गुजरात-हिमाचल से दिल्ली तक कौन लोग वोट डालने नहीं गए ? जानिए
अभी गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा के लिए चुनाव हुए हैं। दिल्ली एमसीडी के लिए भी वोटिंग हुई है। लेकिन, मतदान का प्रतिशत बहुत कम हो गया है। इसका कारण शहरी वोटरों के मन में मतदान प्रक्रिया को लेकर बढ़ रही है उदासीनता है।
मतदान का प्रतिशत कम क्यों हो रहा है ?
गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए हैं और दिल्ली में एमसीडी के लिए वोट डाले गए हैं। लेकिन, हर जगह यही ट्रेंड दिखा है कि वोटरों में उत्साह नहीं था। चुनाव आयोग तक की अपील के बावजूद मतदान का प्रतिशत अप्रत्याशित तौर पर कम रहा है। यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है। अलबत्ता ये बात अलग है कि चुनाव आयोग की और से अधिक मतदान की अपील को भी कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने अलग नजरिए से देखने की कोशिश की है। लेकिन, सवाल तो जायज है कि खासकर शहरों में मतदान का प्रतिशत कम क्यों हुआ है ? और इसे कैसे ठीक किया जा सकता है। क्योंकि, विकसित लोकतांत्रिक देशों में 90 फीसदी से भी ज्यादा वोट पड़ते हैं।
एमसीडी में 50% से थोड़ा ज्यादा मतदान
सबसे पहले राजधानी दिल्ली को ही ले लेते हैं। रविवार को यहां दिल्ली नगर निगम के लिए चुनाव कराए गए। मुश्किल से 50% से थोड़े ज्यादा वोटर बूथ तक पहुंचे। पांच साल पहले यानि 2017 में 53.6% मतदान हुआ था। इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक बूथ से बेरुखी के बारे में शालीमार बाग की एक वोटर रूपम मलिक दत्ता ने जो कुछ कहा, उससे लगा कि वह सभी पार्टियों से ऊब चुकी हैं। उनको लगता कि किसी को वोट दो बेकार है। वो बोलीं, 'वोट देना बेकार का काम है।' रूपम अकेली नहीं हैं। इस बार एमसीडी चुनाव में दिल्ली के जिन 70 लाख से ज्यादा वोटरों ने वोटिंग नहीं की है, उनमें से बहुतों की पीड़ा ऐसी ही नजर आती है।
दिल्ली का ट्रेंड क्या कह रहा है ?
वोटिंग से बेरुखी यह सिर्फ दिल्ली के वोटरों की कहानी नहीं है। दिल्ली हो या मुंबई खासकर शहरों में यह ट्रेंड ज्यादा दिख रहा है। अलबत्ता इसके कारण अलग हो सकते हैं। मसलन, दिल्ली में 15 साल से एमसीडी में बीजेपी है। आम आदमी पार्टी भी करीब 9 साल से दिल्ली की सरकार चला रही है। कांग्रेस का जमीन पर कोई वजूद नजर नहीं आता है। ऐसे में लगता है कि दिल्ली के शहरी वोटरों ने दिल्ली में निगम की व्यवस्था बेहतर होने की आस ही छोड़ दी है! दिल्ली में शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में वोटिंग पैटर्न का अंतर साफ देखा जा सकता है। मसलन, दक्षिणी दिल्ली के एंड्रयुज गंज में सबसे कम 33.7% मतदान हुआ तो बख्तावरपुर में सबसे ज्यादा 65.7%. यह इलाका ग्रामीण क्षेत्र में आता है, साथ ही साथ यहां अनाधिकृत कॉलोनियों की भी भरमार है। जिनकी जरूरतें शहरी क्षेत्र के लोगों से पूरी तरह से अलग हैं।
गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी कम वोटिंग का ट्रेंड
शनिवार को भारतीय चुनाव आयोग ने गुजरात में पहले चरण में कम मतदान के बाद मतदाताओं से ज्यादा से ज्यादा संख्या में वोटिंग की अपील की थी। क्योंकि, पहले फेज में जहां कुल 63.3% वोट पड़े थे, सूरत, राजकोट और जामनगर जैसे शहरों में औसत वोटिंग इससे भी कम हुई थी। पहले चरण में 2017 में वहां 66.75% वोटिंग हुई थी। 'शहरी उदासीनता' खत्म करने के लिए चुनाव आयोग ने अपने अधिकारियों से जागरूकता अभियान चलाने को भी कहा था, ताकि मतदान का प्रतिशत बढ़ाया जा सके। लेकिन, दूसरे चरण में भी उसका कोई खास प्रभाव नहीं नजर आया। चुनाव आयोग की चिंता पिछले 12 नवंबर को हिमाचल प्रदेश के चुनाव को लेकर भी थी। वहां राजधानी शिमला में राज्य के औसत से भी 13% कम वोट पड़े थे। जबकि, पूरे प्रदेश में कुल मतदान में 5% की कमी नजर आई थी। शहरी मतदाताओं में अपने मताधिकार से दूरी बनाने जैसी स्थिति बाकी बड़े शहरों में भी दिख रही है।
दूसरे बड़े शहरों में भी कम वोटिंग का ट्रेंड
पिछले महीने ही मुंबई की अंधेरी में हुए उपचुनाव में भी सिर्फ 31.7% वोटिंग हुई थी। हालांकि, वहां उद्धव ठाकरे की पार्टी की उम्मीदवार के अलावा मैदान में कोई गंभीर प्रत्याशी नहीं था। इसी साल पंजाब में भी विधानसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत 5% कम दर्ज किया गया था। महाराष्ट्र का पुणे शहर तो पहले से ही कम वोटिंग के लिए चुनाव आयोग की रडार पर रहा है। इस मसले पर दिल्ली के एक निवासी विनय दास कहते हैं, 'अगर आप किसी उम्मीदवार को देखकर वोट दे देते हैं। लेकिन, आखिरकार वह अपनी पार्टी की संस्कृति में ही काम करेगा। फिर क्या मतलब है?'
मतदान को लेकर महिलाओं में ज्यादा जागरूकता
शहरी-ग्रामीण क्षेत्रों के वोटिंग पैटर्न के अलावा एक और बहुत बड़ा बदलाव नजर आने लगा है। आंकड़े बताते हैं कि पुरुषों के मुकाबले अब महिलाएं ज्यादा वोटिंग कर रही हैं। हालांकि, चुनाव लड़ने में अभी भी पुरुष प्रत्याशियों की संख्या तुलनात्मक रूप से काफी ज्यादा है। एक तथ्य यह भी है कि कई शहरी लोग जो मतदान के लिए योग्य हो चुके हैं, वह अपना नाम वोटर लिस्ट में दर्ज करवाने के लिए भी पूरी तरह से जागरूक नजर नहीं आते। वहीं, वोटिंग से दूर होने वालों में अधिकतर तादाद उनकी है, जिनका किसी ना किसी वजह से लोकतंत्र के इस महापर्व से मोहभंग हुआ है।