
गवर्नर की नियुक्ति कैसे होती है, उन्हें कैसे हटाया जा सकता है ? केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना में हो रहा है विवाद
राजभवनों और राज्य सरकारों के बीच पिछले कुछ वर्षों से विवाद ज्यादा गहरे हो गए हैं। वैसे यह टकराव कोई नया नहीं है। कई बार तो राज्यपाल के पद के औचित्य पर ही सवाल खड़े किए गए जा चुके हैं। पिछले कुछ साल में गैर-बीजेपी शासित राज्य सरकारों और राजभवनों का विवाद इतना आम हो गया है कि यह मीडिया में सुर्खियां बनने लगी हैं। आम तौर पर राजनीतिक मर्यादा में रहने वाला गवर्नर का पद भी सरेआम सियासी आलोचनाओं का शिकार हो रहा है। केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और महाराष्ट्र इसके ताजा उदाहरण हैं। आइए जानते हैं कि यह विवाद क्यों हो रहे हैं और गवर्नरों की नियुक्ति, उनके अधिकार और उन्हें हटाने की प्रक्रिया क्या है?

केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना में हो रहा है विवाद
इस समय देश के कम से कम तीन राज्यों में राज्यपाल और वहां की प्रदेश सरकारों के बीच जमकर घमासान मचा हुआ है। ये तीनों राज्य हैं- गैर-भाजपा शासित केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना । बहुत ज्यादा दिन नहीं हुए हैं। जबतक उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ पश्चिम बंगाल के गवर्नर हुआ करते थे, वहां की ममता बनर्जी सरकार से उनके आए दिन टकराव की खबरें आती रहती थीं। टीएमसी सरकार और राजभवन के बीच कई बार यह टकराव राजनीतिक निम्नता तक पहुंच जाता था। इसी तरह महाराष्ट्र में जबतक उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली महा विकास अघाड़ी की सरकार थी तो राजभवन के साथ उसका कई बार छत्तीस का आंकड़ा नजर आता था। लेकिन, इस समय दक्षिण भारत के तीन राज्यों में राजभवन और प्रदेश सरकारों के बीच इतना विवाद बढ़ गया है कि तमिलनाडु ने तो राष्ट्रपति को राज्यपाल आरएन रवि को हटाने तक की मांग कर दी है।

राज्यपालों और राज्य सरकारों में टकराव की वजह क्या है ?
विश्वविद्यालयों के कामकाज और वाइसचांसलरों की नियुक्ति को लेकर केरल की लेफ्ट-फ्रंट सरकार और गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान के बीच टकराव इतना गहरा हो गया है कि राज्य सरकार ने उन्हें चांसलर पद से हटाने के लिए अध्यादेश लाने की तैयारी की है। तमिलनाडु में तो डीएमके की अगुवाई वाली एमके स्टालिन सरकार ने राज्यपाल आरएन रवि को हटाने के लिए राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखी है। प्रदेश सरकार ने उनपर 'सांप्रदायिक नफरत को हवा देने' के आरोप तक लगाए हैं। वहीं तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसै सौंदरराजन को लगता है कि के चंद्रशेखर राव की सरकार राजभवन का फोन टैप करती है। उसने विधायकों की कथित खरीद-फरोख्त में भी राजभवन को घसीटने की कोशिश की है।

गवर्नरों की नियुक्ति और उन्हें हटाने की क्या प्रक्रिया है
संविधान के आर्टिकल 155-156 में राज्यपालों की नियुक्ति और उन्हें पद मुक्त किए जाने की व्यवस्था है। संविधान में स्पष्ट रूप से लिखा है कि राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और वे 'राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत' उस पद पर रहेंगे। यहां प्रसादपर्यंत का सामान्य अर्थ है, राष्ट्रपति की इच्छा तक। यानि राज्यपालों की नियुक्ति 5 वर्ष के लिए होती है, लेकिन राष्ट्रपति चाहे तो उन्हें उससे पहले भी हटा सकता है। लेकिन, संविधान में ही यह व्यवस्था भी है कि राष्ट्रपति केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह से कार्य करता है। मतलब ये है कि प्रभावी तौर पर राज्यपालों की नियुक्ति, पद से हटाने, दूसरे राज्यों में भेजे जाने, यह सब फैसले केंद्र सरकार लेती है।

राज्यपाल का कार्य
एक राज्यपाल राज्यों में केंद्र के प्रतिनिधि के तौर पर कार्य करते हैं। संविधान के आर्टिकल 163 के मुताबिक वह आमतौर पर राज्य के मंत्रिपरिषद की सलाह से काम करते हैं। लेकिन, कुछ मामलों में राज्यपाल को संविधान के तहत विवेकानुसार फैसले लेने का अधिकार है। यानि एक तरह से राज्यपाल केंद्र और राज्य सरकारों के बीच पुल का कार्य करता है, लेकिन अधिकतर मामलों में उनके पास स्वतंत्र रूप से काम करने का अधिकार नहीं होता। लेकिन, राज्य सरकार को उन्हें राजभवन से हटाने का भी अधिकार प्राप्त नहीं है और राष्ट्रपति की' इच्छा' तक वह संबंधित राज्य में गवर्नर का दायित्व निभा सकता है। अलबत्ता केंद्र सरकार राज्यपाल से संबंधित राज्य की हालात पर रिपोर्ट तलब कर सकता है। संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार अगर किसी राज्य में संविधान की व्यवस्था के तहत सरकार चलाना संभव नहीं हो पा रहा है तो वह गवर्नर की रिपोर्ट पर आर्टिकल-356 के तहत वहां राष्ट्रपति शासन लगाने की सलाह राष्ट्रपति को दे सकता है। ऐसी स्थिति में प्रदेश में शासन की कमान सीधे केंद्र सरकार के नियंत्रण में आ जाता है, जो राज्यपाल के माध्यम से उसे संचालित करता है।

राज्यपाल विवेक के आधार पर फैसले कब लेता है ?
आमतौर पर राज्यपाल प्रदेश के मंत्रिपरिषद की सलाह से ही फैसले लेता है। लेकिन, उसके पास कुछ संवैधानिक अधिकार भी हैं। वह विधानसभा (जहां विधान परिषद है, वहां दोनों से) से पास किसी विधेयक पर मुहर लगा सकता है या उसे रोक सकता है या अपनी आपत्तियों के साथ उसे वापस कर सकता है। यदि राज्य में सत्ताधारी सरकार के विधानसभा में अल्पमत में आने की स्थिति पैदा होती है तो राज्यपाल अपने विवेकाधिकार का इस्तेमाल करते हुए, एक निश्चित समय-सीमा के अंदर उसे सदन में बहुमत साबित करने को कह सकता है। चुनाव के बाद यदि किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है, तब भी उसके पास विवेकानुसार फैसले लेने का अधिकार होता है।