दिल्ली दंगेः योगेंद्र यादव, अपूर्वानंद और येचुरी के नाम वाले बयान क्या कोर्ट में टिक पाएंगे?
सीएए का विरोध कर रहे प्रमुख सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं के नाम डिस्क्लोज़र स्टेटमेंट में आने का आखिर क्या मतलब है.
दिल्ली दंगों की जांच बीते शनिवार-रविवार को सुर्खियों में छाई रही. इसकी वजह थी डिसक्लोज़र बयान जिनमें दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद, स्वराज इंडिया के प्रमुख योगेंद्र यादव, सीपीआईएम के महासचिव सीताराम येचुरी, अर्थशास्त्री जयति घोष और डॉक्यूमेंट्री फ़िल्ममेकर रॉहुल रॉय का नाम लिया गया है.
दरअसल, यह पूरा मामला इस साल फ़रवरी में दिल्ली में हुए दंगों की एक एफ़आईआर संख्या 50 से जुड़ा है.
इस केस में मुख़्य अभियुक्त 'पिंजरातोड़' नाम के अभियान की सदस्यों और जेएनयू की छात्राओं देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और एमबीए की पढ़ाई कर चुकी सीलमपुर की रहने वाली गुलफ़िशा फ़ातिमा हैं.
इस मामले में सप्लीमेंट्री चार्टशीट दायर की गई है जिसके मुताबिक़ अभियुक्त महिलाओं ने कहा है, "एक बड़ी साज़िश के तहत अपूर्वानंद, जयति घोष, राहुल रॉय हमें बताते रहे कि प्रदर्शन स्थलों पर क्या करना है और बड़े नेता, जाने-माने लोग योगेंद्र यादव, उमर ख़ालिद, चंद्रशेखर रावण, सीताराम येचुरी, भाषण के ज़रिए लोगों को भड़काने और उकसाने आया करते थे."
इन छात्राओं ने यह भी कहा है कि चौधरी मतीन अहमद (सीलमपुर से कांग्रेस के पूर्व विधायक) ने "हमारी मदद की."
क्या अहमियत है डिसक्लोज़र स्टेटमेंट की?
बीबीसी ने दस्तावेज़ों को बारीक़ी से पढ़ा और सबसे पहले यह समझने की कोशिश की कि पुलिस के सामने दिए गए डिस्क्लोज़र बयान का कानून में क्या महत्व है, और क्या ये कोर्ट में स्वीकार्य होंगे.
देश के जाने-माने वकीलों का कहना है कि पुलिस के सामने दिए गए ऐसे क़बूलनामे का कोर्ट में टिकना मुश्किल है.
सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता ऐश्वर्या भाटी ने बताया, "पुलिस के सामने दिए गए ऐसे डिस्क्लोज़र बयान कोर्ट में तभी टिक सकते हैं जब इससे कोई अहम सुराग़ या सबूत पुलिस के हाथ लगे. ऐसे समझिए कि किसी शख़्स ने कोई अपराध किया और अपने डिस्क्लोज़र बयान में उसने ये बताया कि हत्या जिस हथियार से की गई वो इस वक़्त कहां है, और पुलिस अपनी तफ़्तीश में वो हथियार बरामद कर ले तो ऐसी स्थिति में डिस्क्लोज़र बयान का केवल वो हिस्सा कोर्ट में टिक सकता है जिसमें हथियार के पते का ज़िक्र हो. यानी किसी भी सूरत में पूरे डिस्क्लोज़र बयान की वैधता कोर्ट में नहीं होगी."
इसके अलावा दिल्ली दंगे की जांच पर क़रीब से नज़र रखने वाले एक वरिष्ठ वकील ने बीबीसी को बताया, "मैंने तीनों महिलाओं के बयान को पढ़ा है वह कहीं से इस दायरे में नहीं आता. अगर अभियुक्त कह रहा है कि उसे कुछ लोगों ने हिंसा के मकसद से प्रदर्शन करने को कहा था तो इसे साबित करने के लिए किन साक्ष्यों की बात की गई है. अगर ये साक्ष्य की ओर नहीं ले जाते तो ये कहानी मात्र है जो कोर्ट में नहीं टिक पाएगा."
वरिष्ठ अधिवक्ताओं के मुताबिक़ डिस्क्लोज़र बयान का महत्व ग़ैरकानूनी गतिविधि नियंत्रण कानून यानी यूएपीए के मामलों में भी तब तक नहीं होगा जब तक वह किसी नए सबूत या सुराग़ को सामने ना लाता हो.
ज़ाहिर है, इन बयानों की वैधता का फ़ैसला अदालत को करना है लेकिन आम तौर पर इन्हें कानूनी चुनौती दी जा सकती है.
एफ़आईआर 50 है क्या?
फ़रवरी में हुए उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों में 53 लोगों की जान गई और 581 लोग गंभीर रूप से घायल हुए. 23 फरवरी से 26 फ़रवरी के बीच हुए इन दंगों में कुल 751 एफ़आईआर दर्ज की गई हैं.
इनमें से ही एक है एफ़आईआर 50 जो 66 फुटा रोड, जाफ़राबाद में हुई हिंसा के बारे में है.
26 फऱवरी को जाफ़जराबाद पुलिस स्टेशन में दर्ज हुई इस एफ़आईआर के मुताबिक़ "सीएए के लागू होने के खिलाफ़ मुस्लिम समुदाय के लोग जगह-जगह प्रदर्शन कर रहे हैं जिस कारण इलाके में काफ़ी तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है. 24 फरवरी को धारा 144 लगाई गई. 25 फरवरी को पेट्रोलिंग के दौरान पूरे उत्तर-पूर्वी जिले से जगह-जगह हिंसा की सूचना मिली. दोपहर 1 बजे सूचना मिली की क्रीसेंट स्कूल के पास 66 फ़ुटा रोड पर भीड़ हिंसा व पथराव कर रही है. 22 फरवरी से हज़ारों की तादाद में मेट्रो स्टेशन के नीचे 66 फुटा रोड पर बैठे थे. इससे संबंधित दो एफ़आईर 48 और 49 पहले ही दर्ज की जा चुकी हैं."
इस एफ़आईआर में हिंसक और उग्र भीड़ का ज़िक्र तो किया गया है लेकिन किसी का नाम नहीं लिया गया है. हालांकि दिल्ली पुलिस ने इस मामले में देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और गुलफ़िशा फ़ातिमा को अभियुक्त बनाया है. इन पर 307 (हत्या की कोशिश), 302 (हत्या) और आर्म्स एक्ट की 25, 27 धाराएं लगाई गई हैं.
ये तीनों ही दिल्ली दंगे से जुड़े 'साजिश के एक मामले' में यूएपीए कानून के तहत अभी जेल में हैं.
तीनों अभियुक्तों के बयान ज़्यादातर हिस्से हू-ब-हू
दिल्ली पुलिस ने एफ़आईआर 50 के तहत देवांगना कलिता और नताशा नरवाल का डिस्क्लोज़र बयान दो बार दर्ज किया है.
पहला बयान 24 मई, 2020 को दर्ज किया गया है.
24 मई के बयान में देवांगना कहती हैं, "कुछ महीने पहले मेरी दोस्ती डीयू के पिजरातोड़ की सदस्य नताशा नरवाल और परोमा रॉय से हुई थी. इन्हीं के ज़रिए पिंजरातोड़ के अन्य सदस्यों सुवासनी श्रिया, देविका सहरावत से मिली. प्रोटेस्ट स्थलों पर कार्य करने के लिए जैदी घौस और प्रोफ़ेसर अपूर्वानन्द, राहुल राय बोलते रहते थे."
शब्दशः इसी तरह से नताशा नरवाल के भी बयान की शुरुआत होती है. यहां तक कि वर्तनी की गलतियाँ भी हू-ब-हू एक जैसी हैं जैसे पिंजरा तोड़ की एक सदस्य सुभाषिनी को 'सुबासनी' और जयती घोष का नाम 'जैदी घौस' दोनों ही बयानों में एक तरीके से लिखा गया है.
इस डिस्क्लोज़र स्टेटमेंट में देवांगना कहती हैं, "हमें बतलाया गया था कि ऐसा प्रोटेस्ट करो कि सेक्युलर लगे. हमें प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद ने बताया था कि जेसीसी (जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी) दिल्ली में 20-25 जगह आंदोलन शुरू करवा रही है. इन आंदोलनों का मक़सद भारत सरकार की छवि को ऐसे प्रस्तुत करना है कि वह मुसलमानों के ख़िलाफ़ है और प्रोटेस्ट 24 घंटे जारी रखना है और आस-पास को लोगों को मोबलाइज़ करना है."
"भाई उमर ख़ालिद पैसे से और साइट पर आकर हमारी मदद करते थे और भड़काऊ भाषण देते थे. मैं और नताशा बताती थी कि हमें अपूर्वानंद की तरफ़ से जो आदेश मिलते हैं वही हमें आगे इंप्लीमेंट करना है. उमर ख़ालिद हमारे इस प्रोटेस्ट में काफ़ी इंटरेस्ट लेते थे. हमारे साथ ख़ुफ़िया मीटिंग करते थे और प्रोटेस्ट चलाने के लिए डायरेक्शन देते थे. अपूर्वानंद की पूरी सपोर्ट थी. सभी औरतों को अपने साथ सूखी लाल मिर्च पाउडर रखने की हिदायत दी थी. महिलाओं को ये भी बतलाया गया था कि पुलिस के साथ टकराव हो सकता है इसके लिए तैयार रहना. 17 फ़रवरी को हमें मैसेज मिला जब ट्रंप आएगा तो हम चक्का जाम करके दंगों का माहौल बना देंगे और पूरी दिल्ली में दंगा फैला देंगे."
हू-ब-हू यही बात नताशा नरवाल ने भी 24 मई को दिए गए अपने डिस्क्लोज़र बयान में कही है.
दोनों ही बयानों का अंत इन पंक्तियों के साथ होता है, "जो मैं राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल रही हूं. इससे ज़्यादा मैं कुछ नहीं जानती हूं जो मुझसे ग़लती हो गई माफ़ किया जाए."
इंस्पेक्टर कुलदीप सिंह को दिए गए बताए जा रहे इन डिस्क्लोज़र बयानों पर नताशा और देवांगना ने हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है यानी बयान पर अभियुक्त की सहमति नहीं है.
इसी केस में दूसरी बार डिस्क्लोज़र बयान दो दिन बाद यानी 26 मई, 2020 को पुलिस ने दर्ज किया है. इस बार देवांगना कलिता के बयान पर लिखे "I refuse to sign" को स्याही से काट दिया गया है और देवांगना के हस्ताक्षर हैं.
साथ ही नताशा नरवाल के भी डिस्क्लोज़र बयान पर उनके हस्ताक्षर हैं. हालांकि हस्ताक्षर के बावजूद इस बयान की कानून की नज़रों में मान्यता तभी होगी जब इसकी मदद से कोई सबूत हासिल किया जा सके अन्यथा अभियुक्त के हस्ताक्षर का भी कोई मतलब नहीं है.
26 मई को दिए गए बयान में अभियुक्त नताशा नरवाल ने कहा है, "दिसंबर के महीने में सीएए के लागू होने पर जैदी घोष, प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद, राहुल रॉय ने हमें समझया कि सीएए-एनआरसी पर विरोध करना है और किसी भी हद तक जाना है ताकि हम इस बहाने सरकार को उखाड़ फेकें और इसी पर उमर ख़ालिद सरकार के प्रति बग़ावत के कई तरीक़े बताता था. इन लोगों के साथ मिलकर उमर ख़ालिद ने यूनाइटेड अगेंस्ट हेट, जेसीसी और हमारे पिंजरातोड़ के सदस्यों के साथ मिलकर दिल्ली में अलग-अलग जगहों पर प्रोटेस्ट कराए."
इस बार भी हू-ब-हू यही बयान देवांगना ने भी दिया है. दोनों बयानों में इतनी एकरूपता है कि नताशा अपने ही बयान में कह रही हैं कि वो नताशा से मिलीं. 24 मई के बयान को देखें तो वहां देविका सहरावत का नाम लिखा है. दरअसल. ये देविका शेखावत हैं जो पिंजरातोड़ की सदस्य हैं.
लेकिन 26 मई के बयान में नताशा और देवांगना दोनों ही यह कह रही हैं कि वे 'नताशा' से मिलीं.
नताशा और देवांगना दोनों के ही बयान में कहा गया है, "सीलमपुर में 15 जनवरी को धरने प्रदर्शन शुरू किए गए. उमर ख़ालिद पैसों से मदद करते थे और लोगों को अलगाववादी भाषा में संबोधित करके भड़काने का काम करते था. हमें JNU की स्कॉलर बतलाकर भाषण दिलवाते जाते थे ताकि कम पढ़े-लिखे लोगों को बरगलाया जा सके. हमने सीएए को गलत ढंग से समझाया और उन्हें लगने लगा कि ये कानून मुस्लिम विरोधी है."
बयान में कहा गया है कि "दिनांक 24.02.2020 को भीड़ काफ़ी हो गई और भीड़ में हथियारों सहित लोगों ने आना शुरू कर दिया था सारा काम योजना के अमुसार हो रहा था. हम यही चाहते थे दोनों समुदाय आमने-सामने हों. हमने धरने पर बैठे लोगों को उकसाया जिन्होंने उठकर नारेबाज़ी करते हुए पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया. लोगों ने भीड़ से गोलियां चलानी शुरू कर दीं उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों में सुलग चुकी थी, हमारी योजना कामयाब होने लगी थी."
स्पलीमेंट्री चार्टशीट के मुताबिक़ 26 मई को दिए गए अपने डिस्क्लोज़र बयान में देवांगना और नताशा ने जो बाते कही हैं वो भी हू-ब-हू हैं, इस बार भी वर्तनी की ग़लतियां तक एक हैं.
इस केस में तीसरी अभियुक्त गुलफ़िशा ने 27 जुलाई को डिस्क्लोज़र बयान दिया है. ये बयान कहता है, "जेसीसी के नेताओं और पिंजरातोड़ की देवांगना कलिता, नताशा नरवाल ने समझाया कि हमें सीएए-एनआरसी के पुरजोर विरोध करना है और किसी भी हद तक जाना है ताकि हम सरकार को उखाड़ फेंकें और दो समुदाय को आमने-सामने ला सकें. देवांगना और नताशा को जेएनयू स्कॉलर बता कर और मुझे लोकल की पढ़ी-लिखी बतलाकर भाषण दिलवाए जाते थे."
गुलफिशा के बयान में आगे लिखा गया है, "योजना के मुताबिक़ इस भीड़ को भड़काने और उत्तेजित करने के लिए बड़े नेता आने लगे जिनमें उमर ख़ालिद, चंद्रशेखर रावण, योगेंद्र यादव, सीताराम येचुरी व वकील महमूद प्राचा (पराचा) और चौधरी मतीन आदि आते थे."
गुलफ़िशा ने ये भी बयान में कहा है, "दिनांक 24.02.2020 को भीड़ काफ़ी हो गई और भीड़ में हथियारों सहित लोगों ने आना शुरू कर दिया था सारा काम योजना के अमुसार हो रहा था. हम यही चाहते थे दोनों समुदाय आमने-सामने हों. हमने धरने पर बैठे लोगों को उकसाया जिन्होंने उठकर नारेबाज़ी करते हुए पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया. लोगों ने भीड़ से गोलियां चलानी शुरू कर दीं, नॉर्थ ईस्ट दिल्ली दंगों में सुलग चुकी थी, हमारी योजना कामयाब होने लगी थी."
ठीक यही बात दो महीने पहले अपने डिस्क्लोज़र बयान में देवांगना कलिता और नताशा नरवाल ने 26 मई को कहा था. 27 जुलाई यानी दो महीने बाद शब्दशः वही बात गुलफ़िशा ने भी अपने डिस्क्लोज़र बयान में कही है.
हालांकि अपूर्वानंद, योगेंद्र यादव, रॉहुल रॉय जैसे लोगों के किस बयान को भड़काऊ बताया जा रहा है उनका कोई विवरण किसी बयान में नहीं है.
योगेंद्र यादव ने क्या कहा था?
24 फ़रवरी को योगेंद्र यादव ने मंच पर जो भाषण दिया है उसका वीडियो योगेंद्र यादव के फ़ेसबुक पेज पर उपलब्ध है.
इसमें उन्होंने कहा है, "सबको कह दीजिए, इस लड़ाई में दंगल जीतने नहीं आए हैं हम दिल जीतने आए हैं. ऐसी कोई हरक़त ना हो जिससे लोगों के दिल पर लगे और लोग कहें कि उन लोगों ने क्या कर दिया है, मुसीबत कर दी है. हमें ये नहीं करना, हमें तो दिल जीतना है ताकि जो हमारे ख़िलाफ़ हैं वो भी ये सोचे कि अरे ये औरत बैठी है कुछ तो बात होगी. उन सभी बहनों से जो मैट्रो का पास बैठी हैं सड़क को जाम कर रखा है उनसे मेरी दरख्वास्त है कि सड़क को खाली कर दें, मेरी ओर से आप भी कहिए उनसे कि वो सड़क को खाली कर दें. यहां वापस आए और अपने मोर्चे पर हिम्मत से आगे बढ़ें."
योगेंद्र यादव के साथ इस मंच पर प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद भी मौजूद नज़र आ रहे हैं.
दिल्ली दंगे और 'साजिश'
दिल्ली दंगों से जुड़ी कई चार्टशीटों में ये बात दोहराई गई है कि दंगों के पीछे एक गहरी साजिश रची गई और बड़े सुनियोजित तरीक़े से इसे अंजाम दिया गया है.
दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच जून महीने में एक ''क्रोनोल़ॉजी '' पेश कर चुकी है जिसके मुताबिक़ एंटी सीएए प्रदर्शनों के ज़रिए इन दंगों का षड्यंत्र रचा गया था.
एफ़आईआर संख्या 59 इस कथित साजिश को लेकर है. इस मामले में रविवार देर रात उमर ख़ालिद की गिरफ्तारी हुई है. इसके अलावा साजिश के आरोप में अब तक शरजील इमाम, ख़ालिद सैफ़ी, इशरत जहां, गुलफ़िशा, देवांगना कलिता, नताशा नरवाल, सफ़ूरा ज़रगर, मीरान हैदर सहित 16 लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है.
इन पर राजद्रोह के साथ-साथ अनलॉफ़ुल एक्टिविटी प्रिवेंशन एक्ट (यूएपीए) लगाया गया है.
हालांकि सफ़ूर ज़रगर को जून महीने में गर्भवती होने के कारण 'मानवीय आधार'ज़मानत दी गई है और वह जेल से बाहर है.
इस केस की जांच दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल कर रही है, 6 मार्च की इस एफ़आईआर में अब तक कोई चार्जशीट दाख़िल नहीं की गई है. 17 सितंबर को इस केस में पहली चार्टशीट आने वाली है.