बिहार: DNA वाले नीतीश बाबू, मुस्लिम बहुल सीटों से लड़कर क्या NDA का कर पाएंगे बेड़ा पार?
पटना। नीतीश कुमार ने चुनावी पिच और मौसम के मिजाज को भांपते हुए अधिकतम जीत के लिए एक गेम प्लान तैयार किया है। एक-एक सीट को ध्यान में रख कर चुनावी खेल की फील्डिंग सजायी जा रही है ताकि सभी 40 लोकसभा सीटों पर जीत का रास्ता तैयार हो सके। नीतीश को भरोसा है कि उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि और विकास कार्यों को देख कर मुस्लिम वोटर उनको समर्थन देंगे। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद सीमांचल और कोसी इलाके में भाजपा का खाता नहीं खुला था। नीतीश कुमार इसकी भरपायी के लिए नयी रणनीति अख्तियार कर रहे हैं।
मुस्लिम
बहुल
सीटें
जदयू
को
सहयोगी
भाजपा
को
उन
सीटों
से
दूर
रखा
है
जहां
मुस्लिम
वोटरों
की
तादाद
अधिक
है।
नीतीश
कुमार
मानते
हैं
कि
मुस्लिम
वोटर
जदयू
के
साथ
सहज
हैं
इस
लिए
उन्होंने
किशनगंज,
पूर्णिया,
कटिहार
और
भागलपुर
सीट
अपने
पास
रखी
है।
अक्सर
यह
देखा
गया
है
कि
मुस्लिम
वोटर
उस
दल
को
वोट
देना
पसंद
करते
हैं
जो
भाजपा
को
हराने
की
स्थिति
में
हो।
इस
नुकसान
से
बचने
के
लिए
ये
सीटें
भाजपा
को
नहीं
दी
गयी
हैं।
रणनीति
ये
है
कि
जदयू
मुस्लिम
मतदाताओं
को
गोलबंद
कर
इन
सीटों
पर
जीत
के
लिए
रास्ता
तैयार
करे।
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मुस्लिम वोटरों की नाराजगी से भाजपा को बचने की रणनीति
2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद भाजपा को किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार और भागलपुर में हार का सामना करना पड़ा था। भागलपुर भाजपा की परम्परागत सीट थी। लेकिन स्थानीय भीतरघात और मुस्लिम वोटरों के राजद के पक्ष में गोलबंद होने की वजह से भाजपा उम्मीदवार शाहनवाज हुसैन को हार झेलनी पड़ी थी। राजद के बुलो मंडल ने शाहनवाज हुसैन को करीब नौ हजार मतों से शिकस्त दी थी। अब नीतीश कुमार ने ये सीट अपने पास रखी है। उन्हें उम्मीद है कि जदयू का प्रत्याशी होने पर एक हद तक मुस्लिम वोट भी एनडीए को मिलेगा। 9 हजार मतों के अंतर को पाटना कोई कठिन काम नहीं है। इससे विपक्ष की झोली से यह सीट एनडीए के खाते में आ सकती है।
पूर्णिया
पर
जदयू
का
कब्जा
2014
के
लोकसभा
चुनाव
में
जदयू
को
जिन
दो
सीटों
पर
जीत
मिली
थी
पूर्णिया
भी
उनमें
एक
है।
पूर्णिया
से
जदयू
के
उम्मीदवार
संतोष
कुशवाहा
ने
भाजपा
के
प्रत्याशी
उदय
सिंह
उर्फ
पप्पू
सिंह
को
करीब
एक
लाख
से
अधिक
मतों
से
हराया
था।
पप्पू
सिंह
अब
भाजपा
से
अलग
हो
चुके
हैं।
यहां
जदयू
को
इसलिए
जीत
मिली
थी
कि
क्यों
कि
मुस्लिम
वोटरों
ने
उनका
साथ
दिया
था।
पप्पू
सिंह
भाजपा
के
टिकट
पर
2009
और
2004
में
इस
सीट
पर
जीत
चुके
थे।
लेकिन
2014
में
मुस्लिम
मतदाता
भाजपा
के
खिलाफ
जदयू
के
पक्ष
में
गोलबंद
हो
गये।
अब
भाजपा
से
मेल
के
बावजूद
जदयू
को
भरोसा
है
कि
सीमांचल
और
कोसी
इलाके
में
अल्पसंख्यक
उन
पर
नजरेइनायत
करेंगे।
जदयू
रामजन्मभूमि,
धारा
370
और
यूनिफॉर्म
सिविल
कोड
के
मुद्दे
पर
भाजपा
से
अलग
स्टैंड
रखता
है।
नीतीश
कुमार
को
जब
भी
कोई
मौका
मिलता
है
तो
वे
यह
कहने
से
नहीं
चूकते
कि
इन
तीन
मुद्दों
पर
वे
कभी
भी
भाजपा
के
साथ
समझौता
नहीं
कर
सकते।
अपनी
धर्मनिपपेक्ष
छवि
को
बनाने
और
चमकाने
के
लिए
ही
नीतीश
कुमार
ये
बात
कहते
रहे
हैं।
किशनगंज में जदयू की अग्निपरीक्षा
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने दिलीप जायसवाल को किशनगंज के चुनावी अखाड़े में उतारा था। उनकी करारी हार हुई थी। यहां से कांग्रेस के मौलाना असरारुल हक लगातार दूसरी बार जीते थे। अब उनका निधन हो गया है। असरारुल हक के निधन के बाद किशनगंज में सियासी ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है। 2019 में इस सीट पर जदयू चुनाव लड़ रहा है। किशनगंज लोकसभा क्षेत्र में जदयू का आधार है। यहां की दो विधानसभा सीटें उसके पास हैं। अगर नीतीश के काम का सिक्का चला तो किशनगंज में जदयू चौंकानेवाला परिणाम दे सकता है। जिस तरह से कांग्रेस और राजद में सीट बंटवारे को लेकर अविश्वास का माहौल है उससे भी जदयू की राह आसान हो सकती है। वैसे भी अब राजद के पास न अब तस्लीमुद्दीन जैसे कद्दावर नेता हैं न कांग्रेस के पास असरारुल हक जैसे प्रभावशाली उम्मीदवार। दोनों के निधन के बाद जदयू नयी जमीन तलाशने की तैयारी में है।
कटिहार
में
भाजपा
के
जख्म
पर
मरहम
लगाएगा
जदयू
कटिहार
लोकसभा
सीट
पर
भाजपा
के
निखिल
चौधरी
लगातार
तीन
बार
चुनाव
जीते
थे।
लेकिन
2014
के
लोकसभा
चुनाव
में
राष्ट्रवादी
कांग्रेस
के
टिकट
पर
खड़े
तारिक
अनवर
ने
निखिल
चौधरी
को
हरा
दिया
था।
निखिल
चौधरी
की
करीब
एक
लाख
15
हजार
मतों
से
हार
हुई
थी।
तब
इस
सीट
पर
जदयू
के
उम्मीदवार
रामप्रकाश
महतो
को
करीब
एक
लाख
मत
मिले
थे।
अगर
भाजपा
और
जदयू
के
मतों
को
मिला
दिया
जाय
तो
यह
विजयी
तारिक
अनवर
के
कुल
मतों
के
बिल्कुल
नजदीक
है।
जदयू
का
मानना
है
कि
नीतीश
कुमार
की
छवि
की
बदौलत
उन्हें
अल्पसंख्यक
वोट
भी
मिलेंगे।
इसलिए
कटिहार
सीट
भी
जदयू
ने
अपने
पास
रखी
है।
सीमांचल में केवल अररिया भाजपा के पास
सीमांचल इलाके में केवल अररिया लोकसभा सीट पर ही भाजपा चुनाव लड़ेगी। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रदीप सिंह, राजद के दिग्गज नेता तस्लीमुद्दीन से चुनाव हार गये थे। तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद जब उपचुनाव हुआ तो बिहार की सियासी तस्वीर बदल चुकी थी। राजद बिहार सरकार से बाहर हो चुका था। जदयू ने भाजपा के साथ मिल कर नयी सरकार बना ली थी। उपचुनाव में भाजपा और जदयू ने मिल कर जोर लगाया लेकिन राजद के सरफराज आलम को हरा नहीं सके। तस्लीमुद्दीन के पुत्र सरफराज को सहानुभूति में भरपूर समर्थन मिला था। नीतीश कुमार आशा के अनुरूप अल्पसंख्यक वोट ट्रांसफर नहीं करा पाये थे। शायद इसी वजह से उन्होंने ये सीट अपने पास नहीं रखी। 2019 का लोकसभा चुनाव न केवल नरेन्द्र मोदी के लिए बल्कि नीतीश कुमार के लिए भी एक अग्निपरीक्षा है। नीतीश कुमार अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि बनाये और बचाये रखने के लिए जी तोड़ कोशिश करते रहे हैं। अब उनकी यह कोशिश नतीजों की कसौटी पर कसी जानी है।
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