मानव-हाथी संघर्ष में होने वाली मौतों में आठ गुना बढ़ोतरी
छत्तीसगढ़। ओडिशा और झारखंड के धड़ाधड़ कटते जंगल से नए आशियाने के तलाश में हाथियोें ने छत्तीसगढ़ जंगलों की ओर रुख किया तो आब यह आबादी भीषण तबाही जैसा रूप धारण कर रही है। दरअसल, इसी पर्यावणीय असंतुलन की वजह से लापरवाही मानव-हाथी संघर्ष के रूप में सामने आई है। इस संघर्ष में सैंकड़ों लोगों को मौत तक खतरनाक सफर तय करना पड़ा है।
ग्रीनपीस के अविनाश चंचल ने बताया कि छत्तीसगढ़ में हाथियों की संख्या लगातार बढ़ी है। ओडिशा और झारखंड में जंगलों की अंधा-धुंध कटाई की वजह से 80 के दशक में हाथियों ने राज्य के जंगलों की तरफ पलायन करना शुरू किया था। इसके परिणामस्वरुप मानव-हाथी संघर्ष बढ़ने से मानव मौत, जानवर और संपत्ति को नुकसान पहुंचा है।
हाथियों के हमले से मरने वाले लोगों की संख्या में आठ गुनी वृद्धि हुई है। साल 2005 के बाद 25 लोगों की औसत मृत्यु प्रति साल दर्ज की गयी है।
रिपोर्ट "एलिफेंट इन द रुम"(1) में छत्तीसगढ़ के चार वन प्रभागों दक्षिण सरगुजा, कटघोरा, कोरबा और धर्मजयगढ़ में मानव-हाथी संघर्ष के बारे में अध्ययन किया गया है। इन चार वन प्रभागों में दो कोयला क्षेत्र हसदेव अरंद और मंडरायगढ़ स्थित है। यह रिपोर्ट इन चार वन प्रबघों में, जहाँ कोयले की खदाने प्रस्तावित है, मौजूदा मुद्दों पर गेहराई से नजर डालता है।
इस रिपोर्ट के अनुसार, साल 2005 से 2013 के बीच छत्तीसगढ़ में 14 हाथियों की बिजली के झटके से मौत हुई। इस अवधि में मानव-हाथी संघर्ष की वजह से 198 मानव मौत हुई। राज्य में 2004 से 2014 के बीच 8, 657 घटनाएँ संपत्ति नुकसान और 99,152 घटनाएँ फसल नुकसान की दर्ज की गयी। इस अवधि में मानव-हाथी संघर्ष की वजह से 2,140.20 लाख मुआवजे की राशि का भुगतान किया गया।
ग्रीनपीस के कैंपेनर और इस रिपोर्ट के लेखक, नंदीकेश शिवलिंगम ने कहा, "इन वन प्रभागों में हाथियों की मौजूदगी के स्पष्ट सबूत और कोरबा तथा धर्मजयगढ़ के जंगलों को बचाने के लिये विशेष संस्थाई निकायों की सलाह के बावजूद सरकार संभवतः खनन हितों के लिये प्रस्तावित लेमरु हाथी रिजर्व के प्रस्ताव से पीछे हट गयी है। यह जंगल न सिर्फ हाथियों के लिए पर भालू, तेंदुओं और संभवतः बाघों के लिए घर है। यह विडंबना है की केंद्र से लेमरू के लिए २००७ में हरी झंडी मिलने के बावजूद, राज्य सरकार ने इसे रद्द कर दिया।"
इस विडंबना की और इशारा करते हुए गोल्डमैन इनवॉयरमेंट पुरस्कार के विजेता कार्यकर्ता रमेश अग्रवाल कहते हैं, "राज्य द्वारा इन जंगलों से दूर हाथियो के लिये सुरक्षित क्षेत्र का प्रस्ताव स्पष्ट रुप से इस समस्या का कोई हल नहीं है।
हाथियों ने छत्तीसगढ़ के जंगलों में रहना और प्रजनन करना शुरू कर दिया है। राज्य को उथले समाधान सुझाने बंद कर देने चाहिए जो असल समस्या को हल नहीं करते। इससे राज्य के लोगों और हाथियों की जिन्दगी का नुकसान हो ही रहा है, साथ ही लोगों को पैसे की क्षति भी हो रही है। इसलिए राज्य के लोगों और वन-जीवन की सुरक्षा के लिए एक सक्षम रणनीति की जरुरत है।"