जानिए कौन थे पाकिस्तान के सियालकोट में जन्मे वेटरन जर्नलिस्ट कुलदीप नैयर
नई दिल्ली। गुरुवार को वेटरन जर्नलिस्ट कुलदीप नैयर का 95 वर्ष की आयु में निधन हो गया। कुलदीप नैयर उन चुनिंदा पत्रकारों में थे जिन्होंने देश में राजनीति, आर्थिक और सामाजिक परिवर्तनों को करीब से देखा था। 14 अगस्त 1923 को पाकिस्तान के सियालकोट में जन्मे कुलदीप एक जर्नलिस्ट होने के अलावा मानवाधिकार कार्यकर्ता और एक डिप्लोमैट भी रह चुके थे। वह उस लीग का हिस्सा भी रहे जिन्हें साल 1975 में लगी इमरजेंसी के दौरान जेल भी भेजा गया। युवा पत्रकारों के लिए वह एक आदर्श थे तो अनुभवी पत्रकार उन्हें रोचक जानकारियों के संग्रह के तौर पर याद करते हैं। कुलदीप नैयर पहले व्यक्ति थे जिन्हें ताशकंद में हुई लाल बहादुर शास्त्री के आकस्मिक निधन के बारे में पता चला था। एक नजर डालिए कि आखिर कौन थे कुलदीप नैयर।
यूके में रहे थे हाई-कमिश्नर भी
सियालकोट में जन्में नैयर ने अपना करियर उर्दू पत्रकारिता के साथ शुरू किया था। द स्टेट्समैन के साथ वह बतौर एडीटर जुड़े हुए थे। कुलदीप नैयर मानवाधिकार के क्षेत्र में भी काफी सक्रिय थे। वामदलों के लिए सहानुभूति रखने वाले कुलदीप यूनाइटेड किंगडम में हाई-कमिश्नर भी रह चुके थे। उन्हें साल 1997 में राज्यसभा के लिए भी चुना गया था। इससे एक वर्ष यानी साल 1996 में नैयर यूनाइटेड नेशंस के लिए भारतीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल होने वाले सदस्य भी थे।
80 से ज्यादा अखबारों में लिखते थे नैयर
नैयर के पिता गुरबख्श सिंह और मां पूर्णा देवी थीं। नैयर ने लाहौर के फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज से बीए ऑनर्स की पढ़ाई पूरी की और इसके बाद लाहौर के ही लॉ कॉलेज से एलएलबी की डिग्री ली। उनके बेटे राजीव नैयर इस समय सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट हैं। साल 1952 में नैयर ने नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के मेडिल स्कूल ऑफ जर्नलिज्म से जर्नलिज्म की पढ़ाई पूरी की। नैयर देश के 80 से ज्यादा अखबारों में 14 भाषाओं में कॉलम और ओपिनियन लिखते थे।
भारतीय कैदियों की रिहाई के लिए लड़ते नैयर
साल 2000 से नैयर हर वर्ष 14 और 15 अगस्त यानी भारत और पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर उन पीस एक्टिविस्ट्स का नेतृत्व करते थे जो इस मौके पर अमृतसर स्थित वाघा बॉर्डर पर मोमबत्तियां जलाकर शांति की अपील करते थे। इसके अलावा वह पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय कैदियों को आजाद कराने के लिए भी काम कर रहे थे। ये ऐसे कैदी हैं जिनकी सजा पूरी हो चुकी है लेकिन इन्हें अभी तक रिहा नहीं किया गया है।
लेकिन आलोचना के भी शिकार
नैयर एक सम्मानित पत्रकार थे लेकिन उन पर हमेशा भारत-विरोधी षडयंत्रों के समर्थन का भी आरोप लगा था। फरवरी 2010 में उन्होंने पाकिस्तान के अखबार डॉन में लिखे एक कॉलम उन्होंने आरोप लगाया कि मुंबई एंटी-टेररिज्म स्क्वॉयड के चीफ सीनियर पुलिस ऑफिसर हेमंत करकरे की कुछ हिंदू राइट-विंग एक्टिविस्ट ने हत्या कर दी थी। जुलाई 2011 में अमेरिकी अथॉरिटीज की ओर से इस बात की पुष्टि की गई थी कि नैयर ने ऐसे कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया जो अमेरिका में हुए और जिन्हें सैयद गुलाम नबी फई की ओर से मदद की गई थी और पाकिस्तान की ओर से फंडिंग की गई थी।
शास्त्री की मौत की जांच की वकालत
नैयर ने हमेशा ही इस बात की वकालत की थी पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री की मौत से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक किया जाए। एक इंटरव्यू में नैयर ने शास्त्री से हुई अपनी आखिरी मुलाकात को याद किया था जो साल 1966 में पूर्व पीएम के ताशकंद दौरे पर हुई थी। शास्त्री के निधन के बाद नैयर उनके कमरे में गए थे। नैयर की मानें तो वह पहले व्यक्ति थे जो शास्त्री के कमरे में गया था और कमरे में दाखिल होने के बाद उन्होंने देखा की शास्त्री की चप्पलें एकदम करीने से रखी गई थी लेकिन ड्रेसिंग टेबल पर रखा थर्मस उलटा रखा था। नैयर की मानें तो शास्त्री की मौत रहस्य थी और इसकी जांच होनी चाहिए।