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बंगाल चुनाव में बढ़ी मुस्लिम वोटरों के लिए खींचातान, बीजेपी के लिए क्या हैं इसके मायने?

इस साल अप्रैल-मई में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं और इसको लेकर बंगाल में सभी छोटे बड़े दलों ने कमर कस ली है।

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नई दिल्ली। इस साल अप्रैल-मई में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं और इसको लेकर बंगाल में सभी छोटे बड़े दलों ने कमर कस ली है। इस बार पश्चिम बंगाल में शिवसेना और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने भी पश्चिम बंगाल के चुनावी समर में कूदने का ऐलान किया है। पश्चिम बंगाल में लगभग 30 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं और पश्चिम बंगाल की दोनों बड़ी पार्टियां टीएमसी और बीजेपी की इसी मुस्लिम वोटर को रिझाने पर नजर हैं, क्योंकि मुस्लिम मतदाताओं को बंगाल चुनाव में निर्णायक माना जाता है।

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हम साल 2011 का वह चुनाव कैसे भूल सकते हैं जब ममता बनर्जी ने जबरदस्त जीत हासिल कर सीपीएम के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे को चौंका दिया था। उस साल का चुनाव सच्चर आयोग की उस रिपोर्ट को आधार बनाकर लड़ा गया था जिसमें कहा गया था कि राज्य में मुस्लिमों की स्थिति बदतर है। इस साल के चुनावों में असदुद्दीन की एआईएमआईएम और पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की भारतीय धर्मनिर्पेक्ष मोर्चा (आईएसएफ) ने भी चुनाव में उतरने का ऐलान किया है। ये सब बातें बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित होगीं या हानिकारक आइए जानते हैं।

कांग्रेस की नजर अब्बास सिद्दीकी पर

भारतीय धर्मनिर्पेक्ष मोर्चा प्रमुख पीरजादा अब्बास सिद्दीकी बंगाल में मुसलमानों समाज पर जबरदस्त पकड़ रखते हैं। साल 2011-16 के चुनावों में उन्होंने ममता बनर्जी को समर्थन दिया था, लेकिन इस बार उन्होंने ममता से मुंह फेर लिया और खुद की पार्टी बनाई। अब बंगाल में कांग्रेस की निगाहें पीरजादा के साथ गठबंधन करने पर टिकी हुई हैं। वहीं पीरजादा भी कांग्रेस के इस प्रस्ताव को स्वीकारने की स्थिति में दिख रहे हैं और अगर यह गठबंधन हो जाता है हो कांग्रेस बंगाल में मुस्लिम वोटरों की प्रबद दावेदार हो सकती है। बंगाल में कांग्रेस के नेता अब्दुल मान ने भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे पत्र में इस गठबंधन की वकालत की है।

इस बार महत्वपूर्ण होगी ओवैसी की भूमिका

बिहार विधानसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद ओवैसी बंगाल में भी महत्वपूर्ण कारक बन गए हैं। ओवैसी अपनी पार्टी को एक ऐसी वैश्विक पार्टी बनाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं जो मुस्लिमों की आवाज बने। वह अपनी रैलियों में उर्दू में बात करते हैं और मुस्लिम वोटरों को एक करने का प्रयास करते हैं। कांग्रेस ने जनवरी में ओवैसी से भी गठबंधन बनाने को लेकर बात की थी। हालांकि ओवैसी कांग्रेस और पीरजादा अब्बास सिद्दीकी के गठबंधन की बात को लेकर पशोपेश की स्थिति में हैं लेकिन जनवरी में उन्होंने कहा था पीरजादा गठबंधन को लेकर जो भी निर्णय लेंगे उनकी पार्टी उसपर अपनी सहमति प्रदान करेगी। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर ओवैसी के लिये कांग्रेस के साथ गठबंधन करना मुश्किल हो जाएगा क्योंगी उनकी पार्टी पहले ही वाम दलों के साथ सौदा कर चुकी है। अगर ओवैसी बंगाल में अकेले चुनाव लड़ते हैं तो एआईएमआईएम का ममता बनर्जी की टीएमसी के साथ सीधा टकराव होगा। इस परिदृश्य में भाजपा को ध्रुवीकरण के आसार हैं।

इस बार ममता की भी होगी अग्नि परीक्षा
राजनीति में ममता के लिये मुस्लिम वोटरों के झुकाव को कुछ ही सालों का समय हुआ है। बात तब की है जब ममता ने अपना अलग संगठन बनाया था, तब भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सत्ता में आ रहा था। ममता उस दौरान एनडीए में शामिल हो गईं। लेकिन भाजपा के साथ उनके जुड़ाव ने उन्हें बंगाल के मुस्लिम वोट बैंक से दूर कर दिया। साल 2004 में ममता ने अपनी गलती सुधारी और वह भाजपा से अलग हो गईं और उन्होंने मुसलमानों को लुभाना शुरू किया, हाल के सालों में ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया था। उन्होंने मनमोहन सरकार की सच्चर रिपोर्ट जिसमें बंगाल में मुसलमानों के बदतर हालात की बात की गई थी, के आधार पर उन्होंने बंगाल में वाम दलों को घेरना शुरू किया और मुस्लिम मतदाता को अपनी ओर खींच लिया।

ममता की सरकार ने मुसलमानों के लिए कई सराहनीय काम किये

-इमामों और मुअज्जिनों को एक भत्ता या वजीफा दिया
-मदरसों में पढ़ने वाली लड़कियों को मुफ्त साइकिल प्रदान की।
-कक्षा I से X के मुस्लिम छात्रों के लिए छात्रवृत्ति बढ़ाई।
- मुस्लिम ओबीसी को आरक्षण की पेशकश की।
- रूढ़िवादी मुस्लिम मौलवियों की मांग पर विवादास्पद लेखिका तस्लीमा नसरीन द्वारा एक नाटक श्रृंखला के प्रसारण पर प्रतिबंध
लगाया।
-उन जिलों में उर्दू को दूसरी आधिकारिक भाषा बनाया गया जहाँ उर्दू बोलने वालों की आबादी 10 प्रतिशत से अधिक थी।
ममता सरकार ने आलिया विश्वविद्यालय को 300 करोड़ रुपये का अनुदान दिया, जो वाम मोर्चे के शासन के दौरान शुरू हुआ, और जिलों में मुस्लिम लड़कियों के लिए विशेष छात्रावासों का निर्माण किया।
इस सब के बावजूद इस बार के चुनाव में ममता के लिए चुनौती की स्थिति होगी क्योंकि कांग्रेस ओवैसी और पीरजादा की पार्टी से गठबंधन कर सकती है और पूरा का पूरा मुस्लिम वोट टीएमसी से दूर जा सकता है।

क्या भाजपा को खुश होना चाहिए?

मुस्लिमों तक अच्छी खासी पहुंच होने के बावजूद, मुख्य रूप से हिंदुत्व पर जोर देने के कारण भाजपा के पास मुसलमानों के बीच नगण्य जनाधार है। भाजपा आमतौर पर चुनावों में मुस्लिम मतों के विभाजन से लाभान्वित होती है। इसलिये भाजपा नेता हिंदुत्व वोट को मजबूत करने के लिए बंगाल में मतदाताओं के ध्रुवीकरण में मदद करते दिख रहे हैं। हाल ही में टीएमसी से भाजपा में शामिल हुए शुवेंदु अधिकारी ने कहा, "टीएमसी सोच रही है कि वह 30 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं से इस बार भी काम चला लेंगे। लेकिन मैं उन्हें बताना चाहूंगा कि हमारे पास 70 फीसदी हिंदू वोट है।"

उन्होंने हाल ही में एक सार्वजनिक रैली में हिंदू मतदाताओं से कहा था, "एकजुट रहें और सत्ताधारी सरकार को बाहर का रास्ता दिखाएं।" मुस्लिम मतदाताओं के वर्चस्व वाले दक्षिण बंगाल में TMC के दावे को मजबूत करने और शुवेंदु अधिकारी को हराने के लिए ममता बनर्जी ने अपने निर्वाचन क्षेत्र को कोलकाता के भवानीपुर से पूर्वी मिदनापुर जिले के नंदीग्राम स्थानांतरित करने का फैसला किया है। अधिकारी ने कहा, "मैं आज नंदीग्राम से भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए यह जिम्मेदारी लेता हूं। वे (TMC) 62,000 वोटों पर भरोसा कर रहे हैं, लेकिन मुझे 2.13 लाख लोगों का समर्थन प्राप्त है, जो 'जय श्री राम' का जाप करते हैं।'' कांग्रेस-वाम-सिद्दीकी-ओवैसी गठबंधन की संभावना पर प्रतिक्रिया देते हुए, भाजपा के अमित मालवीय ने कहा, "धर्मनिरपेक्ष" राजनीति का असली स्वरूप मुस्लिम तुष्टिकरण के अलावा और कुछ नहीं है और यहां अब्दुल मन्नान भी अपने मुस्लिम वोट बैंक को मजबूत करने के लिए अपनी हताशा नहीं छिपा सकते हैं। हिंदुओं को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।" संक्षेप में, भाजपा विधायकों ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल विधानसभा के बाहर "जय श्री राम" का जाप किया, क्योंकि उन्होंने बजट सत्र के पहले दिन बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को विधानसभा में आमंत्रित नहीं करने के ममता सरकार के फैसले का विरोध किया था।

बंगाल में मुस्लिमों की स्थिति
बंगाल में 294 विधानसभा क्षेत्र हैं, जिनमें से 46 में मुस्लिमों की संख्या 50 प्रतिशत से अधिक है। 16 सीटें ऐसी हैं जहां मुसलमानों की आबादी 40-50 फीसदी है, 33 सीटें 30-40 फीसदी मुस्लिमों की हैं और 50 सीटें ऐसी हैं जहां मुसलमान 20-30 फीसदी मतदाता हैं। यह बंगाल के लगभग आधे निर्वाचन क्षेत्रों में मुसलमानों को एक महत्वपूर्ण कारक बनाता है। बंगाल में 100 से अधिक निर्वाचन क्षेत्र हैं जहां मुस्लिम मतदाताओं ने चुनावों में प्रभाव डाला है। मालदा, मुर्शिदाबाद, उत्तरी दिनाजपुर, दक्षिण 24 परगना, उत्तर 24 परगना, नादिया और बीरभूम के जिले विशेष रूप से मुस्लिम वोटों और प्रत्याशित ध्रुवीकरण वाले वोटों के लिए राजनीतिक दलों के फोकस में हैं। विशेष रूप से तीन जिलों - मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तरी दिनाजपुर में हिंदुओं की तुलना में मुस्लिम आबादी अधिक है। इन मुस्लिम बहुल जिलों में टीएमसी, कांग्रेस और ओवैसी के एआईएमआईएम द्वारा गहन चुनाव होने की संभावना है। भाजपा प्रति-ध्रुवीकरण के लिए ज्यादा दिख रही है।

इस लेख को इंडिया टुडे की वेबसाइट से लिया गया जिसका हमने हिंदी अनुवाद किया है।

Comments
English summary
Bengal election sets off rush for Muslim votes, what does this mean for BJP?
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