कोरोना वायरस: क्या 'वैक्सीन' के मुक़ाबले 'हर्ड इम्यूनिटी' का इंतज़ार सही है?
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन के मुताबिक़ भारत हर्ड इम्यूनिटी की स्थिति से काफ़ी दूर है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि वैक्सीन के बदले जनता हर्ड इम्यूनिटी का इंतज़ार क्यों कर रही है.
भारत में कोरोना के अब तक 60 लाख से ज़्यादा पॉज़िटिव मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें से 50 लाख ठीक हो चुके हैं और तक़रीबन 10 लाख के आसपास अब भी एक्टिव मामले हैं.
इस बीच देश में दूसरा सीरो सर्वे हुआ है, जिसके नतीजों का बेसब्री से सबको इंतज़ार है, ताकि पता चल सके कि असल में कोरोना से संक्रमित मामले इतने ही हैं या इससे कहीं ज़्यादा.
इसी क्रम में देश के स्वास्थ्य मंत्री का एक बयान सोशल मीडिया पर ख़ूब वायरल हो रहा है. इसमें स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ये कहते सुने जा सकते हैं कि भारत अभी हर्ड इम्यूनिटी से काफ़ी दूर है.
पिछले तीन रविवार से देश के स्वास्थ्य मंत्री जनता से 'संडे संवाद' कर रहे हैं. इस दौरान लोग उनसे सवाल पूछते हैं और वो चुनिंदा सवालों के जवाब देते हैं.
इसी क्रम में 27 सितंबर को बेंगलुरु के रहने वाले सोमनाथ ने स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन से सवाल पूछा था, "आईसीएमआर के सीरो सर्वे की रिपोर्ट ने लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है. लोग ये सोच कर बेपरवाह हो गए हैं कि ज़्यादातर लोगों को कोरोना संक्रमण हो चुका है या फिर आने वाले दिनों में हो ही जाएगा. जनता की इस तरह की मानसिकता के साथ सरकार कोविड-19 बीमारी से कैसे निपट सकती है?"
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इस सवाल के जवाब में स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने कहा, "आईसीएमआर ने देश में अब तक दो सीरो सर्वे किए हैं. पहला मई के महीने में किया था. उस वक़्त पता चला था कि देश में 0.73 फ़ीसद लोग कोरोना संक्रमण की चपेट में हैं. दूसरा सीरो सर्वे हाल ही में आईसीएमआर ने किया है. इसमें देश के 21 राज्यों के 70 ज़िलों से सैम्पल लिए गए. इस सीरो सर्वे के नतीजों से ये पता चलता है कि भारत अभी भी हर्ड इम्यूनिटी की स्थिति से काफ़ी दूर है. दूसरे सीरो सर्वे के नतीजे जल्द ही जनता के सामने पेश किए जाएँगे.
A second serosurvey was conducted recently by @ICMRDELHI, findings of which shall be in public domain shortly
— Dr Harsh Vardhan (@drharshvardhan) September 27, 2020
Indications are that we're still very far from having achieved any kind of herd immunity. Therefore, we can't afford to be complacent & negligent. pic.twitter.com/yr3osFkpf2
स्वास्थ्य मंत्री के जवाब के बाद से ही जनता सोशल मीडिया पर हर्ड इम्यूनिटी के बारे में कई तरह के सवाल पूछ रही है जैसे हर्ड इम्यूनिटी क्या है, कब तक आएगी और इसका इंतज़ार क्यों करना चाहिए?
ये कहानी एक कोशिश है कि हर्ड इम्यूनिटी से जुड़े आपके तमाम सवालों का जवाब एक जगह ही दिया जा सके.
स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन के मुताबिक़, "किसी भी जनसंख्या में हर्ड इम्यूनिटी की स्थिति तब हासिल की जाती है जब जनसंख्या के 60 से 70 फ़ीसद लोगों में बीमारी फैल जाती है. अगर सीरो सर्वे के नतीजे ये बता रहे हैं कि भारत में हर्ड इम्यूनिटी वाली स्थिति नहीं आई है, तो इससे ये निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भारत में अब भी ऐसी बहुत बड़ी जनसंख्या है जो कोविड-19 की बीमारी से अब तक बची हुई है. जनता पूरी तरह सीरो सर्वे के नतीजों के बारे में ठीक से समझ नहीं पाई है. इसलिए लोगों को सावधानी बरतना नहीं छोड़ना चाहिए."
हर्ड इम्यूनिटी क्या है?
अगर कोई बीमारी आबादी के बड़े हिस्से में फैल जाती है और इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता उस बीमारी के संक्रमण को बढ़ने से रोकने में मदद करती है तो जो लोग बीमारी से लड़कर पूरी तरह ठीक हो जाते हैं, वो उस बीमारी से 'इम्यून' हो जाते हैं, यानी उनमें प्रतिरक्षात्मक गुण विकसित हो जाते हैं. उनमें वायरस का मुक़ाबला करने को लेकर सक्षम एंटी-बॉडीज़ तैयार हो जाती हैं. जब कुल आबादी के 60 से 70 फ़ीसद लोग, किसी बीमारी से प्रभावित हो जाते हैं तो माना जाता है कि उस आबादी में 'हर्ड इम्यूनिटी' की स्थिति पहुँच गई है. इससे उन 30-40 फ़ीसद लोगों को भी परोक्ष रूप से सुरक्षा मिल जाती है जो ना तो संक्रमित हुए और ना ही उस बीमारी के लिए 'इम्यून' हैं.
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ऐसा इसलिए भी मुमकिन हो पाता है क्योंकि वायरस जब भी दूसरे के शरीर में इंफ़ेक्शन पैदा करने के लिए तैयार होता है, तो वो पहले से ही संक्रमित होता है, उनके पास पहले से ही इम्यूनिटी होती है. ऐसे में 'चेन ऑफ़ ट्रांसमिशन' टूट जाती है.
पब्लिक हेल्थ केयर फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर डॉ. श्रीनाथ रेड्डी इसको एक उदाहरण के साथ समझाते हैं. हर्ड इम्यूनिटी बिना संक्रमण वालों को वैसे ही सुरक्षा देती है जैसे कि एक वीआईपी चल रहा है और उसके आस पास कई गार्ड हैं, जो उन्हें सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं.
सीरो सर्वे और हर्ड इम्यूनिटी का संबंध
सीरो सर्वे ये पता लगाने के लिए कराया जाता है कि आख़िर कितनी आबादी बीमारी से संक्रमित हो चुकी है. मसलन दिल्ली के पहले सीरो सर्वे में पता चला था कि दिल्ली की एक चौथाई जनता कोविड-19 बीमारी से संक्रमित हो चुकी है. दिल्ली के दूसरे सीरो सर्वे में पता चला कि 29 फ़ीसद जनता संक्रमित हो चुकी है.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सीरो सर्वे के नतीजों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि हर्ड इम्यूनिटी की स्थिति आई है या नहीं.
डॉ. रेड्डी कहते हैं कि सीरो सर्वे में भी कई बार ग़लत नतीजे निकलते हैं जिसे 'फ़ॉल्स पॉज़िटिव' कहा जाता है. जब बड़े पैमाने पर इस तरह के सर्वे होते हैं तो ऐसे 'फ़ॉल्स पॉज़िटिव' मामलों की संख्या बढ़ जाती है.
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इसलिए सीरो सर्वे के आधार पर हर्ड इम्यूनिटी के बारे में आकलन करना पूरी तरह सही नहीं होता.
सीरो सर्वे में जो दूसरी बात ग़ौर करने वाली होती है वो ये कि कई बार जो एंटी बॉडी सीरो सर्वे में मिलती हैं, वो कोविड-19 बीमारी से जुड़ी हैं या नहीं इसका पता लगाना मुश्किल होता है. डॉक्टर रेड्डी इस बात को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं.
सीरो सर्वे में हमारे शरीर के अंदर एंटी-बॉडी पैदा हुई हैं या नहीं इस बारे में पता चलता है. उसी आधार पर हम ये बताते हैं कि कितनी जनता अब कोविड-19 की चपेट में आ चुकी है. कोविड-19 बीमारी से शरीर में जिस तरह की एंटी बॉडी पैदा होती हैं, उसी से मिलती जुलती एंटी बॉडी छह दूसरी बीमारियों में भी पैदा होती हैं, जैसे सार्स, मर्स और चार तरह के कॉमन कोल्ड वाली बीमारियों में. इस तरह की इम्यूनिटी को 'क्रॉस इम्यूनिटी' कहते हैं. ऐसे में सीरो सर्वे के नतीजों में पायी गई एंटी बॉडी के आधार पर ये पता लगाना कि एंटी बॉडी वाले हर इंसान को कोविड-19 बीमारी ही है, ये थोड़ा मुश्किल है. कई बार लोगों के शरीर में कॉमन कोल्ड होने की वजह से एंटी -बॉडी पैदा हो सकती है. डॉ. रेड्डी इस बात से भी आगाह करते हैं.
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हर्ड इम्यूनिटी या वैक्सीन - किसका करें इंतज़ार
डॉ. रेड्डी के मुताबिक़ मान लीजिए हर्ड इम्यूनिटी की स्थिति भी किसी-किसी राज्य में आ जाए तो भी वैक्सीन का इंतज़ार करना पड़ेगा. वो इसके पीछे कारण भी गिनाते हैं - मान लीजिए अगर दिल्ली में 60-70 फीसद जनता को संक्रमण हो गया है और रायपुर में केवल 10 फ़ीसद ही संक्रमित हैं, तो दिल्ली के वो लोग जो संक्रमित नहीं हैं, वो दिल्ली में हर्ड इम्यूनिटी की वजह से कोरोना संक्रमण से बच सकते हैं. लेकिन किसी वजह से अगर वो रायपुर गए, तो वो भी संक्रमित हो सकते हैं.
यही वजह है कि हर्ड इम्यूनिटी के इंतज़ार के बजाए हमें कोरोना वायरस से सुरक्षा के इंतज़ाम हर समय करने की ज़रूरत है.
एक तो भारत अभी हर्ड इम्यूनिटी की स्टेज पर पहुँचा नहीं है. दूसरा कुछ राज्यों में हर्ड इम्यूनिटी की स्थिति आ भी जाए तो भी कोरोना संक्रमण से बचने का वो कारगर उपाय नहीं है, क्योंकि लोगों की एक जगह से दूसरे जगह की आवाजाही शुरू हो चुकी है. तीसरी समस्या ये है कि सीरो सर्वे में जो एंटी बॉडी बनने की बात सामने आ रही है वो सौ फ़ीसद विश्वसनीय नहीं हैं क्योंकि वो एंटीजन टेस्ट होते हैं और सबसे अहम बात ये कि शरीर में पायी जाने वाली एंटी बॉडी कोरोना संक्रमण से लड़ने के लिए कारगर हैं, ये सुनिश्चित नहीं किया जा सकता. कई बार दूसरे कोरोना वायरस से लड़ने के लिए बनी एंटीबॉडी भी शरीर में पायी जाती हैं.
डॉ. रेड्डी इसीलिए हर्ड इम्यूनिटी के बजाए 'हर्ड प्रोटेक्शन' शब्द को ज़्यादा मुफ़ीद मानते हैं.
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वैक्सीन और हर्ड इम्यूनिटी में अंतर क्या है?
हर्ड इम्यूनिटी की वजह से उन लोगों में इम्यूनिटी पैदा होती हैं, जिनको संक्रमण नहीं हुआ है और वो दूसरे लोगों की वजह से छुप जाते हैं और बच जाते हैं. यानी वो क़ुदरती रूप से आपको बीमारी से नहीं बचाता, आप किसी दूसरे के ऊपर बीमारी से बचने के लिए निर्भर होते हैं.
मगर वैक्सीन हर किसी को दी जा सकती है. एक बार प्रभावशाली वैक्सीन लगने पर आपकी सुरक्षा क़ुदरती रूप से होती है और आप दूसरों पर निर्भर नहीं करते.
इसलिए डॉक्टरों और जानकारों की सलाह है कि जब तक वैक्सीन ना आ जाए आप हर्ड इम्यूनिटी का इंतज़ार ना करें. सोशल वैक्सीन का इस्तेमाल करें. मास्क लगाएँ, हाथ धोएँ और दूसरों के साथ दो गज़ की दूरी बनाएँ रखें.