'दलित अपनी सुरक्षा को लेकर सड़कों पर उतर रहे हैं'
सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों की नाराज़गी लगातार जारी है.
दरअसल कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी (प्रिवेंशन ऑफ़ एट्रोसिटीज़) ऐक्ट के दुरुपयोग पर चिंता जताई थी और इसके तहत मामलों में तुरंत गिरफ़्तारी की जगह शुरुआती जांच की बात कही थी.
अपने एक आदेश में जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की खंडपीठ ने कहा था
सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों की नाराज़गी लगातार जारी है.
दरअसल कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी (प्रिवेंशन ऑफ़ एट्रोसिटीज़) ऐक्ट के दुरुपयोग पर चिंता जताई थी और इसके तहत मामलों में तुरंत गिरफ़्तारी की जगह शुरुआती जांच की बात कही थी.
अपने एक आदेश में जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की खंडपीठ ने कहा था कि सात दिनों के भीतर शुरुआती जांच ज़रूर पूरी हो जानी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले के विरोध में सोमवार को कई दलित संगठनों ने भारत बंद की अपील की है.
दलितों में ये गुस्सा क्यों
भारत बंद की अपील करने वाले अनुसूचित जाति-जनजाति संगठनों के अखिल भारतीय महासंघ के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव केपी चौधरी ने बीबीसी से कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से दलित संगठन गुस्से में हैं.
उन्होंने कहा, "पिछले दिनों अनुसूचित जाति और जनजाति (प्रिवेंशन ऑफ़ एट्रोसिटीज़) ऐक्ट में त्वरित कार्रवाई के प्रावधान को कमज़ोर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से दलित संगठन गुस्से में है."
"उस क़ानून से इस समाज का जो बचाव होता था. एससी-एसटी ऐक्ट के तहत रुकावट थी कि इस समाज के साथ ज़्यादती करने पर क़ानूनी दिक्कतें आ सकती थीं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से ये रुकावटें पूरी तरह ख़त्म हो गई हैं. इस वर्ग का प्रत्येक व्यक्ति दुखी और आहत है और ख़ुद को पूरी तरह से असुरक्षित महसूस कर रहा है."
संवैधानिक व्यवस्था
केपी चौधरी कहते हैं, "पिछले दिनों ऊना में मारपीट, इलाहाबाद में हत्या, सहारनपुर में घरों को जला देना और भीमा कोरेगांव में दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा जैसी घटनाओं से देश के विकास के लिए समर्पित समाज के इस वर्ग के लोगों में असुरक्षा की भावना पैदा हो गई हैं."
उनका कहना है, "भारत बंद की मांग करने वाले इस समाज के लोग अमन चैन और अपनी और अपने अधिकारों की सुरक्षा चाहते हैं. ये संवैधानिक व्यवस्था को ज़िंदा रखने की मांग करते हैं."
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि पूरे देश के लोगों से अपील की है कि सरकार और देश की किसी भी संपत्ति का नुक़सान न पहुंचाया जाए.
सरकार का नज़रिया
दलित संगठनों का कहना है कि केंद्र सरकार की ये मंशा ही नहीं रही है कि वह समाज के पिछड़े दायरे में खड़े वर्ग को आगे बढ़ने दे. जिस तरह की घटनाएं गुजरात के ऊना में हुईं और उसके बाद उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के अलावा देश के कई हिस्सों में दलितों पर हुए अत्याचारों के बाद सरकार पर सवालिया निशान उठे हैं.
आख़िर सरकार दलितों पर हो रहे अत्याचारों को क्यों नहीं रोक पा रही है और सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले पर उसका क्या रुख़ है?
बीबीसी ने यही सवाल केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी से पूछा तो उन्होंने कहा कि सरकार की मंशा और मकसद साफ़ है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों की सुरक्षा और सम्मान होना चाहिए.
उन्होंने कहा, "हालांकि कुछ संगठनों को लगता है कि इस पर भी राजनीति की जा सकती है."
केंद्र सरकार का पक्ष
जब बीबीसी ने उनसे पिछले कुछ दिनों में दलितों के साथ हो रही अप्रिय घटनाओं के संबंध में पूछा तो मुख़्तार अब्बास नक़वी ने कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन में इस तरह की घटनाएं कम हुई हैं, लेकिन जो भी हुई हैं उन्हें भी नहीं होना चाहिए था. केंद्र सरकार, राज्य सरकार के साथ इस संबंध में बात करतॉी है और समाधान के लिए कार्य करती है."
दलित नेताओं में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को लेकर गुस्से के विषय में जब मुख़्तार अब्बास नक़वी से पूछा गया तो उन्होंने कहा, "भारत खुला लोकतंत्र है जिसमें अपनी बात रखने की पूरी आज़ादी है, लोगों को अपनी बात को लेकर सड़कों पर उतरने को हम ग़लत नहीं मानते. हां, सरकार का मानना है कि दलितों के सम्मान उनके आरक्षण को लेकर कोई समझौता नहीं किया जा सकता."
सोमवार को प्रस्तावित भारत बंद के चलते पंजाब में सार्वजनिक यातायात के साधनों पर असर पड़ने के आसार हैं. इसके साथ ही शिक्षण संस्थान और मोबाइल इंटरनेट सेवाएं भी बंद रहेंगी. बंद को तमाम राजनीतिक दलों ने भी अपना-अपना समर्थन दिया है.
उधर, मोदी सरकार की तरफ़ से केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी कहा है कि एससी/एसटी (प्रिवेंशन ऑफ़ एट्रोसिटीज़) ऐक्ट पर केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में दो अप्रैल को पुनर्विचार याचिका दायर करेगी.
क्या कहती है कांग्रेस
कांग्रेस ने बीजेपी पर दलितों और पिछड़े वर्ग की अनदेखी करने का आरोप लगाया है.
कांग्रेस प्रवक्ता शकील अहमद कहते हैं, "कांग्रेस की हमदर्दी उनके साथ है. यह ठीक है कि कोर्ट ने एक बात कही है, लेकिन उसका फ़ैसला तब आया जब मोदी सरकार ने आधे अधूरे मन से बात रखी."
"कांग्रेस अध्यक्ष का इसको लेकर स्पष्ट मानना है कि दलितों के ख़िलाफ़ अत्याचार के मामलों को कमज़ोर करेंगे तो लोग दलितों पर और अत्याचार करेंगे. जब क़ानून बना हुआ था तब तो उनपर होने वाले अत्याचारों में कमी नहीं आई तो इसे हटा कर उनसे होने वाली ज़्यादतियों में वृद्धि ही होगी, और हाल के दिनों में इसका असर भी दिखा है."
समाज में उठते सवाल
कुछ दिन पहले ही गुजरात के भावनगर ज़िले में एक दलित युवक की हत्या महज़ इसलिए कर दी गई क्योंकि वह घोड़ी पर चढ़ता था.
वहीं उत्तर प्रदेश के हाथरस में तथाकथित ऊंची जाति के लोगों से परेशान एक दलित युवक ने सवाल उठाया है कि क्या वो हिंदू नहीं है और क्या उनके लिए संविधान अलग है.
संजय कुमार नाम के इस शख़्स ने मदद मांगी है ताकि वह अपनी होने वाली पत्नी के गांव निज़ामाबाद में बारात लेकर जा सके जो कि एक ठाकुर बहुल गांव है.
गांव के ठाकुरों का कहना है कि जब उनके इलाके वाले रास्ते पर पहले कभी बारात आई ही नहीं तो ये नई मांग क्यों की जा रही है. जो रास्ता दलितों की बारात के लिए इस्तेमाल होता है, वहीं से बारात ले जानी चाहिए.
संजय कुमार ने 15 मार्च को इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है.
इस तरह के सवाल समाज में लगातार उठ रहे हैं. दलित संगठनों की तरफ़ से बुलाए गए सोमवार के भारत बंद को लेकर सरकारें सजग हैं और क़ानून व्यवस्था संबंधी कोई समस्या न पैदा हो, इसके इंतज़ाम किए गए हैं.