चुनावी हलफनामे में झूठ: उद्धव-आदित्य ठाकरे दोषी साबित हुए तो मिल सकती है कितनी सजा ?
नई दिल्ली- सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत के मामले और कोरोना वायरस से राज्य के बेकाबू हुए हालात को लेकर पहले ही सियासी तौर पर बुरी तरह उलझी हुई महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार पर एक नई मुसीबत आ गई है। दरअसल, चुनाव आयोग ने राज्य के मुख्यमंत्री और एक कैबिनेट मंत्री समेत सत्ताधारी गठबंधन के तीन बड़े नेताओं की चुनावी हलफनामे में कथित गड़बड़ी की जांच की सिफारिश सीबीडीटी से कर दी है। जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत झूठा हलफनामा साबित होने पर संबंधित जनप्रतिधि को जेल की सजा और जुर्माना भी हो सकता है। आइए जानते हैं कि इस केस मे ऐसा हुआ तो क्या है सजा का प्रावधान ?
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उद्धव,आदित्य और सुप्रिया सुले पर झूठे हलफनामे का आरोप
चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, उनके बेटे और प्रदेश के मंत्री आदित्य ठाकरे और एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले के खिलाफ झूठे हलफनामा देने के आरोपों में सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज जांच का अनुरोध किया है। सूत्रों के मुताबिक सीबीडीटी से कहा गया है कि वह हलफनामे में बताई गई उनकी संपत्तियों और देनदारियों की छानबीन करे। चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने कहा है कि 'करीब एक महीने पहले शिकायतें भेजी गई थी। एक रिमाइंडर भी भेजा गया है।' चुनाव आयोग की ओर से हलफनामे में गड़बड़ी संबंधी सीबीडीटी को भेजी गई यह शिकायत महाराष्ट्र के तीन बड़े नेताओं के अलावा गुजरात के एक विधायक नाथाभाई हिगोलाभाई पटेल के खिलाफ भी भेजी गई है। जाहिर है कि इस मामले में अगर शिकायतें सही पाई गईं तो जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत महाराष्ट्र के इन बड़े नेताओं के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
जून महीने से बेहद सख्त हो चुका है आयोग का रुख
दरअसल, इस साल जून में ही चुनाव आयोग ने झूठे चुनावी हलफनामो को लेकर अपना रुख बेहद कड़ा किया था। 16 जून को चुनाव आयोग की ओर से ऐलान किया गया था कि वह उम्मीदवारों की ओर से दाखिल किए जाने वाले हलफनामो में आपराधिक पृष्ठभूमि, संपत्ति-देनदारी और शैक्षिक योग्यताओं के बारे में दी गई गलत सूचनाओं को लेकर शिकायतें मिलने पर उनकी संज्ञान लेगा। इससे पहले चुनाव आयोग के पास कोई अगर किसी उम्मीदवार के खिलाफ हलफनामे में गलत जानकारी को लेकर पुख्ता दावों के साथ पहुंचता था तो वह उन्हें जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 125ए के तहत सीधे अदालतों में जाने को कहता था। लेकिन, जून से चुनाव आयोग का इन मामलों में रुख और सख्त हो गया और तय किया गया कि अगर पता चलता है कि उम्मीदवार ने झूठा हलफनामा दिया है तो वह अपने फिल्ड ऑफिसरों को उसके खिलाफ शिकायत करने को कहेगा। यही नहीं वह संबंधित राजनीतिक दलों और संबंधित सदनों से भी शिकायत कर सकता है, जिससे वह उम्मीदवार जुड़ा है।
6 साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान
अभी तो चुनाव आयोग की ओर से भेजी गई शिकायतों के आधार पर उद्धव ठाकरे,आदित्य ठाकरे और सुप्रिया सुले के खिलाफ गलत हलफनामो की शिकायतों पर सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज की जांच होनी है; और अगर इस जांच में इनके खिलाफ आरोप सही पाए जाते हैं तो इनके लिए मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। मसलन, इस समय अगर कोई जनप्रतिनिधि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 125ए के तहत चुनाव हलफनामे में झूठी जानकारी देने का दोषी पाया जाता है तो उसे 6 साल तक की सजा हो सकती है या जुर्माना लगाया जा सकता है या फिर दोनों ही हो सकता है। हालांकि, इतनी सजा जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8ए के लिए बहुत ही छोटी है, जिसके तहत दोषियों की सदस्यता खत्म किए जाने का प्रावधान है। चुनाव आयोग इस बात का जिक्र सुप्रीम कोर्ट के सामने भी कर चुका है।