बीजेपी के 'चाणक्य' का नहीं चला जादू, सत्ता-विरोधी लहर रोकने में रहे नाकाम
नई दिल्ली। 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की सरकार जाती रही और इन राज्यों में एक इंतजार के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी हो गई। कांग्रेस ने छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में सीधी लड़ाई में बीजेपी को पटखनी देते हुए लोकसभा चुनावों के लिए भी बिगुल फूंक दिया है। वहीं, बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह की रणनीति पर भी सवाल उठने लगे हैं कि गुजरात के अलावा वे किसी अन्य राज्य में सत्ता विरोधी लहर को थामने में कामयाब नहीं हुए हैं।
मार्च 2017 के विधानसभा चुनावों के दौरान बीजेपी गोवा और पंजाब में सत्ता में थी तो पार्टी को 40 सदस्यीय गोवा विधानसभा में कांग्रेस के 17 सीटों के मुकाबले केवल 13 सीटें हासिल हुईं, लेकिन छोटी पार्टियों और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से वे सरकार बनाने में कामयाब रहे। वहीं, पंजाब में बीजेपी और सहयोगी शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) को कांग्रेस ने सत्ता से हटाने का काम किया।
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हाल के विधानसभा चुनावों के दौरान राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी को हार का सामना पड़ा जबकि तेलंगाना और मिजोरम में पार्टी कोई बड़ा प्रभाव नहीं छोड़ सकी। ऐसे में सवाल है कि बीजेपी को अचानक क्या हो गया? इसके पहले तक, बीजेपी की जीत के बाद पीएम मोदी ने अमित शाह को इसका सारा श्रेय दिया था। इसके पहले तक, अमित शाह के चुनाव वाले राज्यों का दौरा शुरू करते ही हवा का रूख बीजेपी की तरफ हो जाता था और विपक्षी दलों के नेता सालों की वफादारी छोड़ भगवा खेमे में आने लगते थे। संगठन से लेकर पार्टी के कार्यकर्ताओं में वो जोश चुनाव परिणाम तक बरकरार रहता था।
राम मंदिर मुद्दे का बीजेपी को नहीं हुआ खास फायदा
लेकिन ये सब हाल के चुनावों में दिखाई नहीं दिया है। 2013 में एक वक्त कई विपक्षी नेता बीजेपी में शामिल हो गए थे, उसी प्रकार अब कई नेता बीजेपी छोड़ कांग्रेस के खेमे में जाते दिखाई दिए हैं। ऐसा नहीं था कि कांग्रेस के खेमे में बागी नहीं थे लेकिन जो बगावत बीजेपी खेमे में थी, उसका हल शायद अंत तक नहीं निकला। अमित शाह भी इस चुनाव के दौरान उस लय में दिखाई नहीं दिए जैसा वे पहले के चुनाव में देखे जाते थे। बीजेपी पूरे चुनाव के दौरान चर्चा में तो रही, लेकिन विवादों से पीछा छुड़ाने में पार्टी नाकाम रही। चाहें, राम मंदिर का मुद्दा हो, 'कांग्रेस की विधवाओं', राहुल गांधी के दादा-दादी, भगवान बजरंगबली की जाति का सवाल हो, विकास की चर्चा तो हुई लेकिन पूरे चुनाव के दौरान बस चर्चा तक ही सीमित रह गया विकास।
अमित शाह की रणनीति नई आई काम
हिंदुत्व कार्ड खेलने की अमित शाह की रणनीति बीजेपी शासित राज्यों (हिंदी बेल्ट) में सत्ता बचाने में नाकाफी साबित हुई है। जबकि कांग्रेस पर लगातार हमले भी लोगों को खास पसंद नहीं आए जो पीएम मोदी से कुछ खास करने की उम्मीद लगाए थे। अमित शाह की उस रणनीति का प्रभाव इस चुनाव में कम होता दिखाई दिया है, जो बीजेपी को चुनाव दर चुनाव जीत से नवाजती रही है।