‘दाग़ी नेताओं का बीजेपी ने शुद्धिकरण कर दिया’
त्रिपुरा में बीजेपी की बड़ी जीत का श्रेय एक अनजान नेता को दिया जा रहा है. पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में हुए चुनावों में सबसे अहम लड़ाई त्रिपुरा की मानी जा रही थी. इसके परिणाम भी चौंकाने वाले रहे. बीजेपी गठबंधन ने 25 साल चली आ रही वामपंथी सरकार के एकछत्र राज को समाप्त कर दिया.
पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में हुए चुनावों में सबसे अहम लड़ाई त्रिपुरा की मानी जा रही थी. इसके परिणाम भी चौंकाने वाले रहे. बीजेपी गठबंधन ने 25 साल चली आ रही वामपंथी सरकार के एकछत्र राज को समाप्त कर दिया.
इस जीत के चाणक्य के तौर पर एक नए शख़्स का नाम उभरकर सामने आया है. सुनील देवधर को सालों से त्रिपुरा में बीजेपी के लिए ज़मीनी स्तर पर काम करने वाला शख़्स बताया जा रहा है. मूल रूप से मराठी देवधर पूर्वोत्तर की कई बोलियां जानते हैं. आइये विस्तार से जानते हैं, उनके बारे में.
- उम्र - 52 वर्ष, अविवाहित
- मूल रूप से गुहागर (कोंकण क्षेत्र, महाराष्ट्र) के
- अभी अंधेरी (मुंबई) में उनका घर है
- पिछले 21 सालों से पूर्वोत्तर भारत में रह रहे हैं
- देवधर के सहयोगी दिनेश कांजी बताते हैं, "आरएसएस प्रमुख बालासाहेब देवरस ने स्वयंसेवकों से अपील की थी कि वह अपना एक साल राष्ट्र को दें. उस समय देवधर ने पूर्वोत्तर भारत को चुना था."
- सोशल मीडिया पर काफ़ी एक्टिव रहने वाले देवधर फ़ेसबुक पर अपने पोस्ट ख़ुद करते हैं और उन्हें ख़ुद ही प्रमोट करते हैं.
सुनील देवधर से बीबीसी संवाददातासलमान रावी ने बात की. आगे पढ़ें उन्होंने इस जीत पर क्या-क्या कहा-
कितनी मेहनत करनी पड़ी?
जनता के चेहरे पर मैं इस जीत को पिछले तीन सालों से पढ़ रहा था. जनता परिवर्तन, कानून-व्यवस्था, बेहतर प्रशासन, विकास चाह रही थी जो 25 सालों के वापमंथी सरकार में नहीं मिल रहा था.
सीपीएम का कैडर जब तक सरकार में नहीं आता तब तक जुनूनी रहता है, विचारधारा से प्रेरित रहता है. वहीं, जब वह कैडर सत्ता में आता है तो तब वो सरकार और प्रशासन का राजनीतिकरण और आपराधिकरण कर देता है.
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सरकार उनको अपने फंड से पालती-पोसती है और इसके कारण वह पार्टी पर आर्थिक रूप से निर्भर हो जाता है जबकि बीजेपी या संघ का कैडर पूरी तरह समर्पित होता है. बीजेपी या आरएसएस उनको कोई आर्थिक सहायता नहीं देता. वह कैडर केवल विचारधारा के आधार पर उनके लिए समर्पित रहता है.
वेतन पाने वाले कैडर और समर्पित कैडर में जब लड़ाई होती है तो स्वाभाविक तरीके से समर्पित कैडर उसमें जीतता है. यही जीत हमें त्रिपुरा में मिली है.
बड़े पैमाने पर दागी बीजेपी में आए
हमने किसी भी पार्टी के नेता को नहीं तोड़ा. उन्हें बीजेपी में आशा दिखाई दी तो वह हमारे दरवाज़े पर आए तो हम क्या उनके लिए दरवाज़े बंद कर देते? जो भी हमारे यहां आया हमने उसको अपनी पार्टी में ले लिया.
लेकिन अगर आप सीपीएम या कांग्रेस से बीजेपी में आए नेताओं को देखें तो पाएंगे कि उनका स्वभाव बीजेपी के अनुकूल ही था. बीजेपी ने उनको अपने रंग में रंग दिया या वह ढल गए. एक प्रकार से उनका शुद्धिकरण हो गया और उन्होंने अपने आप को बीजेपी के संस्कारों में डाल लिया.
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त्रिपुरा में माणिक सरकार को चित करने वाला मराठा
कौन होगा मुख्यमंत्री?
माणिक सरकार को बड़ा सादगी भरा मुख्यमंत्री कहा जाता है. सादगी से जीवन जीने का अर्थ यह नहीं होता कि कोई बड़ा ईमानदार है या किसी की बीवी ऑटोरिक्शा से चलती है तो इसका मतलब यह नहीं कि उनका पति बड़ा कार्यकुशल हो.
मुख्यमंत्री के नीचे विभिन्न मंत्रालयों में भ्रष्टाचार होता है तो वह उस कुर्सी के लायक़ नहीं है. इस कारण माणिक सरकार मुख्यमंत्री पद के योग्य नहीं थे इसलिए त्रिपुरा की जनता ने उन्हें ख़ारिज कर दिया.
बीजेपी में अधिकतर युवा और अनुभवी राजनेता हैं. हम गठबंधन में ही है इसलिए मुख्यमंत्री का चयन संसदीय बोर्ड के एक प्रतिनिधिमंडल के त्रिपुरा आने के बाद ही होगा. वह प्रतिनिधिमंडल सभी विधायकों और दलों से बात करके इसकी रिपोर्ट पार्टी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देगा. यह सभी मिलकर त्रिपुरा के मुख्यमंत्री का चयन करेंगे.
जीत का सेहरा सुनील देवधर के सिर?
इस जीत का सेहरा 37 लाख त्रिपुरा वासियों के सिर बंधेगा. इसके अलावा जो हमारे स्थानीय कार्यकर्ता थे उनसे लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक जीत का सेहरा बंधेगा.
केंद्रीय मंत्रिमंडल के सभी मंत्रियों ने यहां आकर प्रचार किया और यहां के लोगों को विश्वास दिलाया कि त्रिपुरा की जनता के लिए केंद्र सरकार गंभीर है. इस जीत का श्रेय सभी लोगों को जाता है.