जब अटल बिहारी वाजपेयी ने UN में हिंदी में दिया भाषण और पाकिस्तान के मंसूबों पर फेरा पानी
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पहले ऐसे भारतीय नेता थे जिन्होंने यूनाइटेड नेशंस (यूएन) में हिंदी में भाषण दिया था।
नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पहले ऐसे भारतीय नेता थे जिन्होंने यूनाइटेड नेशंस (यूएन) में हिंदी में भाषण दिया था। चार अक्टूबर, 1977 को अटल बिहारी वाजपेयी जनता पार्टी की सरकार के विदेश मंत्री के तौर पर में संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशन यानी यूनाइटेड नेशंस जनरल एसेंबली (उंगा) में हिन्दी में भाषण दिया था। वाजपेयी ने भाषण जरूर हिंदी में दिया लेकिन उन्होंने अपनी हर बात अपने इस भाषण में रखी थी। यह भाषण उन्होंने यूएन के हेडक्वार्टर पर दिया था जो अमेरिका के न्यूयॉर्क में है।
क्या कहा था वाजपेयी ने
वाजपेयी ने यहां पर कहा था, 'सरकार की बागडोर संभाले केवल छ: महीने हुए हैं। फिर भी इतने कम समय में हमारी उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं। भारत में मूलभूत मानवाधिकार पुन: प्रतिष्ठित हो गए हैं। जिस भय और आतंक के वातावरण ने हमारे लोगों को घेर लिया था वह अब खत्म हो गया है। ऐसे संवैधानिक कदम उठाए जा रहे हैं कि यह सुनिश्चित हो जाए कि लोकतंत्र और बुनियादी आजादी का अब फिर कभी हनन नहीं होगा।'
वसुधैव कुटुम्बकम में है भारत का भरोसा
'अध्यक्ष महोदय, वसुधैव कुटुम्बकम की परिकल्पना बहुत पुरानी है। भारत में सदा से हमारा इस धारणा में विश्वास रहा है कि सारा संसार एक परिवार है। अनेकानेक प्रयत्नों और कष्टों के बाद संयुक्त राष्ट्र के रूप में इस स्वप्न के साकार होने की संभावना है। यहां मैं राष्ट्रों की सत्ता और महत्ता के बारे में नहीं सोच रहा हूं। आम आमदी की प्रतिष्ठा और प्रगति मेरे लिए कहीं अधिक महत्व रखती है।'
1994 में विपक्ष की तरफ से पहुंचे यूएन
एक बार तो वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए भी यूएन में देश का प्रतिनिधित्व किया और कश्मीर पर पाकिस्तान के मंसूबे को नाकाम किया। साल 1994 का है, जब विपक्ष में होने के बावजूद तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव ने अटल बिहारी वाजपेयी को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग भेजे गए प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व सौंपा। दरअसल, 27 फरवरी 1994 को पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में इस्लामी देशों समूह ओआईसी के जरिए प्रस्ताव रखा। उसने कश्मीर में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर भारत की निंदा की। संकट यह था कि अगर यह प्रस्ताव पास हो जाता तो भारत को यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल के कड़े आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता। इन हालातों में वाजपेयी ने भारतीय प्रतिनिधिमंडल का बखूबी नेतृत्व किया और पाकिस्तान को विफलता हाथ लगी।