ज्ञानवापी मामलाः अदालत के फ़ैसले पर क्या बोले बनारस के कुछ आम लोग?
वाराणसी की एक अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में पूजा किए जाने के अधिकार से संबंधित याचिका को सुनवाई के लिए मंज़ूर कर लिया है. इस फ़ैसले के बाद कुछ आम लोगों से बीबीसी ने उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही.
ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ी अहम बातें
- ज्ञानवापी मस्जिद के इतिहास को लेकर विवाद है
- कइयों का मानना है कि पहले से यहाँ मौजूद विश्वनाथ मंदिर को तोड़वाकर मस्जिद बनाई गई थी
- कई इतिहासकारों का कहना है कि ऐतिहासिक दस्तावेज़ों में मंदिर तोड़ने का ज़िक्र नहीं है
- ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में देवी देवताओं की पूजा की मांग को लेकर की गई पाँच महिलाओं की याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है
"कैमरे पर बोल नहीं सकते. कल को प्रशासन का कौन आ जाए और क्या आरोप लगाकर उठा जाए कि आप लोगों को भड़का रहे हैं, माहौल बिगाड़ रहे हैं."
ये शब्द थे काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद से थोड़ी दूर पर ही स्थित नई सड़क बाज़ार के एक मुस्लिम व्यापारी के. इस बाज़ार के बारे में प्रसिद्ध है कि यहाँ जीने से लेकर मरने का हर सामान मिलता है.
इस व्यापारी ने कहा कि चाहे स्थानीय लोग भूल गए हों कि ऐसा कोई मामला अदालत में है, लेकिन मीडिया और प्रशासन के सुरक्षा इंतज़ाम इतना शोर मचाते हैं, जैसे लोगों को याद दिला रहे हों कि कुछ बड़ा होने वाला है.
सोमवार को इस बातचीत से थोड़ी ही देर पहले वाराणसी की ज़िला अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में माँ श्रृंगार गौरी की पूजा की मांग को लेकर गईं पांच महिलाओं की याचिका की सुनवाई आगे बढ़ सकती है. मुस्लिम पक्ष ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है.
इस फ़ैसले के आने के बाद बीबीसी ने वाराणसी में कुछ स्थानीय हिंदुओं और मुसलमानों से उनकी प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की.
कुछ मुसलमानों की प्रतिक्रिया
स्थानीय पत्रकार अतीक अंसारी रेवड़ी तालाब की तंग गलियों में से एक में रहते हैं. अदालत के फ़ैसले के थोड़ी देर बाद हल्की बारिश के बीच हम उनसे मिलने पहुँचे.
अतीक अंसारी कहते हैं, "अफ़सोस है. अगर यहाँ से मायूसी हाथ लगी है तो कमिटी ऊपर की अदालत में जाएगी. जाने का उसे हक़ है और जाना भी चाहिए."
"इस सिलसिले का कोई अंत नहीं दिखलाई दे रहा है. काशी, मथुरा, ताजमहल, कुतुब मीनार, ये मस्जिद. वो मस्जिद. ये फ़ैसला हो जाए कि ये आख़िरी लिस्ट है और मामला कहाँ तय होगा. आपस की बातचीत से होगा या अदालत से होगा लेकिन ये चैप्टर बंद होना चाहिए. रोज़ी-रोटी की भी बात होनी चाहिए."
कई लोगों को लगता है कि जो बाबरी मस्जिद मामले में हुआ वो इस केस में भी न हो. बाबरी मस्जिद को 1992 में उग्र हिंदुओं ने ढहा दिया था.
अतीक अंसारी कहते हैं, "ये सच है कि वहाँ (श्रृंगार गौरी) जल चढ़ाया जाता था. 1992 में उस पर रोक लगा दी गई. उसके बाद से अब तक रोक लगी हुई थी. 1991 के वर्शिप ऐक्ट वाला मामला उठाया गया, उसको अदालत ने ख़ारिज कर दिया. एक तरह से ठीक ही है कि 1992 तक तो (पूजा) वहाँ पर हुई तो (वो) इस दायरे में ये नहीं आती. इस तरह की बहस और एंगल, छोटे-छोटे बारीक नुक़्ते- इसकी कोई सीमा नहीं है."
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1991 में जब कांग्रेस की पीवी नरसिम्हा राव सरकार उपासना स्थल विधेयक (विशेष प्रावधान) लेकर आई, तब देश में राम मंदिर आंदोलन अपने उफ़ान पर था.
उसी साल बने इस क़ानून में कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 के वक़्त जो भी धार्मिक स्थल जिस स्थिति में होगा, उसके बाद वो वैसा ही रहेगा और उसकी प्रकृति या स्वभाव नहीं बदलेगा.
सोमवार को 26 पन्ने के अपने आदेश के 17वें पन्ने पर अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता मां श्रृंगार गौरी की पूजा करना चाहती हैं, उनका दावा है कि 1993 तक उन्होंने वहाँ पूजा की. याचिका में विवादित संपत्ति (प्रॉपर्टी) के ऊपर स्वामित्व का दावा नहीं किया जा रहा है.
अदालत ने कहा, "उन्होंने मुक़दमे में ये घोषणा नहीं की है कि विवादित संपत्ति को मंदिर घोषित किया जाए."
अंसारी कहते हैं कि सड़क पर फैसले न हों और जो अदालत फ़ैसला दे लोग उसे ही मानें.
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अदालत और इंसाफ़
अतीक अंसारी के घर के नज़दीक ही स्थित हाफ़िज़ ज़हूर मस्जिद है. बाहर कई पुलिकर्मी तैनात थे. वाराणसी के कई इलाक़ों में भी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था थी. एक दिन पहले वाराणसी पुलिस ने फ़्लैग मार्च भी किया था.
मस्जिद में नमाज़ अदा करके बाहर निकलने वालों में सफ़ेद कुर्ते में मोहम्मद सुलैम भी थे.
अदालत के आदेश पर प्रतिक्रिया पूछने पर वो थोड़ा मुस्कुराए, फिर बोले, "अदालत में फ़ैसला होता है, इंसाफ़ नहीं होता."
उनके नज़दीक खड़े साड़ियों के व्यापारी अब्दुल्ला नासिर ने कहा कि माहौल एकदम शांत है. जैसे आम दिनों में हम पहले रहते थे, वैसे ही सब आज भी रह रहे हैं.
वो कहते हैं, "अदालत जो फ़ैसला करेगी, हमारे यहाँ बैठे धर्म गुरु उनको फॉलो करते हैं. वो कहते हैं, जो अदालत कहेगी, हम उसे मानेंगे."
अदालती आदेश पर अंजुमन इंतज़ामिया मस्जिद के महासचिव एसएम यासीन ने कहा कि वो आदेश के ख़िलाफ़ आगे की अदालत में जाएंगे.
स्थानीय वकीलों का कहना है कि मुस्लिम पक्ष इस आदेश के ख़िलाफ़ हाई कोर्ट में अपील कर सकता है.
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दूसरी भी फ़िक्र
बनारस में नई सड़क कपड़ा मार्केट से थोड़ी दूर पर रेवड़ी बाज़ार स्थित है. पास ही में ही काशी विश्वनाथ और ज्ञानवापी मस्जिद हैं.
वहीं कपड़ा व्यापारी फ़िरोज़ सिद्दीक़ी की फ़िक्र किसी और बात को लेकर थी.
वह कहते हैं, "फ़ैसला जो भी आए, वो तो मानना ही है. लेकिन जबसे ये विवाद चला, यहाँ का पूरा बाज़ार ख़राब हो गया है. विवाद से लोग डर गए कि कहीं कुछ हो न जाए. यहाँ पर कोई आता ही नहीं है. बार-बार पुलिस आकर दौड़ती रहती है. विवाद तो जहाँ है, वहाँ है. पूरा बाज़ार तबाह हो गया है."
फ़िरोज़ सिद्दीक़ी कहते हैं कि आदमी इंसानियत की बात करे और पढ़ाई-लिखाई से जुड़े.
थोड़ी दूर पर एक और दुकान चलाने वाले शकील अहमद अदालत के आदेश के बारे में पूछने पर कहते हैं, "अदालत के फ़ैसले की अगर हम आलोचना करते हैं तो वो ग़लत होगा."
वो बोले, "दुकानें खुली हैं. बिज़नेस का कुछ अता-पता नहीं है. इस बाज़ार की हालत बहुत ख़राब हो चुकी है. ये मंदिर-मस्जिद का जो मसला खुला है, उससे हालत बहुत ख़राब हो चुकी है. हर आदमी के अंदर एक भय पैदा हो गया है कि क्या किया जाए, कब हालात बिगड़ सकते हैं. पिछले छह महीनों से मार्केट की स्थिति बहुत ख़राब चल रही है. ग्राहक यहाँ से ग़ायब हो चुके हैं."
वजहों को समझने के लिए स्थानीय पत्रकार उत्पल पाठक कुछ महीने पीछे ले जाते हैं.
उत्पल पाठक कहते हैं, "मई महीने में जब वाराणसी ज़िला कचहरी की निचली अदालत ने इस मुक़दमे को लगातार सुनना शुरू किया तब से ही मीडिया चैनलों का जमावड़ा लग गया था और पल-पल की ख़बरें टीवी पर दिखायी जा रही थीं. उसके बाद कोर्ट कमिश्नर की कार्यवाही जो तीन दिन लगातार चली उस दौरान पुलिस ने ज्ञानवापी से सटे कई इलाक़ों की दुकानें सुरक्षा के दृष्टिकोण से बंद करवा दी थीं.
ज्ञानवापी से चंद क़दम दूर मुस्लिम बाहुल्य इलाक़े दालमंडी और उससे जुड़े हड़हा सराय, नई सड़क जैसे मुस्लिम बाहुल्य इलाक़ों में थोक और फुटकर सामानों की हज़ारों दुकानें हैं. यहाँ से कई तरह के सामान, कपड़े पूर्वांचल के अन्य शहरों और कस्बों साथ ही बिहार झारखंड के अलावा नेपाल बॉर्डर के बाज़ारों तक सप्लाई किए जाते हैं.
उत्पल पाठक के मुताबिक़ मई के महीने में जब शादी-विवाह का समय होता है, तब इन इलाक़ों में अच्छी ख़ासी बिक्री होती है. लेकिन उसी महीने में मीडिया में ज्ञानवापी को दी गई कवरेज से एक भय का माहौल बना और बाहरी प्रांतों के व्यापारी नहीं आए.
वह कहते हैं,"जून में कोर्ट बंद होने की वजह से व्यापार में सुधार शुरू हुआ था कि जुलाई से मुक़दमे की तारीख़ पड़ने लगी और सुरक्षा के दृष्टिकोण से पुलिस इन इलाक़ों में हर संवेदनशील तारीख़ के पहले और रुट मार्च एवं फ्लैग मार्च निकालती है.
"अतिरिक्त बल के साथ आला अधिकारी भी मौजूद रहते हैं. ऐसे में स्थानीय ग्राहकों जिनमे विशेष रूप से महिलाएं शामिल होती हैं वो डर के मारे दालमंडी या नई सड़क जैसे इलाक़ों में ख़रीददारी करने की कोशिश भी नहीं करती हैं."
कुछ हिंदुओं की प्रतिक्रिया
काशी विश्वनाथ मंदिर के पास गोदौलिया चौराहे पर ट्रैफिक संभालना आसान काम नहीं होता है.
यहाँ एक दुकान चलाने वाले आकाश केसरी ने अदालत के आदेश पर कहा, "बहुत सही फ़ैसला आया है. आने वाले समय में ऐसा ही फ़ैसला देते रहें बस."
नज़दीक ही लक्ष्मी नारायण यादव एक और दुकान चलाते हैं. वो कहते हैं "हिंदुओं के पक्ष में फ़ैसला आया है. हम लोग बहुत ख़ुश हैं."
गोदौलिया चौराहे पर एक हिंदू व्यक्ति ने कहा, "वहाँ पर पूजा तो करने ही देनी चाहिए. जो चला आ रहा है पूजा करने को उसे तो पूजा करने ही देना चाहिए."
एक अन्य हिंदू व्यक्ति ने कहा कि हिंदू होने के नाते वो ख़ुश तो हैं लेकिन वो नहीं चाहते कि इस विवाद की वजह से वाराणसी की शांति पर कोई असर पड़े.
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