पंजाब के इस कानून को बदलकर कम किया जा सकता है दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण
नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में सोमवार के बाद से लोगों को धुंध से थोड़ी राहत मिली है लेकिन बुधवार को एनसीआर में एक बार फिर काला धुआ दिखाई दिया। सभी राज्य की सरकारें अपने स्तर पर प्रदूषण कम करने का काम कर रही हैं। अगर कुछ बातों पर ध्यान दिया जाए तो वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है। किसानों के पराली कि वजह से दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण बढ़ा है, लेकिन किसान चाहें तो इस पर कंट्रोल किया जा सकता है।
बता दें, दिल्ली के प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि, वर्तमान का पर्यावरण लोगों के लिए संकट का कारण बनता जा रहा है, यह आपातकाल से भी बदतर है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वर्ष 2009 में पारित एक कानून पर फिर से विचार करने की जरूरत है। बता दें, पंजाब और हरियाणा में किसान 1980 के दशक से धान की कटाई के बाद अपने खेतों में आग लगा रहे हैं। यह वह समय था जब खेतों में इंसानों के साथ मशीनों ने भी काम करना शुरू किया था। 1980 के बाद से मैनुअल मजदूरों के बजाय कंबाइन मशीनों का उपयोग अनाज की कटाई और थ्रेसिंग के लिए किया जाने लगा था।
2009 में पंजाब प्रोटेक्शन ऑफ सबोसिल वाटर एक्ट आने से पहले पंजाब में किसान अप्रैल के अंत से मध्य-मई तक धान की बुवाई कर रहे थे और मई के अंत तक रोपाई किया जाता था। इसके परिणामस्वरूप धान के फसलों की कटाई अक्टूबर के शुरू में होने लगी। धान कटने के बाद खेतों में परीली इकट्ठा हो जाती है जिसे किसान जला दिया करते हैं। भूमी जल की कमी और गर्मी को देखते हिए अधिनियम 2009 को लाया गया और मध्य मई और जून से पहले नर्सरी और धान की रोपाई पर रोक लगा दी गई।
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पंजाब सरकार ने इस अधिनियम के तहत मानसून की बारिश से फसलों की सिंचाई का विचार किया और 15 जून से पहले फसलों की रोपाई पर रोक लगा दिया। बता दे, रोपाई के बाद पहले तीन हफ्ते फसल को रोजाना सिंचाई की जरूरत पड़ती है। इससे भू-जल की समस्या से बचने के लिए राज्य सरकार ने यह फैसला लिया। 2009 के अधिनियम में बदलाव से भू-जल तालिका और जलभृतों में तेजी से गिरावट को रोकने में मदद हो सकती है, इससे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु गुणवत्ता सूचकांकों में अभूतपूर्व गिरावट में योगदान भी मिलेगा।