2002 में लड़ा चुनाव, चार साल की लाइब्रेरियन की नौकरी, जानिए फिर क्यों भीख मांग रही ये महिला
नई दिल्ली। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में लोग उस समय हैरान रह गए जब एक महिला सड़क किनारे अपने बच्चे को फर्राटेदार अंग्रेजी में पढ़ा रही थी। जब उस महिला से उसकी परिस्थिति के बारे में पूछा गया तो उसकी कहानी सुन हर कोई भावुक हो गया। कहते हैं किस्मत का कोई भरोसा नहीं, अल्मोड़ा जिले में भीख मांगने को मजबूर महिला के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ। आपको जानकर हैरानी होगी कि महिला ने अंग्रेजी व राजनीति शास्त्र में एमए की ड्रिग्री हासिल की है, लेकिन आज उसे दूसरों की दया पर जीना पड़ रहा है।
एमए ड्रिग्रीधारी महिला मांग रही भीख
हम बात कर रहे हैं अल्मोड़ा जिले के हवालबाग ब्लॉक स्थित ग्राम रणखिला गांव की रहने वाली हंसी प्रहरी की। बचपन से ही पढ़ने लिखने में काफी तेज-तर्रार हंसी ने अपनी इंटर तक की पढ़ाई गांव से ही पूरी की, इसके बाद उन्होंने कुमाऊं विश्वविद्यालय के अल्मोड़ा परिसर में एडमिशन लिया। मीडिया से बात करते हुए हंसी ने बताया कि उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों में कई शैक्षणिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लिया।
चार साल तक की सेंट्रल लाइब्रेरी में नैकरी
बतौर हंसी साल 2000 में उन्हें छात्र संघ में उपाध्यक्ष चुना गया, उसके बाद वह चार सालों तक विश्वविद्यालय की सेंट्रल लाइब्रेरी में नैकरी की। मीडिया का हंसी पर ध्यान उस समय गया जब रविवार को वह सड़क किनारे अपने बच्चे को पढ़ाती नजर आई। उनकी फर्राटेदार अंग्रेजी सुनकर आस-पास से गुजरने वाला शख्स भी हैरान रह गया। सभी जानना चाहते थे कि आखिर इतनी पढ़ी-लिखी महिला की आखिर क्या मजबूरी है जो उसे इस तरह भीख मांगना पड़ रहा है।
ससुराल वालों से परेशान होकर छोड़ा घर
हंसी बताती हैं कि ससुराल वालों के कलह से परेशान होकर उन्होंने साल 2008 में अपने पति का घर छोड़ दिया था। वह लखनऊ से वापस अपने पैतृक गांव चली आईं थी। वह शारीरिक रूप से काफी कमजोर हो गई थीं, उनके पास इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि वह कहीं नौकरी कर सकें। कमजोरी के कारण वह रेलवे स्टेशन और बस अड्डों पर भीख मांगकर गुजारा करने लगीं। हालांकि इन हालातों में भी हंसी ने हार नहीं मानी और अपनी मुश्किलों से लड़ने का फैसला किया।
बेटी को हाईस्कूल में मिले 97 फीसद अंक
हंसी के दो बच्चे हैं जिनमें से सबसे छोटा बेटा उन्हीं के साथ रहता है और बड़ी बेटी नानी के पास रहकर पढ़ाई कर रही है। उनकी बेटी भी पढ़ने में काफी अच्छी है, पिछले साल ही उसने हाईस्कूल में 97 फीसद अंकों के साथ परीक्षा पास की है। हंसी को सिर्फ यही चिंता है कि उन्हें कहीं सिर छिपाने की जगह मिल जाए, ताकि वह अपने बेटे को पढ़ा सकें। इसके लिए उन्होंने कई बार मुख्यमंत्री समेत तमाम अधिकारियों को पत्र भी लिखे। हंसी अपने बेटे को पढ़ा-लिखाकर प्रशासनिक अधिकारी बनाना चाहती हैं।
2002 में लड़ चुकी हैं विधानसभा चुनाव
हालांकि मीडिया की नजरों में आने के बाद हंसी की मदद के लिए काफी लोगों हाथ बढ़ाया। इस संबंध में एसडीएम गोपाल सिंह चौहान ने भेल स्थित समाज कल्याण आवास में हंसी और उनके बेटे के लिए एक कमरे की व्यवस्था की है। आपको जानकर हैरानी होगी की हंसी प्रहरी साल 2002 में सोमेश्वर सीट से बतौर निर्दलीय प्रत्याशी विधानसभा चुनाव भी लड़ चुकी हैं। उस दौरान कांग्रेस के प्रदीप टम्टा और बीजेसी प्रत्याशी राजेश कुमार समेत 11 उम्मीदवार इस सीट पर अपनी किस्मत आजमा रहे थे। हालांकि चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप टम्टा ने जीत हासिल की थी।
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