कासगंज हिंसा: 'गर्भवती पत्नी देखकर उन्हें मुझ पर तरस आ गया इसलिए जिंदा छोड़ दिया'
नई दिल्ली। कासगंज दंगे की आग रह-रह कर सुलग रही है। राजनीतिक पार्टियां इस पर जमकर राजनीति कर रही है। नेता एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं। लेकिन हिंसा से प्रभावित हुए लोगों की कोई सुध नहीं ले रहा है। इस आग में झुलसने वे वाले लोग हैं जिनका इन दंगे से कोई लेना-देना नहीं था। इस हादसे की सबसे गहरी चोट उन दो पिताओं पर लगी है जो अपनी संतानों के लिए सपने बुन रहे थे। इनमें पहले हैं हिंसा में मारे गए अभिषेक गुप्ता के पिता सुशील गुप्ता और दूसरे हैं दंगों में अपनी एक आंख खो देने वाले अकरम हबीब। अकरम कासगंज में अपनी पत्नी की डिलीवरी के लिए आए थे। पत्नी को अस्पताल ले जाते समय लोगों की गुस्सा के शिकार हो गए।
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दाढ़ी देख लोग अकरम पर टूट पड़े
अकरम हबीब लखीमपुर-खीरी में हार्डवेयर स्टोर चलाते है। वह 26 जनवरी को कासगंज अपनी ससुराल आए थे। अकरम की पत्नी अनम (27) की को बच्चा होना था। इसलिए वे उसे अस्पताल में भरती करवाने के लिए ले जा रहे थे। लेकिन उन्हें क्या पता था कि वह अपनी दोनों आंखों से होने वाली संतान को देख पाएंगे। जब अकरम घर से निकले तब तक कासगंज हिंसा की चपेट में आ चुका था। इसलिए अकरम ने सोचा कि वह गांव के रास्ते से निकलेंगे। जिससे उन्हें भीड़ का सामना न करना पड़े। लेकिन अंजाने रास्ते के चलते अकरम भटक गए। रास्ता पूछने के लिए अकरम ने गाड़ी रोक लोगों से रास्ता पूछा तो, उनकी दाढ़ी देख उन लोगों ने समझ लिया कि पूछने वाला आदमी मुस्लिम है। इसके बाद वे लोग अकरम पर टूट पड़े। इस दौरान अकरम की पत्नी अनम भी उनके साथ थी। वह चीखते-चिल्लाते रहम की भीख मांगती रही।
क्योंकि उन्हें मेरी गर्भवती बीवी और मुझ पर तरस आ गया
अकरम ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि, उन लोगों ने मेरे सिर पर बंदूक रख दी। लेकिन उहोंने मेरी जान केवल इसलिए बख्श दी क्योंकि उन्हें मेरी गर्भवती बीवी और मुझ पर तरस आ गया। हबीब ने दावा किया कि पुलिस ने मदद नहीं की और उसे घायल होने के बावजूद अपनी पत्नी को खुद कार चलाकर अस्पताल पहुंचाना पड़ा। अकरम बताते हैं कि उनकी आंख से खून बह रहा था मुझे कुछ भी नहीं दिख रहा था। जैसे तैसे वह गाड़ी चलाकर पत्नी को अस्पताल पहुंचाया। अकरम की पत्नी ने एक बेटी को जन्म दिया है। अकरम खुश है कि वह अपनी आने वाली संतान को देख सके। अकरम बताते हैं कि, शायद ही वह उस दिल दहला देने वाले दिन को जीवन में कभी भूल पाएंगे।
वह किसी भी हिंदू संगठन से नहीं जुड़ा था
वहीं दूसरे पिता सुशील गुप्ता अपने बेटे अपने बेटे की बेहतर भविष्य के सपने बुन रहे थे। तीन बेटों से सबसे छोटे बेटे अभिषेक उर्फ चंदन को अच्छी शिक्षा के लिए बहार भेजने के लिए पैसों का इंतजाम कर रहे थे। पेशा से प्राइवेट अस्पताल में कंपाउडर सुशील गुप्ता कहते हैं कि, 'तीन बच्चों में सबसे छोटा था, मगर बिगड़ैल नहीं था। वह सोशल वर्क में एक्टिव था और अभी इधर एक एनजीओ शुरू कर लोगों की मदद कर रहा था। वह किसी भी हिंदू संगठन से नहीं जुड़ा था। उसकी संस्था सर्दियों में कंबल बांटती और रक्तदान शिविर भी लगाती।' बेटे के जाने के बाद उनकी जिंदगी के बहुत कम मकसद बचे हैं।