कोरोना: यूपी में टेस्ट कम हो गए हैं या मौत और संक्रमण?
यूपी सरकार का कहना है कि संक्रमण के मामलों में कमी आई है लेकिन मरने वालों की संख्या में कहीं कोई कमी नहीं दिख रही है. क्या है असल तस्वीर?
आगरा ज़िले के तीन गांवों में पिछले 15 दिनों में 38 से ज़्यादा ग्रामीणों की मौत हो चुकी है. बरौली-अहीर विकास खंड के गांव कुंडौल और बमरौली कटारा में 25 मरीजों की मौत हुई है जबकि एत्मादपुर विकास खंड के गांव कुरगवां में बीते 15 दिनों में 13 लोगों की जान चली गई.
इनमें से सभी को पहले बुखार हुआ और फिर सांस लेने में दिक्कत हुई. समय से इलाज नहीं मिला तो मौत हो गई. तीनों गांवों में स्वास्थ्य विभाग की टीमों ने ग्रामीणों की जांच की तो कई लोग कोरोना से संक्रमित भी मिले.
अब गांव में सैनिटाइजेशन कराया जा रहा है और दवाइयां बांटी जा रही हैं. स्वास्थ्य विभाग की टीमें यहां कैंप भी कर रही हैं. ग्रामीणों की मानें तो मृतकों की संख्या इससे कहीं ज़्यादा है.
यह एक बानगी भर है. यूपी के जिस ज़िले में भी चले जाइए, ऐसे कई गांवों की सूचना मिलेगी जहां पिछले कुछ दिनों में ठीक इसी तरह की बीमारी से लोगों की मौत हुई है और कई लोग अभी भी बीमार होकर घर पर ही या फिर आसपास के अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं.
बुलंदशहर के परवाना गांव में भी पिछले कुछ हफ़्तों में कई लोगों की जान इसी तरह की बीमारी के चलते चली गई. कानपुर के पास यमुना के किनारे बसी घाटमपुर तहसील में परास गांव में बुखार आने के बाद 15 दिनों में 30 लोगों की मौत हो चुकी है. भीतरगांव, अकबरपुर, दौलतपुर, देवसढ़ जैसे कई ऐसे गांव हैं जहां बड़े पैमाने पर बुखार के मरीज हैं. कानपुर नगर के ही चौबेपुर, बिठूर और बिल्हौर क्षेत्र में भी बड़े पैमाने पर फ़्लू के मरीज घरों में रहकर इलाज कर रहे हैं.
परास गांव के निवासी रामेंद्र तिवारी कहते हैं, "पंचायत चुनाव के बाद से ही यहां कोरोना का प्रकोप तेज़ी से बढ़ा है. लोग एक-दूसरे के संपर्क में आए और संक्रमित होते गए. लोगों को बुख़ार हो रहा है, दवा ले रहे हैं लेकिन बुख़ार नहीं उतर रहा है. उसके बाद गले में सूजन और फिर सांस लेने में दिक़्क़त हो रही है. इसी कारण लोग मर रहे हैं."
संक्रमण में कमी का दावा
ये स्थितियां तब हैं जब राज्य सरकार कोरोना संक्रमण दर घटने का दावा कर रही है और ग्रामीण क्षेत्रों में पिछले क़रीब एक हफ़्ते से कोविड जांच का विशेष मेगा अभियान चलाया गया है.
इसके तहत दस लाख एंटीजन किट के साथ स्वास्थ्य विभाग की टीमें गांव-गांव जाकर लोगों की जांच कर रही हैं और ज़रूरी होने पर उन्हें दवाइयां और अन्य चीज़ें वितरित कर रही है. अभियान को पांच दिनों के लिए और आगे बढ़ा दिया गया है.
राज्य के अपर मुख्य सचिव नवनीत सहगल ने बीबीसी को बताया कि इस दौरान चार लाख से ज़्यादा लोगों की पहचान की गई है जिनमें कोरोना संक्रमण जैसे लक्षण पाए गए हैं जिनमें तीन लाख से ज़्यादा लोगों को मेडिकल किट बांटे गए हैं.
नवनीत सहगल बताते हैं, "अभियान को पांच दिन के लिए और बढ़ा दिया गया है क्योंकि अभी कई गांवों में टीम नहीं पहुंच सकी है. फ़िलहाल जांच के बाद 5262 लोग कोविड पॉज़िटिव पाए गए हैं जिन्हें या तो गांव में क्वारंटीन किया गया है या फिर जिनका हाल ठीक नहीं था, उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है."
दावा और विरोधाभास
राज्य सरकार के आंकड़ों की मानें तो पिछले कुछ दिनों से संक्रमण की रफ़्तार लगातार कम हो रही है. हालांकि उस अनुपात में संक्रमित लोगों के मरने की संख्या में कमी नहीं आ रही है.
11 मई को पिछले 24 घंटे के दौरान कुल संक्रमित लोगों की संख्या 20,463 थी जबकि इसी दौरान मरने वालों की संख्या 306 थी. इस महीने की शुरुआत से लेकर कुछ दिन पहले तक संक्रमित लोगों की संख्या हर दिन तीस हज़ार के आस-पास थी और मृतकों की संख्या भी तीन सौ के आस-पास रही.
वहीं 25 अप्रैल को संक्रमित लोगों की संख्या 35 हज़ार से ज़्यादा थी और दस दिन पहले यानी 15 अप्रैल को यह संख्या 22,439 थी और इस दिन मृतकों की संख्या 104 थी.
इन आंकड़ों के ज़रिए सरकार दावा कर रही है कि संक्रमण की रफ़्तार में तेज़ी से कमी आई है और यह कोरोना नियंत्रण की कोशिशों के लिहाज़ से काफ़ी सकारात्मक संकेत है.
कम जाँच का मतलब कम संक्रमण?
इस सिलसिले में यह बात भी सामने आई है कि सरकार ने जांच की संख्या कम कर दी है, इसलिए संक्रमण दर में कमी दिख रही है. हालांकि पिछले कई दिनों से जांच की संख्या हर दिन दो लाख से ऊपर ही है. एक मई को यह संख्या 2 लाख 66 हज़ार थी.
लखनऊ में स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, "जांच की संख्या में भी कमी की गई है. आरटीपीसीआर जांच को ख़ास तौर पर कम किया गया है जबकि एंटीजन टेस्ट की संख्या ज़्यादा की गई है. जब आंकड़े आते हैं तो वो सब मिलाकर दिए जाते हैं. आरटीपीसीआर की जांच में पॉज़िटिव ज़्यादा आते हैं जबकि एंटीजेन की जांच में पॉज़िटिव कम ही आते हैं."
वे इस ओर भी ध्यान दिलाते हैं कि भीड़ ज़्यादा होने के कारण सेंटर पर आकर जांच कराने वालों की संख्या भी कम हुई है. घर पर टेस्टिंग की व्यवस्था नहीं है, और सीएमओ के यहां नोट कराने पर तीन-चार दिन तक जांच ही नहीं हो रही है. तो लोग ख़ुद भी जांच कम करावा रहे हैं."
कुछ अस्पताल और लैब वाले भी जांच में कमी की बात स्वीकार करते हैं और ऑफ़ द रिकॉर्ड बातचीत में कुछ लैब वालों ने यह बात भी कही है कि उन्हें रिपोर्ट देर से देने और ज़्यादा पॉज़िटिव मामले आएं तो उन्हें कम दिखाने की हिदायत दी गई है.
हालांकि लखनऊ में चरक लैब और हॉस्पिटल के संचालक प्रदीप कुमार इसकी वजह कुछ और बताते हैं.
बीबीसी से बातचीत में प्रदीप कुमार कहते हैं, "जांच तो कम हो ही गई है. घर जाकर सैंपल कलेक्शन हो नहीं रहा है क्योंकि हमारे कई कर्मचारी भी पॉज़िटिव हो गए तो हम लोगों ने जांच बंद कर दी है. सेंटर पर या फिर अस्पताल में लोग संक्रमण के डर के मारे नहीं आ रहे हैं. लखनऊ के बाहर से भी पहले हमारे यहां सौ से ज़्यादा लोग फ़ोन करते थे लेकिन अब तो मुश्किल से 5 या 6 लोग फ़ोन करते हैं."
वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं कि ऐसी स्थिति में जब कोविड संक्रमण शहरों के अलावा गांवों में भी हाहाकार मचा रहा है, तो संक्रमण दर में कमी की बात करना अविश्वसनीय-सी लग रही है.
वो कहते हैं, "जब केवल शहर में ही था तो इतने संक्रमित आ रहे थे और अब तो गांव में भी फैल गया तो कैसे माना जाए कि कम हो गए. यह तो किसी के गले उतरने वाली बात नहीं है."
ग्रामीण इलाक़ों में बढ़ता संक्रमण
कोरोना वायरस का संक्रमण अब उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाक़ों में भी पहुंच गया है और वहां कहर ढा रहा है. अब तक संक्रमण से मौत के ज़्यादातर मामले शहरों से आ रहे थे, लेकिन अब ग्रामीण इलाक़ों में भी मौत का ग्राफ़ बढ़ने लगा है.
ग़ाज़ीपुर और हमीरपुर में गंगा और यमुना नदियों में मिले दर्जनों शवों ने ऐसी आशंकाओं को और मज़बूत कर दिया गया है कि मृतकों की संख्या छिपाई जा रही है.
हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गांवों में विशेष स्क्रीनिंग और टेस्टिंग अभियान को और तेज़ी से चलाने का निर्देश दिया है और ख़ुद भी कई गांवों में जाकर इसकी निगरानी कर रहे हैं. इसके लिए हर ज़िले में पर्याप्त संख्या में जांचकर्मियों को तैनात करने और ग्रामीण इलाकों में निगरानी समितियों को सक्रिय करने के आदेश दिए गए हैं ताकि लक्षण वाले लोगों की पहचान की जा सके.
निगरानी समितियां
ग़ाज़ीपुर, प्रयागराज, रामपुर, प्रतापगढ़ जैसे कई ज़िलों के कई गांवों में लोगों ने अब तक निगरानी समिति के लोगों की न तो कोई सक्रियता देखी और न ही जांच करने वाली टीम.
प्रतापगढ़ में स्थानीय पत्रकार मनोज त्रिपाठी बताते हैं, "अभियान चलते हुए पांच दिन हो गए लेकिन हमने अब तक अपने ज़िले में कोई टीम नहीं देखी है. निगरानी समिति सिर्फ़ कागज़ों पर बनी है, बाक़ी कहीं दिखती नहीं है. गांवों में कहीं क्वारंटीन सेंटर नहीं बने हैं. जो बीमार हो रहे हैं, या तो ख़ुद अस्पताल जा रहे हैं या फिर घर पर ही गांव के डॉक्टरों से पूछकर दवा खा ले रहे हैं."
ग़ाज़ीपुर में समाजसेवी उमेश श्रीवास्तव भी कुछ ऐसा ही बताते हैं. वो कहते हैं, "कुछ गांवों में टीमें आई थीं लेकिन लक्षण वाले लोगों की भीड़ ही काफ़ी ज़्यादा थी, इसलिए बहुत से लोग जांच कराने से ही चूक गए. पहले गांव के लोग जांच कराने से भाग रहे थे लेकिन अब जबकि इतनी ज़्यादा संख्या में मौतें हो रही हैं, तो लोग बहुत डरे हुए हैं और ख़ुद ही जांच कराने के लिए आगे आ रहे हैं. निगरानी समिति तो कहीं नहीं दिख रही है."
कोरोना संक्रमण में कमी के दावों पर वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि शहरों में तो ज़्यादातर लोग संक्रमित हो ही चुके हैं लेकिन गांवों में क्या हो रहा है, ये किसी को पता नहीं है.
उनके मुताबिक, गांवों में जब जांच और उसकी रिपोर्ट सही तरीक़े से आएगी तो संक्रमण की संख्या कहीं ज़्यादा होगी. सिद्धार्थ कलहंस एक बात और कहते हैं, "एक बड़ी तादाद उनकी भी है जो एक बार पॉज़िटिव हो चुके हैं और रीकवर करने के बाद दोबारा जांच में अब निगेटिव आ रहे हैं. ऐसे लोग जांच की संख्या में तो गिने जाएंगे लेकिन संक्रमितों की संख्या में नहीं."
सिद्धार्थ कलहंस के मुताबिक, कोरोना संक्रमण के दर्ज आंकड़े भले ही कम हैं लेकिन लाशों का आंकड़ा देख कर पता चल रहा है कि स्थिति क्या है, श्मशान और कब्रिस्तान बता रहे हैं कि कोरोना संक्रमण कितना नियंत्रित हुआ है.
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