रोचक चुनाव: जब मुंह ढककर वीपी सिंह से मिलने पहुंचे थे अमिताभ
नई दिल्ली। भारत की राजनीति को लेकर एक जुमला लोकप्रिय है कि देश के प्रधान मंत्री की कुर्सी उत्तर प्रदेश से होकर आती है और उत्तर प्रदेश की राजनीति में इलाहाबाद यानी प्रयागराज की भूमिका की अनदेखी नहीं की जा सकती। यही वजह है कि इलाहाबाद ने देश को दो प्रधानमंत्री दिए हैं। ख़ास बात है कि पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू भी आधे इलाहाबाद का प्रतिनिधित्व करते थे। जवाहरलाल नेहरू फूलपुर लोक सभा सीट से चुन कर आए थे और उस समय फूलपुर लोकसभा क्षेत्र में इलाहाबाद पूर्व का एक हिस्सा आता था। इलाहाबाद लोक सभा सीट ऐसी सीट है जहाँ चुनाव परिणाम कुछ ऐसा होता है कि वह इतिहास में दर्ज हो जाता है।
जब इलाहाबाद में वीपी की जीत के बाद चली गई राजीव की कुर्सी
आपको याद होगा की कभी कांग्रेस के प्रभावशाली रहे उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने केंद्र में राजीव गाँधी की मजबूत सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मोर्चा खोला और 1988 में इलाहाबाद लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में कांग्रेस के खिलाफ एक निर्दल प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की। तब इलाहाबाद संसदीय सीट से अमिताभ बच्चन के इस्तीफ़ा देने के कारण उपचुनाव हुआ था। तब उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री को एक लाख दस हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया था। 1988 के उपचुनाव के दौरान विश्वनाथ प्रताप सिंह को लेकर इलाहाबाद में एक नारा बहुत लोकप्रिय हुआ था- राजा नहीं फकीर है भारत की तकदीर है। इलाहाबाद ही नहीं तब देश के हिंदी की पूरे हिन्दी भाषी इलाकों में ये नारा प्रचलित हो गया था। इलाहाबाद के मतदाताओं ने देखते ही देखते विश्वनाथ प्रताप सिंह को राजनीतिक मसीहा बना दिया और इसी के चलते 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधानमन्त्री बने।
ये भी पढ़ें: लोकसभा चुनाव 2019: इलाहाबाद लोकसभा सीट के बारे में जानिए
वीपी सिंह से मिलने मुंह ढककर पहुंचे थे अमिताभ बच्चन
बात 1984 के आसपास की है। अमिताभ सुपरस्टार बन चुके थे। उनकी लोकप्रियता उस दौर में ऐसी थी कि उनकी एक झलक देखने के लिए रैलियों में दूर-दराज से इलाकों से लोग आते थे। हालांकि एक नेता ऐसे भी थे, जो उस दौर में न तो अमिताभ और न ही उनकी लोकप्रियता से वाकिफ थे। यह कोई और नहीं, बल्कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह थे। कहा जाता है कि अमिताभ उनसे मिलने के लिए तौलिए से मुंह ढककर जाया करते थे। वीपी सिंह पर लिखी किताब ‘मंजिल से ज्यादा सफर' में दर्ज है कि फिल्मों से लगाव न होने के कारण ‘राजा' अमिताभ को पहचानते भी नहीं थे। एक बार राजीव गांधी के कहने पर अमिताभ तौलिए से मुंह ढककर उनसे मिलने पहुंचे थे। अमिताभ बच्चन के साथ अरुण नेहरू भी थे। अमिताभ ने ऐसा क्यों किया, यह उन्हें नहीं मालूम, लेकिन अरुण नेहरू ने ही वीपी सिंह का अमिताभ से परिचय करवाया था। यह देख अमिताभ भी असहज हो गए थे। ऐसा तब हुआ था जब अमिताभ सुपरस्टार बन चुके थे और इलाहाबाद से चुनाव लड़ने वाले थे।
इलाहाबाद से आज तक कोई महिला उम्मीदवार लोकसभा नहीं पहुंची
इलाहाबाद लोकसभा सीट की एक और खास बात है कि यहाँ से आज तक कोई महिला उम्मीदवार लोकसभा नहीं पहुंची। इस बार 2019 के लोकसभा चुनाव बीजेपी से रीता बहुगुणा जोशी मैदान में हैं। इसके पहले रीता बहुगुणा जोशी 1999 में भी इलाहाबाद से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुकी हैं। लेकिन वह तब बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी ने जीत हासिल की थी। रीता बहुगुणा जोशी तीसरे नबर पर रहीं थी। रीता बहुगुणा जोशी की माँ कमला बहुगुणा भी 1989 में इलाहाबाद से अपनी किस्मत आजमा चुकी हैं लेकिन उनको तब जनतादल के जनेश्वर मिश्र ने 38940 वोटो से हराया था। इलाहाबाद की जनता ने आज तक किसी महिला उम्मीदवार को अपना सांसद नहीं चुना है, हालांकि यहां पिछले चुनाव में महिला मतदाताओं की संख्या 749,166 थी। लेकिन शीर्ष पार्टियों ने भी कभी महिलाओं पर अपना विश्वास नहीं जताया है।
जनता जल्द बदल देती है अपना नेता
इलाहाबाद एक ऐसी सीट है, जिसपर किसी खास राजनीतिक पार्टी का प्रभाव बहुत दिनों तक नहीं दिखता है। इस सीट के पहले सांसद श्रीप्रकाश थे जो स्वतंत्रता सेनानी थे और कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े थे। उनके बाद लाल बहादुर शास्त्री 1957 में यहां से सांसद चुने गये. 1973 में भारतीय क्रांति दल के जनेश्वर मिश्रा को जनता ने चुना।1984 में अमिताभ बच्चन कांग्रेस की टिकट पर सांसद बने। 1988 के उपचुनाव में वीपी सिंह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीते। 1998 में मुरली मनोहर जोशी जीते। 2004 और 2009 में समाजवादी पार्टी के रेवती रमण सिंह जीते तो 2014 में यह सीट भाजपा के खाते में गयी। वर्तमान में श्याम चरण गुप्ता ही यहां से सांसद हैं. उन्होंने रेवती रमण सिंह को शिकस्त दी थी।
कोई भी प्रत्याशी किसी पार्टी के टिकट पर लगातार दो बार से अधिक नहीं जीत सका
इलाहाबाद लोकसभा सीट पर हमेशा मुकाबला कांटे का मन जाता है । अब तक सबसे बड़े अन्तर से जीत का रिकार्ड अभी ही बिगबी यानी अमिताभ बच्चन के नाम दर्ज है। उन्होंने 1984 के लोकसभा चुनाव में लोकदल के टिकट पर लड़ रहे एक जमाने के कद्दावर नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा को 1,87,795 मतों के बड़े अंतर से हराया। अमिताभ के आलावा विश्वनाथ प्रताप सिंह और मुरली मनोहर जोशी ही ऐसे नेता रहे हैं जो एक लाख से अधिक मतों के अंतर से इलाहाबाद का महामुकाबला जीत सके हैं। इलाहाबाद लोकसभा सीट पर अब तक का सबसे कांटे का मुकाबला 1991 के चुनाव में जनतादल की सरोज दूबे और बीजेपी के श्यामाचरण गुप्त के बीच हुआ जिसमें सरोज दूबे केवल 5,196 मतों के अन्तर से जीत सकीं थी।
यह सीट जितनी महत्वपूर्ण है उतनी ही चर्चित भी रहती है। इस सीट पर 1957 से 1971 तक लगातार कांग्रेस विजयी रही। इसके बाद से इस सीट पर कभी निर्दलीय, कभी जनता दल, कभी समाजवादी पार्टी और कभी बीजेपी ने कब्ज़ा जमाया। यह सच है कि कांग्रेस यहांसे लगातार सात बार जीत चुकी है लेकिन इलाहाबाद से कोई भी प्रत्याशी किसी पार्टी के टिकट पर लगातार दो बार से अधिक चुनाव नहीं जीत सका है । इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इलाहाबाद के मतदाता हमेशा से बहुत जागरूक रहे हैं और इसी वजह से इलाहाबाद सीट हमेशा से राजनीतिक रूप से बहुत जीवंत और अप्रत्याशित रही है।