें बनाई गई हैं, माना जा रहा है कि इसे रेलमार्ग से भी जोड़े जाने की तैयारी हो रही है, जिसकी मदद से यहां निकलने वाला कोयला कराची भेजा जाएगा। इसके अलावा इस्लामगढ़ से 18 किलोमीटर दूर अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट् बनाया गया है, माना जा रहा है कि यह एयरपोर्ट सिविल और मिलिट्री दोनों के द्वारा इस्तेमाल किए जाने के लिए बनाया गया है।
भारत के लिए मुश्किल
भारत की सीमा के बेहद करीब चल रहे इस प्रोजेक्ट से लाखों पड़ों को नुकसान पहुंचा है, इन पेड़ों को काट दिया गया है और आने वाले समय में और पेड़ों को काटने की तैयारी है। पेड़ों के काटे जाने से यहां रहने वाले वन्य जीवों को नुकसान पहुंचा है। यहां पूरे इलाके में एक भी जलाशय नहीं बचा है। फेज 2 प्रोजेक्ट भारतीय सीमा से 10 किलोमीटर दूर है, ऐसे में भारत-पाकिस्तान की सीमा पर इतना करीब चीन की उपस्थिति भारत के लिए मुश्किल का सबब बन सकती है। यहां चीन ने अगले 30 सालों के लिए 95 स्क्वॉयर किलोमीटर जमीन को लीज पर लिया है।
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