पूर्व जज ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र कहा- दूसरी ऐतिहासिक गलती होने से बचा लीजिए
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में कॉलेजियम सिस्टम के तहत दो जजों को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने के खिलाफ कोर्ट के पूर्व जज ने आपत्ति जताई है। दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर इस फैसले को चौंकाने वाला और हास्यास्पद बताया है। जज ने अपने लिखित पत्र में कहा है कि अगर सिफारिशों को मान लिया जाता है कि सुप्रीम कोर्ट में अधिकतम वरिष्ठ जजों की संख्या जोकि 30 है उससे अधिक हो जाएगी। जस्टिस कैलाश गंभीर ने अपने पत्र में कहा है जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी को सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने की सिफारिश की है जोकि नियमों के खिलाफ है।
दूसरी ऐतिहासिक भूल को होने से रोका जाए
जस्टिस गंभीर ने कोर्ट में वरिष्ठता का मुद्दा उठाते हुए कहा है कि इससे न्यायपालिका की विश्वसनीयता को संरक्षित रखने में कठिनाई होगी। जस्टिस गंभीर ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर कहा है कि इस दूसरी ऐतिहासिक भूल को होने से रोका जाए। आपको बता दें कि जस्टिस गंभीर ने यह पत्र 14 जनवरी को भेजा है। गौरतलब है कि 10 जनवरी को कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दिनेश माहेश्वरी और दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश संजीव खन्ना को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाए जाने की सिफारिश की गई है।
कॉलेजियम ने संस्तुति दी
दोनों ही जजों को सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बनाने के लिए कॉलेजियम की बैठक 12 दिसंबर को हुई थी, लेकिन शीतकालीन अवकास के चलते इस बैठक में इस पर चर्चा नहीं हो सकी थी क्योंकि इस मुद्दे पर विचार-विमर्श नहीं हो सका था। इसके बाद पांच और छह जनवरी को एक बार फिर से इस मुद्दे पर बैठक हुई, जिसमे जस्टिस मदन बी लोकूर और जस्टिस अरुण मिश्रा शामिल हुए थे। जिसके बाद दोनों ही जजों को सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बनाए जाने की सिफारिश को भेजा गया।
अन्य जजों की काबिलियत पर सवाल
अपनी संस्तुति में कॉलेजियम की ओर से कहा गया है कि जस्टिस माहेश्वरी और जस्टिस खन्ना को वरिष्ठता के आधार पर उपयुक्त पाया गया है। गौर करने वाली बात यह है कि ऑल इंडिया स्तर पर जस्टिस माहेश्वरी की वरिष्ठता 21वीं है ज बकि जस्टिस खन्ना की 33वीं है। लेकिन कॉलेजियम की इस सिफारिश को पूर्व जज कैलाश गंभीर ने कॉलेजियम परंपरा का उल्लंघन बताया है। उन्होंने कहा कि 32 जजों की वरिष्ठता की अनदेखी की गई है। इससे अन्य वरिष्ठ जजों की काबिलियत पर सवाल खड़ा होता है।
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